दिखावे की श्राद्ध

दिखावे की श्राद्ध

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रमा आज सुबह से ही श्राद्ध की तैयारियों में लगी हुई थी। पंडित जी ने 11:00 बजे का टाइम दिया हुआ था आने के लिए। रमा के पति विमल जी और उनकी बहू स्वीटी भी उसके साथ तैयारियों में लगे हुए थे। रमा अपने सास-ससुर की श्राद्ध एक ही दिन करती है इसलिए उसने और बहू स्वीटी ने मिलकर आज माता जी और बाबू जी की पसंद का सभी कुछ बनाया हुआ था। 

यथा समय पंडित जी और पंडिताइन जी आए और श्राद्ध का प्रसाद दक्षिणा ग्रहण कर ढेरों आशीर्वाद देकर चले गए।

सारे काम से फारीग होकर रमा आराम करने लगी , उनके मन में मां बाबूजी की यादें चलने लगी।

एक ही घर मैं बने दो अलग-अलग हिस्सों में एक में रमा का परिवार और दूसरे हिस्से में रमा की जेठ जेठानी और उनका परिवार रहता था। ज़हां विमल जी अपने मां बाबूजी जी की बहुत इज्जत करते थे। हर छोटी छोटी बात का ख्याल रखना , चाहे वह उनके मां बाबूजी का स्वास्थ्य हो या खाना पीना बीमारी हारी दवा , अपने से पहले वह उनकी जरूरतों को देखते थे। वही जेठ जी कभी भी सीधे मूंह अपने बाबू जी से बात नहीं करते थे और ना ही जेठानी जी उनकी इज्जत करती थी शायद इसीलिए विमल जी के मां बाबूजी ने विमल जी के साथ रहना स्वीकार किया और विमल जी ने इसे अपना अहोभाग्य माना और जी जान से अपने माता-पिता की सेवा करते रहे। रमा भी बहुत कोमल हृदया और व्यवहार कुशल ग्रहणी और बड़ों की इज्जत करना जानती थी। रमा ने भी बहुत दिल से मां बाबूजी की सेवा करें। 

रमा को याद है जब बाबूजी का अंतिम समय आया था और विमल जी बहुत परेशान हो रहे थे तो डॉक्टर ने बोला था,

" एक दिन सबका ही अंत समय आता है और वैसे भी बाबूजी की उम्र हो चली है इसलिए अब आप इनको जितना भी खुश रख सकते हैं रखिए। 

तब विमलजी बहुत उदास हो गए थे , फिर कुछ सोचकर रमा से बोले थे , रमा आज बाबूजी की पसंद का सारा खाना बनाओ और खाना बन जाने के बाद बाबू जी के पास खाने की प्लेट लेकर पहुंचे थे और बोले थे ,

"बाबू जी उठिए आपकी पसंद का खाना आया है ,देखे ना यह दही की पकौड़ी यह कड़ी पकौड़ी जलेबी भी लाया हूं , 

उस कमजोर सी हालत में बाबूजी ने डायबिटीज होने के बाद भी एक जलेबी का टुकड़ा अपने मुंह में रखा था और उसको खाने के थोड़ी ही देर बाद उनकी आंखें तृप्ती के साथ एक टक विमल जी को देखने लग गई।विमल जी समझ गए कि बाबू जी उनको छोड़कर जा चुके हैं। और बाबूजी की आंखों की तृप्ति देखकर विमल जी को जीवन भर की तृप्ति मिल गई।

 वह कहते हैं ना कि कर्म के फल इसी जन्म में मिलते है। जो बोएंगे वही तो काटेंगे।आप जो व्यवहार अपने से बड़ों के साथ करेंगे वही व्यवहार आपसे सीख कर आपके बच्चे आपके साथ करेंगे। जेठानी जी की बहू उर्मिला बहुत ही कर्कशा औरत थी और उनका बेटा तो उनसे भी 10 कदम आगे था हर वक्त मां-बाप की बेइज्जती करना। उर्मिला ने जो व्यवहार अपने सास-ससुर का उनके साथ ससुर के प्रति देखा वैसा ही व्यवहार उसने जेठानी जी के साथ किया। रमा आज भी सिहर उठती है जेठानी जी की अंतिम समय की दुर्दशा देखकर। उर्मिला तो उन्हें पेट भर के खाना भी नहीं देती थी और हाड़ तोड़ मेहनत करवाती थी। खुद सारा दिन आराम किया करती थी और जेठानी जी और जेठ जी घर के कामों में लगे रहते थे।

रमा कभी कुछ मदद करने की कोशिश भी करती तो उर्मिला कलह मजा देती थी इसलिए विमल जी ने रमा से बोला यह उनके परिवार की बात है तुम बीच में मत बोलो। जेठ जेठानी जी इतना दुख इतनी मेहनत और सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाए और बहुत जल्दी ही स्वर्ग सिधार गए थे। 

आज उर्मिला भी अपने सास-ससुर के नाम पर श्राद्ध कर रही थी , दसियों तरह के व्यंजन बनवाए गए थे। दिखावे के लिए दान दक्षिणा भी खूब करी गई थी। मगर इस तरह की श्राद्ध करने और पितरों को पूजने का का क्या फायदा जब आप जीते जी ही उनकी इज्जत ना करें उनको खाने के लिए तरसा डाले , उनसे नौकर से भी बद्तर व्यवहार करें। आज आप जिस लगन से पंडित को छप्पन भोग खिला रहे हैं दान दक्षिणा दे रहे हैं गाय की रोटी कौवे की रोटी निकाल रहे हैं पूरी श्राद्ध विधिवत कर रहे हैं उतनी ही लगन से अगर आपने उन्हें जीते जी इज्जत मान सम्मान दिया होता तो इस श्राद्ध करने का कोई मतलब भी समझ आता। यह दिखावे की श्राद्ध और पित्र पूजन क्यों।


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