Minni Mishra

Tragedy

3  

Minni Mishra

Tragedy

दो पाटन के बीच

दो पाटन के बीच

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अक्सर, रात को सोते समय हम दोनों के बीच चाँद की गंध आती और मैं बेचैन, चुपचाप आँसू बहा कर रह जाती। पति से कुछ पूछने की मुझे हिम्मत नहीं होती! आज भी यही हुआ, सारी रात चाँद की गंध से बेचैन रही। मैं तिलमिला उठी। ऐसा लगा जैसे देह पर एक साथ कई देवियाँ सवार हो गईं हैं। मेरी मृत चेतना हठात् जागृत हो गई। और मैं खुद से बातें करने लगी। अब अधिक बर्दाश्त नहीं करूँगी ! इस अनमोल जिंदगी को क्यों तबाह होने दूँ ...? ! 

अम्मा से सुनी बातें, “मर्द की जात ..अधूरी औरत नहीं अपनाती।" मुझे सच लगने लगी। मैं माँ बनना चाहती हूँ..मुझे पति का पूर्ण समर्पण चाहिए। अन्याय..सहना अन्याय को बढ़ावा देना हुआ। अपने अधिकार को अब मैं लड़कर पाना चाहती हूँ। 

पति को देखो, खुद मज़े से वह नौकरी करता है और ऐयाशी भी। पर, उसने मेरी स्कूल में लगी टीचर की नौकरी छुड़वा दी ! नौकरी रहती तो आज मैं शहर की नामी साइंस टीचर कहलाती। मेरे पास पैसे होते और इज़्ज़त भी। जब भी पति से दोबारा नौकरी शुरू करने की चर्चा करती हूँ, उबलते पानी की तरह खौलने लगते हैं। इस तरह फटकारते , “चुपचाप सिर्फ घर संभाल...नौकरी का ख़्वाब छोड़ !” 

नौकरी भले जाए भांड में ! पर, चाँद को तो मैं हरगिज बीच में नहीं रहने दूँगी। बगल में सोये पति को मैंने धक्के मारकर उठाया , “आपके शरीर से चाँद की बू आ रही है।” उठते ही पति ने मुझे एक थप्पड़ खींचकर मारा , ”बदतमीजी की हद्द होती है, रात को भी तुम चैन से सोने नहीं देती। अरे, क्या...चाँद...चाँद का रट लगा रखी हो...!!” 

अंगद की पाँव की तरह, मैं अडिग रही। हूँ ...ह, आज सोने नहीं दूंगी आपको। सच सच बताओ, चाँद से शारीरिक संबंध रखते हो या नहीं ? ” मैंने उसके बदन को झकझोरते हुए पूछा। “हाँ, है मेरे संबंध...चाँद के साथ। मैं, उससे बेपनाह मुहब्बत करता हूँ। जल्दी निकाह भी करने वाला हूँ।” 

निकाह ? सुनते ही सरहाने की दीवार से मैं अपना सर पटक कर गरजने लगी , “बताओ ..मुझे भी साथ रखोगे और चाँद को भी ?” 

“हाँ, तुम्हें भी, क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ।”

 “ प्यार...या...समझौता ? चाँद के साथ आपका संबंध, आपके मुँह से सुनकर ...ओह! घृणा होने लगी है आपसे ! मुझे अब तलाक चाहिए।”

 “मैं हरगिज़ तलाक नहीं दूँगा।” पति ने ऊँचे स्वर में पलटवार किया। 

“क्यों नहीं ...? “ क्रोध और आक्रोश से मेरा शरीर जोर से कांपने लगा। “ क्योंकि, मैं नहीं चाहता कि इस वजह से मेरी बहन और तुम्हारी दो बहनें... कुँवारी रह जाए।"

 " अरे वाह ! पतित मर्द ! भला जो अपनी पत्नी के साथ विश्वासघात कर सकता है ! वह, क्या खाक, उसकी बहन के सुहाग के बारे में चिंता करेगा?" 

मेरा हृदय प्रतिशोध की ज्वाला में लावा बन धधक उठा।

 " अब इस चार दीवारी के अंदर मेरा दम बहुत घुट रहा है। " अर्द्धविक्षीप्त की तरह अपना जरूरी सामान झोले में ठूंस , उसे कंधे पर लटकाते हुए .. मैं अनजान रास्ते पर निकल पड़ी ।

 बाहर, दू...र से एक प्रकाश पुंज मुझे राह दिखा रहा था। मैं अनवरत उस ओर बढती गयी । चलते-चलते सही जगह, एक मंदिर पहुँच गयी। हाँ, हम सब का मंदिर। जहाँ फरियाद की गुहार लगाई जाती है। मतलब , न्यायालय ..न्याय का मंदिर। 

यह सब देख, मेरा हताश जीवन एकाएक झूम उठा। उसे एक नयी ऊर्जा जो मिल गई।



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