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Mukul Kumar Singh

Others

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Mukul Kumar Singh

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सिद्धांत ----------

सिद्धांत ----------

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कुर्सी पर बैठे बैठे पीठ की हड्डियां अकड़ गई है तथा टेबल पर दोनों केहुनियां भी दुखने लगी थी। दोनों हथेलियों के मध्य थुतनी को जमाए आंखें सामने दरवाजे के पार टिकी हुई थी। दरवाजे के पार हर जाने पहचाने लोगों को निहार रहा था ।मन में बैचैनी छाई हुई थी। सांसें तेज चल रही थी। अतः उससे मुक्त होना चाहा पर अतित बार बार चलचित्र की भांति मानसपटल को उद्वेलित कर दिया करता। क्या कमी है उसमें जो कभी भी जीवन में सफल नहीं हो पाया। नहीं नहीं वह असफल कहां हुआ है खेलकूद में अच्छा खिलाड़ी के रूप में परिचित हुआ, शिक्षा के क्षेत्र में स्नातकोत्तर, एक समाज सेवक, वक्ता के रूप में जब खड़ा हो जाता है तो तो दर्शक दीर्घा में एक सुई गिर पड़ी तो गिरने की भी आवाज सुनाई देती है।। मन मस्तिष्क में तुफान उठ रहे हैं। सो आपदा की घड़ी में डूब कर यूं ही नहीं मरेगा बल्कि तूफान से लड़ूंगा।

बार बार यही संकल्प लेकर अगली लड़ाई के लिए तैयार होता है। पिछले लड़ाई में किए गए त्रुटियों को सुधार कर प्रतिद्वंद्वी से दो दो हाथ करने को मैदान में उतरा पर पता नहीं कौन सी कमी रह जाती है की असफलताओं का सामना बार बार करना पड़ा। आज उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच गया जहां शरीर के महत्व पूर्ण अंग आंख, कान, हाथ पैर भी साथ देने से पिछे हट रहा है और भावुकता अत्यधिक शक्तिशाली हो जाती है तथा सांस के प्रत्येक क्षण मनोस्थिति की दुर्दशा होती है। बचपन से हृदय में कठोरता ने घर बना लिया था कभी भी निराशा को अपने मन में घर बनाने नहीं दिया। सभी बाधाओं को को पराजित किया पर जीवित रहने के लिए जो आवश्यक है उसे पाने में कामयाब नहीं हुआ और इसने हीं मानव समाज में तिरस्कृत एवं उपहास का पात्र बना दिया। आज जब एक दम निकटस्थ स्वजन ने कटु वचनों में असफल, मूर्ख, जिद्दी, असभ्य का रंग बिरंगी फूलों का हार गले में डाल दिया। जैसे ही गले में खूबसूरत फूलों का हार आया और फूलों के कोमल स्पर्श के स्थान पर अग्नि की लपटें धधकने लगी तथा शरीर का कोई भी अंग जली तो नहीं पर मन नामक खिलौना टुट कर बिखर गया तथा भूपृष्ठ पर लुढ़कने लगा।। जिसके कारण जो यंत्रणा भुगतता है, उन्हें शब्दों में व्यक्त करना असम्भव है। कई बार प्रयास किया कि लोगों द्वारा दिए गए तानों, जली कटी कर्कश वचनों पर ध्यान नहीं दूंगा परन्तु यदि देह के किसी अंश में कोई सुई चुभ जाये और बार बार उस स्थान को रह रह कर दबाया जाए तो यंत्रणा अपना पैर पसारना आरम्भ कर देता है। इस प्रकार कई दिन के अश्रुपात से भींगा हृदय को समझाने के लिए अपने अतित को देखने एवं जानना चाहा, आखिर क्यों उसके जीवन की ऐसी दूर्दशा क्यों हो रही है। धीरे-धीरे वह अतीत के प्रारंभिक अवस्था में पहुंच गया। उसका जन्म हीं एक कड़ुआ परिस्थिति में हुआ जहां उसे जन्म देने वाली जननी ने ही कटु वचन सुनाई, तेरा जन्म मेरा दुःख देखने के लिए हुआ है। तू मर क्यों नहीं जाता है। जननी कभी यह नहीं सोची कि एक शिशु क्या अपनी इच्छा से जन्म लेता है। यहीं पर स्नेह व मातृ प्रेम से वंचित होना पड़ा। धीरे-धीरे समय की गति के साथ शारीरिक परिवर्तन हुआ जहां एक अभावि परिवार में पल रहा था। आय करने वाला एक और खानेवाला आठ जन। उसे भूख लगती रोता रहता है पर खाना कौन देगा। कभी-कभी जननी के सामने रोने लगा तो भोजन के स्थान पर जम कर पिटाई मिली। रोते-रोते नींद के गोद में सो जाता। कभी-कभी परिवार का अभिभावक वृद्ध एवं वृद्धा अपनी भूख को दबा कर उसे खिला देते।। कुछ और बदलाव हुआ अब उसे समझ आ गई कि उसका अपना कोई नहीं है। एक अबोध शिशु किसके सामने अपनी भूख -प्यास, दैहिक कष्टों के विषय में बताएगा। हां इतना समझ गया था कि उसकी जननी उसके जन्म से पहले अपने पति से झगड़ कर मां-बाप के पास रह रही। इसलिए रोना धोना छोड़ दिया। बड़ों को देख सपने देखने लगा वह भी एक दिन बड़ा होगा और अपनी सारी आवश्यकता की पूर्ति करेगा। एक दिन जननी उसे स्कूल में भर्ती करवा दी। वहां भी उसे ठोकर हीं मिला। सहपाठी साफ-साफ यूनिफार्म पहन कर आता एवं उसे यूनिफार्म भी नहीं मिली। सहपाठी टिफिन लाया करते थे उन्हें खाते देख उसकी भूख पेट की आंतों को मरोड़ा करता था तथा आंखें बरबस हीं रोटी-पराठे पर टिक जाता था फलस्वरूप सुनना पड़ा अबे मेरी रोटी को ललचाई दृष्टि से क्या देख रहा है, दूसरी तरफ देख। भूखे पेट क्या खाक पढ़ाई होगी परन्तु परिक्षा में फेल होने पर बेलन,छाता की डंडी से पिटाई, फटे कमीज- पैंट खोलकर नंगा कर रास्ते में भगा दिया जाता। उम्र बढ़ने के साथ बंधु बांधव भी मिले। इससे भोजन वस्त्र तथा किताब-कॉपी की व्यवस्था बंधुओं द्वारा होने लगी। जन्म लेने के पश्चात प्रकृति ने भोजन वस्त्र आवास से भले हीं दूर रखी, लेकिन दैहिक शक्ति तथा साहस से परिपूर्णता करने में कंजूसी नहीं की। फलत: बंधुओं में उसकी अनिवार्यता बन गई थी। जैसे तैसे माध्यमिक के श्रेणी में पहुंचा और बोर्ड की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। उसके सारे साथी नई नई उमंगें लेकर आकाश में उंचाई को छूने के लिए मजबूत पंखों को पसारे उंची उड़ान भरने के ओर अग्रसर है। वह भी पंख पसारे गगनचुंबी छलांग लगाना चाहते है। पर निराशा उसे इलेवेन क्लास में एडमिशन के लिए पैसे का दायित्व लेने वाला कोई नहीं मिला।। वह भी रूकने व झूकने वाला नहीं है। अतः अपने मामा एक सरकारी स्कूल शिक्षक से अनुरोध किया कि उसे एडमिशन के लिए पैसों कि व्यवस्था करें पर मामा ने साफ साफ शब्दों में कहा कालेज वालेज का चक्कर छोड़ो और कुछ रोजगार करो ताकि अपना और अपनी मां का पेट भरो। आखिर कब तक हम लोग तुम लोगों का भार उठाएंगे। ठीक है मैं रोजगार तो करूंगा हीं पर पहले आप मेरा एडमिशन करवा दो। फिर आप जो पैसे देंगे वापस कर दूंगा। मामा तैयार नहीं हुआ। इधर मनोवांछना अधिक बलवती हो चुकी थी। अतः मन में जिद्द ने घर कर लिया उसे पढ़ाई करना होगा तथा वह एक सैनिक अधिकारी बनेगा। उधर जब सभी बंधुओं ने देखा कि एक बंधु साथ छोड़ देगा केवल पैसों कि खातिर। तब बंधु गण आपस में मिलकर उसके एडमिशन की व्यवस्था करवा दी पर यह तो समस्या का समाधान नहीं हुआ। क्योंकि इलेवेन क्लास की मोटी मोटी पुस्तकें तथा आवश्यक कापियां कैसे खरिदेगा। उपर से एक नई समस्या सुरसा की मुंह की भांति फ़ैल गई हुआ़ यूं कि मामा के मना करने पर भी उसने इलेवन क्लास में एडमिशन ले लिया। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया बिना रोजगार किये भोजन नहीं मिलेगा। फिर भी हार नहीं माना अब काम धंधा खोजना शुरू कर दिया। परन्तु सब कुछ सहजता से नहीं मिलती है। काम तो सभी जगह पर उपलब्ध है। जहां भी जाओ स्किल्ड लेबल चाहिए अनस्किल्ड के लिए कोई काम नहीं। इधर रोजगार की तलाश में भूखे पेट कब तक भटकेगा। अतः पेट में भींगा गमछा बांधना पड़। लेकिन कब तक आखिर भूख की बांध टूट गई और जा पहुंचा अपने बंधु के घर जहां बंधु की मां से कुछ खाने को मांगा। बंधु की मां उसे बचपन से जानती थी आज तक कभी भी स्वयं खाना नहीं मांगा। इसलिए सबसे पहले उसे खाना खिलाई तथा बातों बातों में जान गई कि उसके घर वालों ने घर पर भोजन देने से ना कर दिया है। और भला कैसे जीतेगा। अन्ततः अपने घर में उनकी क्लास थ्री की छात्रा को ट्यूशन पढ़ाने के लिए बोली साथ ही साथ उसे समझाई, देखो बेटा जब तक तुम्हें कोई रोजगार नहीं मिलता है तब तक छोटी बहन को पढ़ाओ। हम लोग तुम्हें फीस भी देंगे और भूखे पेट जाने नहीं दूंगी। मरता न क्या करता सो ट्यूशन पढ़ाना स्वीकार कर लिया। की माह बित गये। अब वह कालेज भी जाता तथा प्रोफेसरों के क्लास को नोट कर लिया करता था। उसके कुछ मित्रों ने कहा तू कोई काम ढूढ इस ट्यूशन के लालच में मत पड़ो। देखा नहीं अपने साधूखान काका को उसके दरवाजे से छात्रों को ना कर देने के बाद भी छात्र वहां से जाना नहीं चाहता था। आखिर ट्यूशन एक आंधी है जो आती है तो इतना आनन्द प्रदान करती है जिसकी शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है एवं जब ट्यूटर का रक्त पान हो जाता है तब आंधी वापस लौट जाती है उस समय ट्यूटर एकदम से भूमि पर धड़ाम। किसी को समझ नहीं आता है उसे हाई ब्लड प्रेशर, लो ब्लडप्रेशर या थायरायड ने उठा कर पटक दिया और साधूखान अन्न अन्न के लिए भूख से तड़पते हुए देह त्यागा। सब तुम्हारे इच्छा पर निर्भर करता है तुम परामर्श मानो या ना मानो। मैं तुम्हारा बंधु हूं तेरी सारी परिस्थितियों से परिचित हूं। असमंजस में पड़ गया कि बंधु की कही बातें एकदम सत्य है। अगर ट्यूशन को छोड़ दे तो भोजन मिलना बंद फिर भूखे पेट मजदूरी कैसे ढुंढुगा? कुछ समझ में नहीं आया कि वह क्या करे। लेकिन तय तो उसे हीं करना पड़ेगा। आगे का भविष्य उसे अपने हीं हाथों तैयार करना पड़ेगा। परन्तु कुछ समय इन्तजार करना हीं होगा और धीरे धीर पुनः मजदूरी की तलाश में निकल पड़ा। लेकिन परिणाम वही केवल उपहास। आखिरकार परिस्थितियों ने उसके निर्णय को ग़लत प्रमाणित कर दिया। हालांकि मजदूरी पाने के प्रयास में अभी पुरी तरह से ट्यूशन नहीं छोड़ा था।इसी क्रम में दो तीन ट्यूशन और मिल गये। अब ट्यूशन से उसकी कमाई अच्छी होने लगी। भोजन वस्त्र की चिंता से मुक्त और कालेज में क्लासेज भी रेगुलर करने लगा। देखते ही देखते इलेवन क्लास की परिक्षा उत्तिर्ण की। बिना टेक्स्ट बूक के बंधुओं ने उसका सदैव साथ दिया।टुवेल्व में आ जाने के बाद हर युवाओं की भांति नौकरी प्रायवेट हो या सरकारी पाने के लिए परिक्षाओं की तैयारियां करने लगा इसी बीच उसका एक बंधु जो आठवीं कक्षा पास था उसने कहा चल मेरे साथ मेरी कम्पनी में मजदूरी करेगा। शुरुआत में थोड़ा कम पैसे देगा लेकिन तीन महीने बाद मजदूरी बढ़ा देगा। लेकिन मेरी ट्यूशन छूट जाएगी। वो तो छोड़ना पड़ेगा तथा आज ट्यूशन है कल नहीं तब तुम क्या करोगे आने वाले समय में रोजगार शायद नहीं मिलेगा। बंधु की बातें अप्रिय लगी क्योंकि एक तो वह टूवेल्व क्लास का स्टुडेंट और बंधु आठवीं पास सारा जीवन मजदूर बनकर रह जाएगा। इसलिए मेहनत मजदूरी की ओर कदम नहीं बढ़ाया। उसकी ट्यूशन की गाड़ी गति पकड़ चुकी थी। इसी क्रम में एक नई ट्यूशन की बैच मिली,चार छात्रों को पढ़ाना एवं अच्छी फीस। प्रथम दिन जब वह पढ़ाने जा रहा था, रूम में प्रवेश करने से पूर्व हीं उसी के पाड़ा का एक चालीस वर्षीय सीनियर दादा रूम से बाहर आता हुआ दिखा। ओ तो तुम हो नये ट्यूटर, अभी कम उम्र है ट्यूशन को अपना रोजगार का माध्यम बनने से रोको। और दादा चला गया पर उसकी कही बातें जैसे उसे सतर्क कर रहा है। दो दिन मन उद्वेलित था, उसने सोचा लगता है दादा की ट्यूशन उसके पास चली आई इसलिए क्रोधित हो ट्यूशन से दूर रहने को कहा है। ट्यूशन शहद की भांति है जिसमें डूबा मधुमक्खी चिपक कर रह जाता है और धीरे धीरे शहद मधुमक्खी को शक्तिहीन कर देता है तत्पश्चात तड़प तड़प कर मधुमक्खी अपना प्राण त्याग देता है। ट्यूशन के मोह में किसी अन्य काम धंधे ढुंढने के प्रति लापरवाह हो गया। कहा जाता है कि जैसे ही मानव कुछ अच्छा करने के लिए अग्रसर हुआ कि बाधाएं बिना बुलाए मेहमान की भांति सामने उपस्थित हो जाता है और शनि पाश जीवन ग्रास करने हेतु छोड़ देता है। अचानक जिस मां ने सदैव उसे दुःख देखने वाला कह अभिशाप दिया करती थी।वही बेटे को वैवाहिक जीवन में बांधने हेतु तत्पर हो गई और मूर्खों का दल लड़की वाले बेटी को दूसरे के घर भेजने को तैयार। बस किसी भी तरह से लड़की का व्याह हो जाए और गंगा नहा पुण्य अर्जित कर दायित्व मुक्त होना चाहते हैं। एक परिवार का प्रधान उसकी मां को चालीस हजार दहेज में तथा एक सरकारी हॉस्पिटल में क्लर्क की नौकरी की व्यवस्था करवा देने का आश्वासन दिया।उसकी मां बड़ी खुश। परन्तु उसने विवाह से बचने के लिए पहले हॉस्पिटल की नौकरी की शर्त रख दी। मां आग बबूला होकर उसके बंधुओं को भी मन भर कर कोसी। बन्धुओं में से कई एक ने वर्तमान बेकारी अवस्था को दिखा चालीस हजार रुपए स्वीकार कर विवाह के लिए तैयार होने का परामर्श दिया पर वो बचपन से ही जिद्दी था इसलिए बंधुओं पर क्रोधित हो कटु वचनों से उन्हें तिरस्कृत किया-वह अपने व्यक्तिगत अस्तित्व में किसी की दखलंदाजी पसंद नहीं है। उसके इस फैसले से कुछ बंधु बातें करना छोड़ दिये। बचपन के बंधुत्व को स्वयं हीं ठोकर मारी। इसका कोई पश्चाताप नहीं था। समय बड़ा कठोर होता है। उचित समय पर सही सिद्धांत नहीं लेना बहुत बड़ी मुल्य चुकानी पड़ती है। टूवेल्व क्लास का फाइनल एग्जाम का समय आ गया फार्म फिलप करना होगा, कुछ रूपए की व्यवस्था हो जाएगी। जिस दिन फीस जमा करनी होगी उससे दो दिन पूर्व अच्छी फीस वाले ट्यूशन के पैरेंट्स ने फीस दिया एवं कहा - मास्टर मशाय नेक्स्ट मंथ जब बुलाएंगे तब आएंगे। आंखों के सामने अंधेरा छा गया। खड़ा होने में जैसे असमर्थ हो चुका है।गला सूख गया था। जो फीस मिली उससे फर्म जमा हो जाएगा पर होटल में खाना कैसे खाएगा। पुनः एक बार तनावपूर्ण स्थिति में आ गया। एकदम निर्विकार और भावनाओं से दबा बंधुओं से भी बोल नहीं पा रहा था। रात में सोने से पूर्व क्लब में पहुंचा क्योंकि उसके सोने का स्थान वहीं था। सारे बंधु बांधव हंसी मजाक कर रहे हैं लेकिन वह चुप चाप एक कोने में बिछावन ठीक कर गूंगा बन बैठा था। बंधुओं को को उसकी चुप्पी अजीब लगी। ठीक ऐसी परिस्थिति में आठवीं पास बंधु पास आ पुछा क्या हुआ जो परेशान दिख रहे हो? उसी बंधु ने कहा अभी भी समय है मेरी कम्पनी में मजदूर रखें जाएंगे। इस बार आये एप्रोच को ठुकराया नहीं। अब वह प्रति दिन प्रातः सात बजे कारखाने में हाजिरा तथा रात में पढ़ाई करता था। फाइनल परीक्षा उत्तीर्ण कर ग्रेजुएशन में भर्ती हो गया। सरकारी नौकरियों के लिए परीक्षाओं में कभी रिटेन पास तो इन्टरव्यू में फेल का सिलसिला चल रहा था। मां को लेकर परेशान था क्योंकि आत्मिय स्वजन अलग घर संसार बसा बुढ़िया की सेवा करने हेतु दबाव बनाने लगे थे। जबकि मां को केवल पैसे चाहिए। वह किचकिच से दूर रहने के लिए जो पैसा मांगती दे दिया करता था। हालांकि की परिचितों ने ऐसा करने से मना किया। पर मां के समक्ष ना नहीं कह पाया। सरकारी नौकरी में सेना में भर्ती होने का पागलपन इस स्थिति में पहुंच गया कि बार बार असफल होने पर भी एक हीं नौकरी के लिए आवेदन करता था। मित्रों ने समझाया दूसरे विभागों के लिए आवेदन करो पर उस पर कोई ध्यान नहीं देता था। कारखाने में अब स्किल्ड लेबर बना तो सही पर उसका प्रतिवादी स्वभाव भी पुनः एक बार जाग चुका था। रह रह कर कारखाने में लेबर शोषण के विरोध में झगड़ पड़ता था। देखते देखते पांच वर्ष बीत गए। ग्रेजुएशन उत्तीर्ण हो चुका था और वैवाहिक जीवन की शुरुआत हो चुकी थी। आखिर में सेना भर्ती की उम्र समाप्त तथा सांसारिक बोझ से दब कर कहीं और आवेदन नहीं कर सका। धीरे-धीरे कुछ रूपए हाथ में आया जिसे घर बनाने के लिए जमीन खरीदी। जिस बंधु ने कारखाने में नौकरी दिलवाया था इसके स्वभाव को अच्छी तरह से जानता था।की बार उसने मना किया औरों के लिए मत झगड़ों।जब तुम्हारी बारी आएगी कोई भी साथ देने को तैयार नहीं होगा, फिर तुम्हें पछताना पड़ेगा। लेकिन कौन किसकी सुनता है! वो सोचता था वह जो सोचा एकदम सत्य है। एक दिन दूर्भाग्यवश कारखाने के मैनेजर से लेकर की समस्या के कारण उलझ गया और परिणाम कारखाने से छुट्टी। अब फिर से काम धंधे की तलाश। परन्तु मिलता कहां है उपर से सांसारिक खर्च की पूर्ति तो दिनों दिन बढ़ती जा रही है। काफी समय तक काम का तलाश किया पर समस्या का समाधान नहीं हुआ। अन्ततः पुनः ट्यूशन के लिए प्रयास किया। चुंकी एक अच्छे ट्यूटर के रूप में परिचित था सो ट्यूशन मिलने लगी। कहां कारखाने का वेतन जो उन्नति हो रही थी वो मज़ा ट्यूशन में नहीं है। परिवार में कलह ने जनम ले लिया। सुबह - शाम जब देखो तब खिच खिच। बच्चे भी बड़े होते जा रहे थे। एक समय ऐसा आया कि ट्यूशन पढ़ाने के बाद जो थकान महसूस होने लगी उसे बोलकर समझाना कठिन कार्य कह सकते हैं। सबकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए साइड बीजनेस कर उपार्जन का प्रयास किया लेकिन लाभ अल्प मात्रा में। इच्छा होती है सब कुछ छोड़कर फिर से किसी कारखाने में मजदूरी करेगा। परन्तु मजदूरी मिली लेकिन मेहनताना कम। हां घर से कारखाना निकट हीं था। इसलिए ट्यूशन फिर पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे अपने जीवन में आए उतार चढ़ाव एवं सफलता असफलता के परिप्रेक्ष्य में संतोष धन को गले से लगाया पर परिवार के सदस्यों को आत्मिय स्वजनों के साथ अपनी पहचान बनानी थी सो अच्छा बाड़ी गाड़ी क्यों नहीं है? इसके लिए अशांति एवं कलह ने अंगदी पांव जमा ली। दोनों हीं आवश्यकताएं पूरी करना असम्भव था। आज की परिस्थितियों में घर बनाने में केवल दीवाल को स्पर्श करने मात्र से हीं भायरस आक्रमण करता है और आने वाले समय में कमर सीधी करना एवं भू पृष्ठ पर खड़ा होने के पूर्व सारी शक्तियां चुस लेता है। सोते जागते बस एक हीं चिंता के बोझ से दब गया। संतोष धन को परिवार वाले प्रशांत महासागर में फेंक दिया। इसी क्रम में सरकार नागरिकों को घर बना कर देने की घोषणा किया गया। घर में उस पर दबाव दिया जाने ताकि आवेदन पत्र पौरसभा में जमा दे। लेकिन उसकी कतई इच्छा नहीं थी सरकारी बाड़ी आवेदन पत्र जमा दूं। मरता क्या न करता परिवार के आगे नतमस्तक होना पड़ा और आवेदन पत्र जमा कर दिया। कुछ दिन के पश्चात आवेदन पत्र स्वीकृत हुआ। पौरसभा के माध्यम से बैंक में एकाउंट खोलना पड़ा और जिसमें एक मोटी राशि जमा करनी पड़ गई। पौरसभा ने प्लान तथा जमीन की जांच-पड़ताल कर ली। और फिर एक दिन पौरसभा द्वारा कुछ शर्तें लाद दिया एवं निश्चित दिवस को कन्सट्रक्शन ठीकादार बाड़ी बनाना आरम्भ किया। पुराने घर बरामदे को तोड़ कर कबाड़खाना बनाया और नई फाउंडेशन स्थापित हो गई। टाइ बीम की ढलाई हो चुकी थी सरकारी पैसे मिलनी बंद हो गई। कब मिलेगा यह सरकारी तंत्र हीं बताएगा। सरकारी तंत्र राजनैतिक नेताओं द्वारा संचालित होता है। घर बनाने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा आवंटित राशि का बंटाधार होता रहता है। कारण आने वाले वोट में मतदाताओं को लुभाना होगा ताकि आने वाले वोट में उसकी सरकार बनेगी और पब्लिक मनी का बंदरबांट आवश्यक है तथा दलीय समर्थकों को पहले खिर खिलाओ। जिनका घर तोड़ दिया गया वो परिवार के साथ खुले आकाश के नीचे रहे उन्हें क्या मतलब है। नेताओं का विरोध कौन करेगा! राजनैतिक दलों झण्डे धारी विरोधी का ऐसा कचूमर निकालेंगे भविष्य में फिर सांस लेने से पहले सोचेंगे। सो खुले आसमान तले रहने के वजाय कर्ज लेने को मजबूर। इस तरह से उसे भी लगभग ढाई लाख रुपए कर्ज लेने पड़ गये और फिर एक नई असफलता का अध्याय प्रारम्भ। पुनः घर में तंगी का साम्राज्य। कारखाने एवं ट्यूशन मिला कर कर्ज का सूद सधाने में चला जाता था। फलस्वरूप बच्चों की पढ़ाई लिखाई स्थगित। बेटा-बेटी घर की आर्थिक स्थिति से समझौता कर काम धंधा खोजा और उन्हें मिला। बच्चों के पैसे तथा उसके आय से उसका बोझ कम हो गया। बच्चों ने कर्ज चुका रहे थे और उसके पैसे से घर खर्च चलने लगी। बच्चों के द्वारा कर्ज सधाने को लेकर बच्चों की मां दुखित रहती थी। सदैव उसे कोसती, ताने देती, बड़ी छोटी कटु वचन उपहार हर पल दिया करती थी। एक दिन किसी विषय पर बेटे के साथ बहस हो गई और बेटे ने कह दिया तुमने कर्ज लिया था तो वह अर्थात बेटा क्यों सधाएगा। हृदय पर ठेस लगी। आखिर वह तो सरकार द्वारा बाड़ी बनवाने के लिए चाहा न था। लेकिन बच्चे भी उसकी असफलताओं का दोष उसी के मत्थे मढ़ दिया। इस आघात से बिलबिला उठा पर यंत्रणा को समझने वाला कोई नहीं था। अपने जीवन के संघर्ष काल में कई सामाजिक संगठनों तथा पर्वतारोहण संस्थान से जुड़े हुए था। जहां उसे समाज के बीच एक आदर्श दायित्वपूर्ण नागरिक के रूप में अपनी खास पहचान बनाई थी पर यह ख्याति खास कर परिवार वालों को फूटी आंख नहीं सुहाती। खैर अपने जीवन में उसने कभी भी सही सिद्धांत नहीं ले पाया और आज किये गये कर्मों को झेल रहा है।



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