दूध
दूध
जून की पहली तारीख विश्व दूध दिवस के रूप में प्रचलित है । यह बात उस दूधवाले को कहां पता था । वह तो बस दरवाजा खटखटाता और दूध देकर किसी अगले घर की तरफ बढ़ जाता । चारों तरफ पसर रहे शहर के दायरे से समेटते जा रहे एक गांव के छोर से साईकिल पर दूध के दो डिब्बे लटकाए वह दूधवाला शहर के कई घरों में बारहों महीने प्रतिदिन समय से दूध पहुंचा जाता । वापसी में बाजार से खली - चुनी के रूप में पशु आहार खरीदकर वह खाली हो चुके उन डिब्बों में भर कर घर लौट जाता ।
आज जब वह पड़ोस की आंटी के घर उनके भगोने में दूध पलटा, आंटी टोंकते हुए बोलीं - "कम से कम आज तो अच्छा दूध दे देते ... आज विश्व दूध दिवस है ।"
वह असमंजस में सिर खुजाते हुए बोला - "ये कौन सा नया दिन चालू हो गया ... हम तो बस दुई दिन जानते हैं ... स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस .... जब स्कूल में पढ़ते थे तो बूंदी मिलती थी ।"
आंटी मुस्कुराते हुए बोलीं - "सब लोग दूध पीने का महत्व समझें इससे पोषण प्राप्त करें ... इसलिए यह दिन मनाते हैं ... लेकिन इन दिनों तुम इतना पतला दूध दे रहे हो कि इससे क्या पोषण मिलेगा ?"
दूधवाला सकुचाते हुए बोला - "लाॅकडाउन के कारण न खली मिल रही न चुनी ... सूखा भूसा खाकर बेचारी गाय और कैसा दूध देगी ?"
आंटी ने कहा - "गल्ला मंडी की दुकानें तो सुबह खुलती हैं ... वहां से क्यों नही खरीदते ?" दूधवाला अपने माथे पर हाथ फेरते हुए बोला - "वहाँ नगद पैसा देना पड़ता है न ... और हमें ग्राहको से दूध का पैसा मिलता है महीने के महीने ।"
"तो कल ही तो पूरा हुआ महीना ....।" - आंटी हाथ हिलाते हुए बोली - "कल मैं तुम्हें महीने भर के दूध का पैसा दी थी न ... फिर बहाना क्यों बनाते हो ?"
दूधवाला भरे गले से बोला - "हम बहाना नही बना रहे ..... कल बस दो घरों से पैसा मिला ... उससे अपने घर के लिए अनाज और किराने का समान खरीद ले गया ... पैसे बचे ही नहीं ।"
आंटी ग्लानि महसूस करते हुए धीरे से बोलीं - "बाकी के लोगों ने पैसा क्यों नही दिया ?"
दूधवाले की आँखे नम हो आईं, बोला- "कहां पाएँ तो दें ... किसी का कामकाज बंद है तो किसी का रोजगार ही छिन गया .... किसी किसी घर में जब यह दूध पहुंचता है तब जाकर भूखे बच्चों को कुछ राहत मिलती है ।"
आंटी सन्न रह गईं । दूधवाला अपनी हथेली से आँखों के कोरों को पोंछते हुए बाहर निकला और साईकिल पर बैठकर आगे बढ़ गया।