नागपंचमी की कुश्ती
नागपंचमी की कुश्ती
सावन भादो के दिन, गाँव अँचल की बात, जब से आषाढ़ लगा तब से बारिश का इंतजार, जो अब तक नहीं हुई। क्या हुआ मौसम को, गर्मी बस पड़ रही हैं, दूर दूर तक बादल नजर नहीं आ रहे। भगवान इस वर्ष बरसेंगे भी या नहीं, कहीं सूखा तो नहीं पड़ा देगें लोग को चिंता सता रही थी। गर्मी से सभी के हाल बेहाल, जैसे भगवान इंसान से रूठ गया हो। सभी तरह तरह की बात करने लगे।
कुछ दिन बाद ही सही, मौसम में बदलाव आया, बादल आसमान छाने लगे। काले काले बादलों का झुण्ड लोगों को हर्षित कर दिये। आसमान से दो चार बूँद भी टपकने लगी| लोगो के लिए राहत की बात ये रही कि सूरज भी उन बादलों की ओंट में छिपकर अपनी तपन से राहत देने लगे|
लोगों के लिए इस मौसम की पहली बारिश हुई| घनघोर बादल, पानी के बौछारों की आवाज पड़ पड़ करके कान में सुनाई दी तो किसान खुशी से उछल पड़ा। बादलों की गड़गड़ाहट और कड़कती बिजली लोगों को डरा रहीं थी। अब तो सभी को गर्मी से भी राहत मिलेगी। पानी के बरसने से खेती बाड़ी का काम बढ़ गया। बरसात के पूर्व की तैयारी तो सभी कर चुके, अब बस हल लेकर खेत जोतने की तैयारी बची थी।
और लोगों की तरह बालक मनोहर भी प्रसन्न था, उम्र तेरह वर्ष, शरीर से हट्टा कट्टा पहलवान, दिखने में खूबसूरत और उधम मस्ती में भी अव्वल। माँ तो हैं नहीं उसकी, जब उसकी उम्र तीन साल थी तभी भगवान को प्यारी हो गई। उसका पिता ही सबकुछ था, जो खुद भी एक पहलवान व्यक्ति होकर अपने बच्चें को पहलवानी का गुर सिखा रहा हैं।
मनोहर का पालन पोषण के वास्ते कभी उसने दूसरी शादी के बारे में ख्याल नही किया| डर था, किस तरह की औरत से पाला पड़ जाए, मनोहर से घृणा करने वाली मिल गई तो बच्चे का जीवन नरक बन जाएगा| वह शादी से ही अपने पत्नी को बहुत चाहता था| जब वह नही रही तो दूसरी के बारे में विचार नहीं किया| बस अपने खेती बाड़ी का काम, और बच्चे की परवारिस में समय गुजार दिया। मनोहर का क्या, उसे तो पिता से ही इतना प्यार मिल गया कि माँ के प्यार की कमी महसूस नही हुई|
मनोहर को बारिश से बहुत लगाव हैं| जब भी बारिश होती हैं, वह खुशी से झूम जाता| फिर भींग ने के लिए निकल जाता हैं। बच्चा हैं बिमार भले हो जाये मगर बारिश में भींगना हैं उसे।
अभी खाने के लिए बैठा ही कि बारिश होने लगी वह अपना अधूरा खाना छोड़कर बाहर की तरफ भागा।
"यह क्या, तूने खाना अधूरा छोड़ दिया? बारिश हो रही न, भींग गया तो बिमार हो जाएगा मनोहर?"
पिता ने कहकर रोकना चाहा| उसने बातों पर ध्यान नहीं दिया, भाग गया। बारिश बंद हुई तो लौट कर आया।
"मना किया था न तुझे बारिश में बाहर जाने से। फिर तू मेरी सुनता क्यों नहीं?
" क्या करूँ बापू, आप हमेशा मुझे रोकते है, मगर मुझे बारिश में भींग कर ही मजा आता है। आप तो जानते हैं न । "
पिता जवाब पर झल्लाया तो, मगर उसको कुछ नहीं कहा। आखिर लाड़ प्यार से पाल जो रहा है।
मनोहर बारिश में कही जाए, पिता को कतई पसंद नहीं। किन्तु आज तक उसकी बात नही माना, फिर उसने रोकना टोकना भी बंद कर दिया| ऐसा नही कि मनोहर अपने पिता की कोई बात नही मानता, मगर बारिश में जाने से कोई नहीं रोक सका। स्कूल जाने में भी आज तक उसने आना- कानी नही की| पढ़ाई में भी नम्बर वन, और खेलकूद में भी। पिता ने कुश्ती सिखाई तो वह भी सीख गया। आज आसपास के स्कूल हो या ग्रामीण क्षेत्र में, कुश्ती की कई प्रतियोगिता जीती है उसने।
कभी मनोहर का पिता भी पहलवानी में नम्बर एक था। कई कुश्ती उसने भी जीती, मगर पत्नी के मौत के बाद टूट गया। आज पतला दुबला शरीर, नाक के नीचे पतली सी मूँछ, और उम्र पैतीस हो चुकी। कुछ दिन तक पत्नी का गम, फिर माँ बाप भी गुजर गए| रह गया तो मनोहर, जिसे वह खूब प्यार करता| उसके जिद् के आगे उसने कभी ना नही कहा।
बारिश पुनः प्रारंभ हुई तो मनोहर फिर चला गया। उसका पिता तेज बारिश, बिजली के चमकने और बादल के गर्जना से दुबककर घर के अंदर बैठा रहा। बेटे को रोके तो किस मुँह से| गाँव के सभी लोगों को पता हैं कि वह बारिश से बहुत डरता हैं| जिस वक्त उसे अपने खेतों के पानी के भराव को सही करना चाहिए, उस वक्त वह घर में बैठा रहता हैं इस इंतजार में बारिश रूकें तब वह खेत की तरफ निकले| आज तक किसी ने नही देखा कि बारिश हो रही हो और मनोहर का पिता घर से बाहर निकला| अगर वह मनोहर को बारिश में निकलने से रोकता हैं तो सभी यही कहते हैं कि वह अपने बेटे को खुद की तरह डरपोक बना रहा हैं| पता नही क्यों, लेकिन आज तक उसने नही बताया कि वह बारिश से इतनी नफरत क्यों करता हैं|
बारिश में जाने के बाद मनोहर खुद की मर्जी से घर को लौटता, आकर पिता से कहता, वह कहाँ कहाँ गया, क्या क्या किया, कौन कौन थे उसके साथ, कितनी बार किचड़ में फिसले, कितनी बार मेड़ो से गिरे। फिसलकर गिरने में कितना मजा आया| उन्हे कोई डर नही लगा, बिजली के चमकने, बादल के गर्जनें से|
मनोहर जैसे ही बिजली का चमकना, बादल का गर्जनें का जिक्र करता, पिता यह कहते बात टाल देता कि-
"बस भी कर अब, बहुत भींग चुका हैं तू| किसी दिन न ऐसा बिमार पड़ेगा कि मुझे यह घर बेचना पड़ेगा। फिर रहना खुले में। हमेशा बारिश में भींगने का मजा लेना फिर।"
प्यार था उसकी बातों में, फिक्र थी बेटे की। मगर आज तक मनोहर न बिमार पड़ा, और न ही अपने पिता की बात मानी|
एक दिन बाद नागपंचमी का त्योहार आने वाला था| आज भी कई गाँव कस्बों में कुश्ती के छोटे बड़े आयोजन हो रहे थे। मनोहर भी बहुत खुश था, क्योंकि इस वर्ष की कुश्ती अपने गाँव में नही बल्की पास के शहर में खेलने जाना है| विधालय के ओर से उसका चयन किया गया। वह अपने दोस्तों से वादा किया कि इस बार कुश्ती शहर में जीत कर दिखायेगा। सभी को उम्मीद थी मनोहर शहर से कुश्ती जीतकर आएगा| नहीं था तो उसके विरोधियों को विश्वास। उनका मानना था मनोहर हार जाने के डर से शहर नहीं जाएगा|
कल से जो बारिश शुरू हुई तो बंद होने का नाम नही ले रही थी| किसी तरह रात्रि में मनोहर यह सोचकर सो गया, चलो सुबह तक बारिश रूक जाएगी, मगर घड़ी में आठ बजने लगे| बारिश बंद होने की कोई उम्मीद नहीं थी। बारिश तो बारिश बिजली की तेज चमक, बादल की गर्जना, उसके उम्मीद पर पानी फेर रहे थे| जब से नींद खुली बाहर निकल निकल कर जायजा लेता रहा अब होगी बारिश बंद।
बड़ी उम्मीद के साथ पिता से कहा-
"आज कुछ भी हो जाए बापू, कुश्ती खेलने तो आप लेकर जाएगें| शहर की बात हैं मेरे अकेला जाना तो हो नही पाएगा, और मैंने अपने दोस्तों से शर्त लगा चुका। कुश्ती खेलने नही गया तो सब मुझे डरपोक कहकर चिढ़ाएगें| इसलिए बारिश निकलने का इंतजार न करें, भींगते ही चले। "
"क्या बात कर रहा है, अभी निकल जाएगी न बारिश, फिर चलते हैं। वैसे भी बारह बजे हैं तेरी कुश्ती, कोई जल्दी नही, मैं थोड़ा तेज साईकिल चला लूंगा।"
पिता ने बच्चे को अस्वाशन देकर चुप कराने की कोशिश किया। आखिर वह क्या कहता। समझता था बेटे के दिल की बात, पर उसकी आत्मा भी तो कह रही थी कि बारिश में उसे कही नही जाना|
सुबह के नौ बज गए, उधर मनोहर बिलकुल तैयार, कब उसके पिता की सायकल तैयार होकर सड़क पर निकले, और वह उसमें सवार होकर कुश्ती आयोजन स्थल तक पहुंचे| उसकी इच्छा थी पानी बरसते में जाने की| बारह बजे पहुंचने का समय, और रास्ता मात्र एक घंटे का| फिर भी अभी उसके पास दो घंटे का वक्त था| इसी उम्मीद में उतना ही उत्साहित था, जितना कल|
एक उसका पिता, चारपाई से उठने का नाम नही ले रहा| उठा भी तो बाहर झांक कर फिर अंदर चला जाता। मनोहर था जो कभी कुश्ती लड़ने का दाव पेंच की मन ही मन तैयारी करता, तो कभी एक सुखद ख्याल में डूब जाता कि किस तरह का वह आयोजन होगा, किस तरह से लोग उसकी कुश्ती को देखकर पूरे आयोजन में उसका नाम पुकार कर उसे उत्साहित करेंगे| उसके विरोधी उसकी पहलवानी को देख दांत तले अँगुली दबा लेगें| फिर जीत के बाद इनाम पाने की खुशी, उसके उत्साह को चार गुना बढ़ा देती| मगर इस बार उसने सोच रखा था कि वह अपने पिता के कंधे में चढ़कर ही इनाम लेगा|
"चले बापू, अब बहुत कम समय बचा हैं|"
उसने कुछ देर बाद फिर से अपने पिता को सजग किया| पिता का फिर वही जवाब
"हाँ चलते हैं न, थोड़ी बारिश रूक जाए तब निकलते हैं| भींग जाएगे तो अच्छा नही होगा| तू तो पहलवान व्यक्ति किन्तु मैं, कम ही हड्डी बची हैं शरीर में| तबीयत खराब हो गई तो तुझे खाना बनाकर कौन खिलाएगा? "
"तो क्या दिन भर बारिश हुई तो आप नही चलेंगे?"
"कौन कहता हैं दिनभर बारिश होगी, अभी बंद हो रही होगी फिर चलेंगे| उसे तो मेरे बच्चें के खुशी के लिए बंद होना ही होगा|"
"पर बापु, बारिश बंद नही भी हो सकती न| वो लोग अपना आयोजन बारिश की वजह से थोड़ा ही रोकने वाले हैं| फिर हम क्यों बारिश के लिए घर पर रूके|"
"चल रहे हैं न, थोड़ा इंतजार करने में क्या जाता हैं| मुझे पता हैं तुझे भींगने का शौक हैं, इसलिए तू मेरे से पानी में चलने के लिए और जिद कर रहा हैं|"
पिता झल्लाते हुए बच्चे का मुस्काराते हुए जवाब दिया|
मनोहर को पिता कि बात पर गुस्सा आ रहा था| उसने कहा-
"आप समझते नही बापू, मुझे भींगना ही होता तो मैं अब तक दो चक्कर भींग कर आ गया होता| वहाँ मेरे कुश्तीे का सवाल हैं, तो चलो न|"
"इतना जिद नही करते बेटा| बिना बारिश बंद हुए...|"
उससे आगे कुछ कहते कि मनोहर समझ चूका कि उसका पिता उसे लेकर नही जाने वाला| वो रो दिया यह कहते हुए-
"बस, मैं समझ गया| आपका इरादा नही हैं बापू, आपके पास बहाना हैं बारिश होने का| क्योंकि सभी जानते हैं कि आपको बारिश से कितना डर लगता हैं| वरना कोई मजबूरी नही हैं इस बारिश में मुझे वहाँ तक ले जाने में| बस आप वह इंसान हैं जो बारिश होने पर घर में दुबककर बैठ जाते हैं, और सभी अपना अपना काम करते हैं|"
उसके बात में ताना और नाराजगी दोनों थी| उस नन्हे बालक की बातों का पिता पर कोई असर नही हुआ| तैयार तो हो गया किन्तु बारिश की वजह से घर से बाहर निकलने की हिम्मत नही हुई|
आखिरकार मनोहर की पिता से आस टूट गई| आँखों के आँसू थमने के नाम नही ले रहे थे|
"बापू पता हैं आपने क्या किया, आपकी वजह से मेरा सपना पूरा नही हो सका| एक क्या, ऐसे कई सपने होगें जो जिन्दगी में पूरे नही होंगे| वो भी आपके वजह से| यदि आपको नही चलना था तो कह देते, मैं समय से निकल पैदल पहुँच जाता|"
यह सुनकर उसके पिता का कलेजा फट सा गया| आज तक उसने अपने बेटे के लिए ही किया| उसका रास्ता बारिश ने ऐसा रोका कि बेटा की नाराजगी तक झेलनी पड़ी| कभी मन ही मन बारिश को गाली देता तो कभी बादल को| कभी अपने आप को कोसते हुए, अंदर ही अंदर खुद को मसलता रहा| उसे बहुत खेद था कि अपने बच्चे के किसी सपने को पूरा नही कर पा रहा| जिस वक्त आयोजन में बुलाव था, बारह तो घर पर ही बज गए| मनोहर भी रोते हुए अपने बिस्तर में लेट गया| उसका पिता मौन कुछ न कुछ सोचने के बाद बेटे के पास जाकर उसे मानने की कोशिश किया।
"मत रो मनोहर, एक कुश्ती ही तो नहीं खेला| उसके लिए इतना दुख मत कर बेटा| बारिश नहीं होती तो हम अवश्य चलते।"
" कुछ मत कहिए मुझे| आप डरपोक हो, और अपनी तरह मुझे भी डरपोक बनाना चाहते हो| मैं तो साबित हो गया कुश्ती में हार की डर से नही पहुँच पाया| मगर इसके जिम्मेदार आप हैं, उन्हें कौन बताएगा?"
"मैं बताऊंगा न, तू अब भूल जा कि किसी कुश्ती पर तुझे जाना था| अभी दोपहर में गाँव में होगी तू वही खेल लेना।"
"अच्छा वहाँ जाकर कैसे मैं लोगों के सामने खड़ा हो पाऊंगा| कभी आपने सोचा हैं ऐसा| क्या भूल जाऊं बापू, आपने मेरे सपनों को मार दिया|"
"तू कुछ ज्यादा बोल रहा हैं| मैंने बहुत प्यार दिया शायद उसी का परिणाम हैं कि तू बिगड़ गया|"
"हाँ जब आपके वजह से मेरा सपना सपना बनकर रह गया तो आप मेरे को ही दोषी कहने लगे| मुझे सब पता हैं आज मैं बिना माँ के क्यों हूँ| वह मेरी तरह ही आपसे परेशान होकर मर गई होगी|"
इतना सुनना था कि उसके पिता को गुस्सा आ गया, और जोर से डांटते हुए कहा
"चुप, अब और ज्यादा कुछ बोला तो चांटा मारूंगा| तू वही करेगा जो मैं कहूंगा| अपने मन की आदत हो गई तुझे| जो मुँह पर आता हैं बोल देता| नालायक हो गया हैं तू|"
पिता को गुस्सा देख मनोहर चुप रह गया| बिस्तर में ही मुँह दबाकर रोता रहा| शायद पहली बार पिता को गुस्सा होते देखा| आज पहली बार उसके मुँह पर माँ नाम आया|
झल्लहटा में उसका पिता भी बिना कुछ कहे दूर चला गया| शाम तक दोनों में कोई बात नही हुई| पिता ने खाना बना दिया तो वह भूख लगने पर खा लिया, बाकी पड़ा रहा बिस्तर में| आज उसे अपने पिता से कोई मतलब नही| यही हाल उसके पिता का, बेटे की इच्छा पूरी नही हो सकी तो अंदर ही अंदर मलाल खुद को कोसता रहा| आज तक उसने बेटे से कड़ी आवाज में बात नही किया किन्तु मनोहर बहुत बोल गया तो उसे रोकना पड़ा| तब अनुमान नही था कि मनोहर इतना नाराज हो जाएगा|
पूरे पन्द्रह दिन दोनों के बीच में कोई बात नही हुई| फिर त्यौहार आया रक्छाबंधन का| घर पर मनोहर की बुआ आई| दोपहर दो बजे भाई को राखी बांधी| आज त्यौहार था तो खीर पुड़ी बनाई| खाना खाते चार बज गए, मनोहर के पिता को खेत में काम था तो कन्धे में फावड़ा गैएती लेकर निकलने लगा| आसमान में अभी भी काले काले बादल थे| जो कभी भी बरस सकते थे। बिजली और गड़गड़ाहट हो रही थी। भाई को इस हालात में घर से निकलते बहन ने कभी नही देखा| मगर आज क्या हुआ सोचकर पूछी-
"कहाँ चल दिया भाई? बाहर तो बहुत बारिश होने वाली हैं| भूल गया क्या तू?"
"हाँ बहन, भूलना ही पड़ेगा उसे| इस बारिश में मैं घर पर छीपकर कब तक अपना दुख झेलता रहूंगा| आज मनोहर इतना सा हैं तो ताना देता हैं, कल और बड़ा होगा| उसे मेरी मदद की जरूरत होगी और यदि मैं उसकी मदद के लिए बारिश में बाहर नही निकला तो वह मुझे अपना कहना छोड़ देगा| इसलिए अब बस, जो हुआ उसे भूलकर, जो होगा अच्छा होगा समझ मैं काम धन्धा देखने का फैसला किया|"
उसकी बहन को पता था कि दोनों बाप बेटा में कोई बातचीत नही होती| मनोहर का पिता तो चला गया खेत| तभी तेज की आंधी बारिश होने लगी| मनोहर की बुआ से रहा नही गया तो उसके पास गई|
"क्या कर रहा हैं मनोहर बेटा?"
"कुछ नही बुआ, बस कल स्कूल में बारिश का चित्र बनाकर ले जाना था| उसी को बनाने की कोशिश कर रहा हूँ| सोचता हूँ कि अब अपने सपने खुद पूरा करूं|"
"तो तू नाराज हैं बापू से?"
"मुझे पता हैं आपको उन्होनें बताया होगा| मेरा इतना सा सपना वो पूरा नही कर सके|"
"चल तेरा नाराज होना मैं जायाज मानती हूँ मनोहर, मगर उसकी भी एक वजह हैं| यह वजह जानकर यदि तुझे लगे तो पिता को माफ कर देना|"
उसकी बुआ ने बताया कि उसके पिता जैसा पहलवान और हिम्मती गाँव में कुछ लोग थे| तब तेरा पिता जबान था, शरीर से हट्टा कट्टा, और हिम्मत गजब थी| चाहे कितनी बारिश हो या नदी में बाढ़, दिन हो या फिर रात, उन्हें अपना काम करने से कोई नही रोक पाता| लोगों की मदद करने भी वो कभी भी चले जाते| फिर उसकी शादी हुई और तेरा जन्म, दोनों बहुत खुश थे| तेरे जैसा पुत्र पाकर दोनों के खुशी का ठिकाने नही| लेकिन उनकी खुशी में किसी की नजर लग गई। एक दिन तुझे घर पर छोड़ भाई ने भाभी से जिद किया कि वह भी उसके साथ खेत में चले| उस वक्त भाभी के साथ कि जरूरत थी| तेज बारिश और तेरी माँ दोनों से बहुत लगाव था| भैया भींगते हुए खेत पर काम करने लगे, भाभी एक पेड़ के नीचे छीपी बैठी थी। वो भाई को काम करते देख बहुत रोमांचित हो रही थी| तभी जोर की गर्जना हुई और बिजली कड़की| देखा तो जिस पेड़ के नीचे तेरी माँ छीपी थी उस पर बिजली गिर गई| उसी के साथ भाभी ने अन्तिम सांस ली| तब से भैया के मन में मलाल आ गया| उन्होंने बारिश के समय घर से कही नही जाने का फैसला किए| आज पता हैं तेरी वजह से उन्होंने अपना फैसला बदल डाले, आज इस तरह बारिश में खेत को निकल गए|
बुआ की बात पूरी हो गई| मनोहर उसकी बात को बड़े गौर से सुना| अपने पिता की कहानी जानकर उसे बहुत दुख हुआ| वह मन ही मन पछताने लगा। कल जिस पिता को माँ के मारने का दोष दिया वह खुद दोषी समझ अपने आप को सजा दे रहा हैं। मालूम होते ही आँखों से आँसू की धार निकल पड़ी। उसका सिर बुआ के गोद में रखा हुआ था| उसने सोचा कि रात में जब बापू घर आएंगे तो माफी माँग लेगा किन्तु किसी ने खबर दी की उसका पिता जिस पेड़ के नीचे छीपा देखा गया, उस पर बिजली गिर गई|
हे भगवान! कितने वर्ष बाद तो वह बारिश में कही निकला था| तो क्या यह बारिश उसका इंतजार ही कर रही थी कि कब वह निकले, और उसे मौत के मुँह में समा ले| मनोहर सुना तो व्याकुल हो गया। उस वक्त दोनों रो रहे थे| सभी गाँव के लोग उस तरफ देखने जाने लगे| शाम का वक्त, बादलों के कारण वैसे भी अन्धेरा था| मनोहर भी रोता बिलखता बापू बापू कहते दौड़ा| वह भगवान से हाथ जोड़कर बार बार माफी माँग रहा था| भगवान उसकी यह गलती माफ कर दे, जो खबर सुनी उसे झुठी हो| वह पिता को कभी भला बुरा नही कहेगा| बस जान को बख्स दे भगवान|"
वह खुद पर झल्ला रहा था। छाती पीट रहा था। सिर के बाल नोंच रहा था। आखिर बाप के शिवा कौन था उसका। लोग उस जगह पर पहुँचे तो मनोहर का पिता वही बैठा मिला| पास में उसी उम्र के व्यक्ति की लाश पड़ी थी| मनोहर का पिता अपने गमच्छा से उसको ढक दिया| वह इंतजार कर रहा था कि कोई आए तब मरे व्यक्ति का पता करें कौन हैं? उसकी बिजली के गिरने से ही मौत हो चूकी थी| सब हैरान थे, मरा हुआ व्यक्ति कोई मुसाफिर था| पुलिस को जानकारी देकर जब उसके पिता से पूछे कि तू भी तो इसी पेड़ के नीचे खड़ा था। उसने बताया-
"आज मेरी किस्मत अच्छी थी| मैं बिजली गिरने के दो मिनट पहले यहाँ से निकल गया, और यह व्यक्ति आकर खड़ा हो गया| मैं दस बीस कदम ही बढ़ा कि तेज गरज के साथ यह पेड़ टूट कर गिरा| मैं समझ गया था कि आज भगवान ने मुझे फिर बचा लिया| वह मेरी जान बख्स देता हैं| बेचारा यह मुसाफिर मारा गया| इसके आत्मा को शान्ति मिले|"
उसकी पुरानी याद ताजा हो चुकी थी किन्तु आज उसको समझ आ गया कि जो घटना जिस वक्त घटनी होगी, घटित होकर रहेगी| इसमें इंसान को भयभीत या फिर मन में वहम पालकर नही रहना चाहिए| अगर ईश्वर साथ हैं, समय अच्छा हैं तो जान को कुछ नही होगा, और यदि ऐसा नही तो कुछ भी हो सकता हैं|
सभी ने यही समझा कि मनोहर का पिता मारा गया| मगर उसे जिन्दा देख सबको सुकुन था। मनोहर लोगों के पीछे खड़े होकर पिता की बात सुना, तो भगवान का शुक्रिया किया| दोनों बाप बेटे की नजर मिली तो वह दौड़कर पिता के गले से लिपट गया| रोते हुए हाथ जोड़कर माफी मांगा| आखिर वह भी तो वही चाहता था| दोनों के मन के जो भी मलाल था समाप्त हो गए| मुसाफिर का शव पुलिस ले गई, और सभी अपने अपने घर को लौट गए| मनोहर मन लगाकर पढ़ाई करने लगा, पिता बिना भय के तेज बारिश में भी काम करने लगा|