Mukul Kumar Singh

Children Stories Inspirational

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Mukul Kumar Singh

Children Stories Inspirational

फसल

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स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर के रूप में छात्र-छात्राओं के बीच क्षितिश्वर पांडेय सबके प्रिय हैं। मिलनसार स्वभाव, सदैव मुस्कान होंठों पर खेलती, उम्र पचपन-छप्पन की परन्तु शरीर देखकर लोग कहेंगे पच्चीस की होगी। जबकि उनके सह - शिक्षक स्थुल काया, बड़ी तोंद,अधपके सर के बाल के साथ आलस्य में डूबी आंखों को लिए क्लास में टेबल तोड़ते नजर आते हैं। जबकि क्षितिश क्लास फाइव से लेकर क्लास ट्वेल्व तक के छात्रों के साथ दौड़त-कुदते दिखाई देता है। स्पोर्ट्स टीचर होने के कारण दैनिक सफेद रंग के पोशाक में बिल्कुल पुर्णिमा के चांद की भांति अपनी आकर्षक व्यक्तित्व से से सभी नक्षत्रों के उपर अपनी स्नेह रस बिखेरा करते हैं। टिफिन के बाद आठवीं कक्षा के छात्रों को व्यायाम योग का अभ्यास करवा रहे हैं। मुंह में ह्विसिल है जिससे पी-प,पि-प की ध्वनि निकल रही है। पुरा ग्राउंड हरे भरे घास की चादर अपने सिने पर बिछाए तथा चारों ओर बड़े बड़े पेड़ों के घने छाया तो जैसे सबको पास बुला रही हो। पेड़ों के घने पत्तों के झूरमुटों में न जाने कितने पक्षियों का बसेरा है कौन करे गिनती इसी छाया के तले पाण्डेय व्यायाम योग करवा रहे हैं। कभी ह्विसिल की पिप-पिप तो कभी एक-दो-तीन, एक-दो-तीन के लय पर छात्रों का कदम से कदम मिलाकर एक साथ कमर झुकाते भूमि का स्पर्श करना आंखें और हृदय के संगीतमय तार झनझना उठे हैं। यह व्यायाम योग ग्राउंड के दूसरी छोर से पता हीं नहीं चलता है कि कितने छात्र-छात्राएं इस अभ्यास को कर रहे हैं।ऐसी तैयारी पाण्डेय जी के सिवा कोई करवा नहीं सकता है। पी.टी.अभ्यास के बाद सभी छात्रों को देश-समाज-परिवार का कल्याण करने वाले छोटी-छोटी कहानियां भी सुनाया करते हैं जिससे छात्रों को पाठ्यक्रम के अलावा अन्य विषयों से संबंधित बातें भी जानने को मिल जाया करता था। इस वक्त भी पाण्डेय जी सारे छात्रों को वृताकार बिठाकर अपनी संस्कृति-सभ्यता के महत्व को समझा रहे थे। एक छात्रा की बारी आई प्रश्न पुछने की तो वह पुछती है-

" सर, हमारे देश में सबके मिल-जुलकर रहने का अभ्यास कब से प्रारंभ हुआ "। सुनकर पांडेय जी मुस्कुरा उठे। अन्य सभी छात्रों को यह प्रश्न पसन्द आया क्योंकि वे पुस्तकों में पढ़ते आ रहें की भारत में विभिन्नता में भी एकता है परन्तु कैसे इसे सोचने का अवसर छात्रों को दी हीं नहीं जाती है कारण पढ़ाने वाले शिक्षक स्वयं व्याख्या कर देते हैं कि अति प्राचीन काल से विदेशी यहां आए और बस गये। आधुनिक भारत में क्या विदेशी और क्या स्वदेशी सारे के सारे एक समान हैं तथा वर्तमान भारत के नागरिक इन सबकी मिली-जुली संतान हैं। पाण्डेय जी सबकी जिज्ञासा देख बोले "ठीक है। सही प्रश्न है तुम्हारा और मैं कोशिश करूंगा तुम्हारी जिज्ञासा को शांत करने का"। वह छात्रा बैठ गई।

" अच्छा क्या आप लोग मुझे बताएंगे कि आपके पाठ्यक्रम ने किन्हें विदेशी कहा है"

" ग्रीक, शक, हूण, पठान, तुर्की,मुगल आदि। छात्रों के घेरे में से बैठे एक छात्र ने कहा। जिसका नाम अश्विनी था। "लेकिन ये लोग तो हमारे देश को लूटने आए थे" पास वाले लड़के ने वाक्य को योग किया। उत्तर ने पाण्डेय को प्रभावित किया और उस लड़के के चेहरे में एक अलग हीं चमक दिखाई दी एवं उसके उन्नत ललाट और उम्र के अनुरूप भरा-पूरा शरीर ने पाण्डेय को बहुत कुछ कह दिया। यह लड़का अर्णव जो अश्विनी का गहरा हीं नहीं बचपन का मित्र है और कभी भी एक दूसरे से दूर नहीं रहते थे। पाण्डेय जी वृताकार में बैठे सबकी ओर दृष्टि दौड़ाई। प्रायः सभी छात्र कुछ जानकारी प्राप्त करना चाहते थे।

"तुम सबको कैसे पता चला कि विदेशी भारत को लूटने के लिए आए थे" पाण्डेय जी ने अपने मुस्कान बिखेरते हुए कहा,

"परन्तु हिस्ट्री पढ़ाने वाली मैडम बोली कि वे लोग लूटे हुए धन से अपने देश में जनकल्याण हेतु सड़क, चिकित्सालय, सुन्दर इमारत तथा बागीचे इत्यादि बनवाये थे। अतः वे लूटेरे नहीं कहे जा सकते हैं। दूसरी तरफ बैठे हुए एक अन्य छात्र ने कहा।

"यह भी तर्क संगत बात है। लेकिन एक प्रश्न अपनी हिस्ट्री पढ़ाने वाली मैडम से पुछकर देखना जब कोई उनके घर से उनके गहने और नकद राशि चुरा कर ले जाएगा तो वो पुलिस को सूचना देंगी या नहीं" इतना कहकर पाण्डेय जी कुछ और कहने जा रहा था तभी पीछे से किसी महिला की टोकने की स्वर सुनाई दिया.........."क्या पाण्डेय जी आप कुछ देर पहले व्यायाम योग करवा रहे थे जिसे देखकर खुशी हो रही थी कि खेल के माध्यम से अपने अनुशासन और एकता-समानता का जो अभ्यास करवाया है वह भविष्य के भारत में विभिन्नताओं के बीच भारत की एकता को मजबूत बनाने का कार्य कर रहें हैं। पर मेरे बारे में बच्चों को क्या पाठ पढ़ा रहे हैं"

"कुछ नहीं मैडम जी। बस भविष्य को मजबूत बनाए रखने के लिए सत्य का ज्ञान होना चाहिए"

"मेरे बारे में कहे गए शब्दों के साथ सत्य का ज्ञान का क्या सम्पर्क"........... थोड़ा उत्तेजित हो जाती है।

"मैडम जी पहले तो आप अपने क्रोध को शांत करो। आप तो अन्दर से अन्दर इतनी आवेश में हो कि बोलते समय जिह्वा लड़खड़ा रही है। बैठे हुए छात्रों में भी असहजता छाने लगी। तभी नजदीक वाले पेड़ के शिश पर हवा का एक हल्का सा झोंका आकर चला जाता है और ढेर सारे पत्ते झड़ कर दोनों हीं शिक्षकों के बीच चक्राकार घुमती हुई जमीन पर पतीत हो जाती है। यह देख मैडम जी स्वयं को अपमानित महसूस करती है और पाण्डेय मुस्कान लिए कहता है "मैडम जी, हमलोग शिक्षक हैं और हमारा काम है देश के मजबूत भविष्य के लिए उन्हें सच्चा राह दिखाना"

शिक्षिका जी तो पहले से हीं अपमानित महसूस कर रही थी और अब आग में घी पड़ गया। आव न देखा ताव न देखा चली गई हेडमास्टर के आफिस में जहां सौभाग्य से सेक्रेटरी भी मौजूद थे, शिकायत पाण्डेय जी के नाम पर कि सभी छात्रों के सामने उन्हें स्पोर्ट्स टीचर ने अपमानित किया है। सेक्रेटरी महोदय को भी अपने रुतबे को प्रकट करने के लिए अवसर चाहिए ताकि वो सबको बता सके वह इस शिक्षण संस्थान का सेक्रेटरी है। सो हेडमास्टर को साथ लेकर चले आए जहां पी.टी.का क्लास चल रही थी। इधर पाण्डेय जी इस बात से बेखबर पुनः खेलकुद करवा रहे थे। हेडमास्टर एवं सेक्रेटरी ने छात्रों को खेलते देखा तो अवाक रह गए क्योंकि पाण्डेय जी एवं छात्रों के चेहरे पर ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई दिया जिससे लगे कि कुछ पल पहले यहां कोई घटना घटी हो। अतः हेडमास्टर ने पाण्डेय के निकट जाकर धिरे से कहा,"पाण्डेय जी सेक्रेटरी महोदय आपसे कुछ कहना चाहतें हैं"........... अभी पुरी बात भी न पुरा कर सके और सेक्रेटरी महोदय स्वयं निकट आ गये तथा बिना किसी लाग-लपेट के बोल पड़े "आपने थोड़ी देर पहले हिस्ट्री पढ़ाने वाली मैडम को क्या बोल दिये कि वो स्वयं को अपमानित महसूस कर रही हैं" पाण्डेय का चौंकना स्वाभाविक था फिर भी वह अपने स्वाभावानुसार मुस्कुराते हुए बोला "सर जी वह यहां आई अवश्य पर ऐसी कोई बात हुई नहीं जिससे उनका अपमान हो" छात्रों का खेल खो-खो अपनी चरम सीमा पर है और उपस्थित दो-दो महानुभावों की बातों को सुनकर खेल समाप्ति से पुर्व हीं ह्विसिल बजानी पड़ गई। खेलते हुए छात्रों को खेल का अंत होने से पहले थम जाना अच्छा नहीं लगा और लगे चिल्लाने - "प्लीज़ सर, ह्विसिल दे दिजीए न"

अभी तक ख्याल न था कि हेडमास्टर उनके निकट आ खेल देख रहे हैं और जब उन लोगों कि नजर हेडू पर पड़ी तो वे लोग सकपका गये एवं शांत हो बैठ सुस्ताने लगे। सेक्रेटरी महोदय चुंकि राजनीतिक दल के नेता थे सो उनका नेतागिरी का अभ्यास सदैव जागृत रहता है। अतः अपने अभ्यासानुरुप पाण्डेय को बोला " ठीक है कोई बात नहीं है मैडम जी से माफी मांग लिजीएगा। परन्तु पाण्डेय ने कहा "माफी किस बात की!जब कोई गलत हमने किया हीं नहीं तो माफी क्यों मांगू" "अरे भाई मैडम जी को धन्यवाद दिजीए वह पी.एस.जाकर एफआईआर नहीं की नहीं तो हमलोग आपसे बातें करने नहीं आते"। हेडमास्टर ने पाण्डेय जी को परामर्श दी। पाण्डेय के लिए अप्रत्याशित लगी आज की घटना। परन्तु घबड़ाया नहीं। प्लेग्राउंड में गर्म हवा का झोंका पेड़ों की उंचाई को छूना चाहता है। परिस्थिति की गंभीरता को देखते हुए पाण्डेय ने छात्रों को अपने निकट बुलाया और सेक्रेटरी महोदय को कहा-"इनसे आप पुछ लो, मैडम जी पता नहीं क्यों मेरे नाम पर शिकायत की है। सेक्रेटरी को जब छात्रों से पुरी इतिहास-भुगोल की जानकारी हुई तो वह आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सका। उसने हेडमास्टर को उद्देश्य कर कहा - "सर जी हम राजनीति करने वाले आपलोगों की तरह पढ़ा-लिखा नहीं। यदि पढ़-लिख लिया होता तो आज की राजनीति को और भी ज्यादा गंदा कर दिया जाता जहां एक शिक्षक दूसरे को कू-चक्र में फांस कर नीचा दिखाना चाहता है"। हेडमास्टर भी शायद ऐसा हीं था शायद इसीलिए सेक्रेटरी के व्यंग्य को समझकर भी खिंसे निपोरता रहा । पीरियड्स समाप्ति की बेल बज गई। पाण्डेय ने छात्रों को एक साथ इकठ्ठा होने के लिए ह्विसिल बजाई और दैनिक पीरियड समापन के पश्चात पुछता था कि उसके छात्र पढ़-लिख कर क्या बनना चाहते हैं। आज कुछ छात्रों ने पहले की तरह रटा हुआ उत्तर न देकर कहा कि वे लोग राजनीतिज्ञ बनना चाहते हैं। मन थोड़ा खिन्न हो उठा एक तो उस महिला के व्यवहार तथा दूसरे छात्रों के आज के प्रश्नोत्तरी में राजनीतिज्ञ बनने की इच्छा। दोनों हीं घटनाओं ने क्षितिज के मनोमस्तिष्क में उथल-पुथल मचा दी। आज उसे लग रहा था महिला तो महिला हीं रह जायेगी। भले हीं वह शिक्षिका हीं क्यों न हो। जिन्हें अध्यापन कार्य के महत्व का पता न हो उसे शिक्षण कार्य में नहीं आना चाहिए। एक शिक्षक भविष्य का निर्माता होता है अतः उसे राष्ट्र,राष्ट्र गौरव तथा राष्ट्रीयता के आदर्शों के लिए स्वयं को तपस्वी बनाना पड़ेगा और जीवन में किसी भी प्रकार की त्याग के लिए सदैव प्रस्तुत रहना होगा। जबकि एक राजनीतिज्ञ जो वर्तमान परिस्थितियों में चरित्रहीन, स्वार्थी, अपराधिक गतिविधियों में लिप्त, राष्ट्र एवं समाज कल्याण के स्थान पर अपने दल को हीं शासन में बिठाए रखने के लिए विरोधियों को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहता है अर्थात ऐसा मनोवैज्ञानिक आतंक फैलाता है जो नागरिक तो नागरिक नेताओं तक को विरोध करने का साहस नहीं होता है। उसके अन्तर्मन में सागर की लहरें उठ रही है और गिर रही है। क्या वह भी अन्य शिक्षकों की भांति परिस्थितियों से समझौता कर लेगा। नहीं,कभी नहीं। कुछ ऐसा करना होगा ताकि भविष्य के भावी राजनीति करने वाले देशहित तथा मानवता को अपना कर्तव्य समझेंगे। हां-हां। यही करना होगा एवं समय की मांग भी यही है। अंत में दृढ़ निश्चय कर लेता है।

पाण्डेय के साथ हुई घटना छात्रों से लेकर शिक्षक-शिक्षिकाओं एवं अभिभावकों तक के लिए चर्चा का विषय बन चुका है। किसी ने पाण्डेय को लेकर चुटकी ली तो किसी ने मैडम के उपर। मैडम को आरंभ में पाण्डेय को नीचा दिखाने पर गर्व की अनुभूति हो रही थी पर सब अग्नि के लपटों में स्वाहा होने के पश्चात सोचने से क्या फायदा जब अपने हीं हाथों आग लगे। लपटों की आंच ठंडी हो गई तब समझ में आया कि पाण्डेय जी ने तो एक महिला के रूप में कुछ नहीं कहा था और स्वयं पाण्डेय जी ने तो किसी से इस घटना की चर्चा तक नहीं की। विद्यालय के टीचर्स रूम में भी कई दिनों तक बहसबाजी चलती रही। और इस बहस का सारांश निकल कर आया कि हम शिक्षक अपने पेशे व कर्तव्यों से भागने का मात्र बहाना ढूंढ़ते हैं, केवल सरकार के वेतनभोगी कर्मचारी हैं। सरकार बनती है राजनीतिक दलों के कार्य कर्ताओं से अतः सरकार लम्बे समय तक टिकी रहे। इसके लिए राजनीति नागरिकों के जीवन के हर क्षेत्र में घुस गया है अर्थात देश वासी सांस भी लेते हैं नेताओं के अनुसार। कोई प्रतिवाद नहीं कर सकता है। देश के इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पाठ्यक्रम को छात्रों को अध्ययन हेतु समर्पित कर दिया है। ताकि देश के सत्य को छुपाया जाय। शिक्षक वर्ग अच्छी सैलरी, अच्छी गाड़ी एवं आलिशान मकान के साथ विलास बहुल जीवन व्यतीत करने को अपना मूल मंत्र मान लिया है। सरकार क्या सिलेबस में शामिल किया है उसका क्या दूरगामी परिणाम होगा, देखने की आवश्यकता नहीं है। पाण्डेय तो कम से कम छात्रों को जगा रहा है और हम हेडमास्टर के साथ तर्क-वितर्क करते हैं, सही ढंग से क्लास भी नहीं करते हैं जबकि सारे मैडमों को साज सज्जा तथा आधुनिकता व राजनीति चर्चा, व्यक्तिगत पहचान बनाने से फुर्सत नहीं है और हम लोगों को आधुनिकता, धर्म निरपेक्षता, नारियों के प्रति अत्यधिक उदारता एवं राजनीति के उपर बहसबाजी में क्लास करने का समय कहां मिलता है। जब हम क्लास करेंगे हीं नहीं तो पाठ्यक्रम में क्या लिखा है जानेंगे कैसे। राज्य सरकार का विरोध करने से बचना चाहते हैं ताकि आराम की नौकरी न चली जाए।

क्षितिज अपने शिक्षक धर्म से विचलित होने के स्थान पर स्वयं को दृढ़ संकल्प में डूबा लिए तथा एक नये अभियान पर काम करने लगा। भूतपूर्व छात्रों से मिलकर इतिहास की सच्चाई को सामने लाना तथा देश इतिहासकारों को नये सिरे से इतिहास लिखने के लिए उत्साहित करना। नये-नये राजनीति में आने वाले छात्रों में दलीय स्वार्थ के सामने राष्ट्रहित को प्रमुखता देने की प्रेरणा देना। समय की गति के साथ-साथ प्रारम्भ में असफलता हाथ लगी परन्तु धैर्य नहीं खोया। अपनी धुन में पक्का रहने वाले व्यक्ति को सफलता कभी निराश नहीं करती है। अब वह बन्द कमरे में आलोचना करने वाला नहीं रहा। कालेजों तथा विश्व विद्यालय के कार्यक्रम में आमंत्रित वक्ताओं के श्रेणी में अपना स्थान अधिकार कर लिया है। उसने जो पौधा बोया वो फल देना शुरू कर दिया।नये-नये युवा राजनीतिक अपने नेताओं के उपर गलत तथ्यों को परोसने वाले पाठ्यक्रम को हटाने के लिए दबाव डालने लगे। परिवर्तन की इस व्यार को लाने के लिए अनगिनत पापड़ बेलने पड़े फिर भी क्षितिज की अपनी ध्येय के प्रति निष्ठा से विमुखता न आई। देखते-देखते कब वह टीचर के रूप में रिटायर्ड हो गया उसे इसका ख्याल हीं नहीं रहा।

एक दिन प्रातः काल में नहा-धोकर नाश्ता किया और किसी कालेज में वक्तव्य देने जाने की तैयारी कर रहा था। अचानक कालिंग बेल बज उठी। क्षितिज का पौत्र दरवाजा खोला तो सामने देखा कि कोई कार खड़ी है तथा सफेद रंग का साधारण वस्त्र पहने एक व्यक्ति जिसके साथ कुछ और लोग भी हैं - "हमारे पाण्डेय सर जी घर पर हो तो उनसे कहो कि उनका एक छात्र मिलना चाहता है"....वह बालक आगंतुकों को इन्तजार करने के लिए कहा और कमरे के अन्दर चला गया। आगंतुक बाहर से हीं कमरे के अन्दर दृष्टि दौड़ाई जहां उसे सब कुछ बड़े सुन्दर ढंग से सजाया हुआ नजर आता है। मन हीं मन प्रसन्न होता है। अन्दर कमरे से एक व्यक्ति सादगीपूर्ण पहनावे में तथा चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए उपस्थित हुआ और जब तक सामने वाले से आनेवाले से कुछ पुछता उसके पहले हीं एक युवक झुक कर प्रणाम किया एवं आग्रह किया कि " सर, यदि आपको कोई आपत्ती न हो तो मैं आपसे दो मिनट का वार्तालाप कर लूं"

" क्यों नहीं, अवश्य। आओ-आओ"

पाण्डेय तथा आगंतुक एवं उसके दो अंगरक्षक तथा चार-पांच साथ वाले कमरे में आ गए। पाण्डेय ने उन सबको सोफे पर बैठने का आग्रह किया। आगंतुक ने पाण्डेय से अनुरोध किया कि " सर, पहले आप बैठें फिर मैं" एक पल के लिए क्षितिज पाण्डेय को आश्चर्य हुआ। पाण्डेय के आसन ग्रहण करने के पश्चात आगंतुक पाण्डेय के चरणों के निकट हीं फर्श पर बैठ जाता है। अंगरक्षक तो खड़े रहे और साथ आने वाले आंगतुक को फर्श पर बैठते देख वे भी नीचे हीं बैठे। पाण्डेय आंगतुक को कंधे से पकड़ कर फर्श पर बैठने के लिए "क्या कर रहे हो, अतिथि के रूप में मेरे घर.........

"सर जी, आपने मुझे पहचाना नहीं। मैं अश्विनी आपका छात्र हूं और आपहीं ने पी.टी.क्लास में शिक्षा दिया था कि छात्र का स्थान शिक्षक के चरणों में होता है। आपकी प्रेरणा ने मुझे इतिहासकार बनाया एवं स्कूल में मेरे सामने इतिहास की मैडम और सेक्रेटरी महोदय का कम पढ़ा-लिखा होकर भी आपके उपर आंखें दिखलाना ने मुझे राजनीतिज्ञ बनने की इच्छा जगाई। आज मैं एक सांसद हूं। बहुत दिनों से मेरे मन में आपसे मिलने की इच्छा दबी हुई था। वह आज पुरी हुई"

पाण्डेय को विश्वास नहीं हो रहा है कि बिते हुए कल को नया प्रभात दिखाने वाले किरण रश्मियों का निर्माण हो चुका है तथा इस देश के नागरिकों को अपने गौरवशाली परंपराओं को जानने को मिलेगा और उसके नये भारत को उन्नति के मार्ग पर ले जाएगा। कमरे के अन्दर से चाय-कॉफी की व्यवस्था हो चुकी थी। जब वे लोग प्रस्थान करने को प्रस्तुत हुए तो अश्विनी ने साथ आए एक के कानों में कुछ कहा और वह फौरन हीं बाहर गया तथा वापस एक किताब लेकर आया। अश्विनी ने क्षितिज पाण्डेय के हाथों में दे अपने शिक्षक के चरणों का स्पर्श किया और आग्रह किया "सर,आपकी उपस्थिति की अपेक्षा रहेगी।

अब मुझे आज्ञा दें"

निर्धारित समय पर आमंत्रित स्थान पर पहुंचे

तो आश्चर्य की सीमा न रही, आयोजन कर्ता एवं उसका सहयोग करने वाले कुछ को छोड़कर प्रायः सभी उसके हीं छात्र थे। आयोजन स्थल विश्व विद्यालय का सभागार था। सभागार को बड़े हीं सुन्दर ढंग से सजाया गया था। मंच पर मुख्य अतिथि एवं प्रधान वक्ता का आसन पर विश्वविद्यालय के उपकुलपति और मुख्य अतिथि के आसन को सुशोभित करने वाले क्षितिश्वर पाण्डेय। आमंत्रितों के पिछे पर्दे पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था "हमारा इतिहास" का लोकार्पण।

उपकुलपति के हाथों "हमारा इतिहास"के लोकार्पण के अवसर पर जब उसका लेखक मंच पर उपस्थित हुआ तो आश्चर्य से पाण्डेय का सिना गर्व से फुल उठा क्योंकि लेखक कोई और नहीं अर्णव था व जब स्वयं कहा कि मुझे अपने इतिहास पर शोध करने की प्रेरणा अपने स्पोर्ट्स टीचर माननीय पाण्डेय जी से मिली।

आज पाण्डेय को सभी छात्रों में सत्य का ज्ञान क‌राने वाले खड़ी फसलों को देख लगा कि देश हीं में गया प्रयास सफल हो गया।



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