भावनाओं का सैलाब
भावनाओं का सैलाब
विशू को आज सुबह से माँ की बहुत याद आ रही थी... मां जिनके गले लगकर दुनिया की सब परेशानियों को भूल जाता है.... उस से रहा ना गया तो मां को फोन किया....
"हेलो माँ ....
"हेलो बेटा ...तुझे क्या हुआ तेरी आवाज में इतनी उदासी क्यों कुछ हुआ है क्या....?
"माँ मुझे आपके पास आना है.....
"हाँ आना है तो आ जाना मगर अभी तो छुट्टी नहीं तेरी कैसे आओगे.....
"मुझे कुछ नहीं पता... मुझे बस आना है आपके पास आपके गले लगना है आप से चिपकना है......
"विशु सब ठीक तो है ना क्या हुआ...? मुझे बता , कहीं कोई बात तो नहीं....?
"मां मेरा मन यहां नहीं लगता ...
"अरे विशू यूं अचानक... ऐसी क्या क्या बात है ... मुझे बता सारी बात.... मां की ममत्व से भरी आवाज सुनकर विशु फफक फफक कर रो पड़ा...
"माँ ऑफिस में मेरा मन नहीं लगता चारों तरफ पॉलिटिक्स चलती रहती है...हर तरफ आगे बढ़ने की होड़ में सब एक दूसरे को पछाड़ने में ही लगे रहते हैं.... कोई भी दोस्ती के लायक नहीं है यहां.... दोहरे चेहरे लिए घूमते हैं लोग .. मां मैं रोना नहीं चाहता मगर आंसू आ ही जाते हैं।
विशू के मानसिक अंतर्द्वंद की पीड़ा के तटबंध टूट गए हो जैसे...मैंने भी उसे नहीं रोका...बह जाने दिया उसे रंग बदलती दुनिया के छलावे से मिली पीड़ा और दुख के सैलाब को...
उसके इस तरह रोने से मेरी ममता भी उमड़ कर आंखों के रास्ते बह निकली पर मैंने उसे जाहिर नहीं होने दिया ...
"विशू ...चल पानी पी और शांत हो जा...अरे बेटा जिंदगी इतनी आसान नहीं होती , स्कूल-कॉलेज के बाद असल जीवन की परीक्षा तो अब शुरू होती है न .... जो आसानी से मिल जाए वह तो भगवान की रजा ,पर जो संघर्षों से जीता जाए उसी में तो है असली मजा.... लोग तो तुम्हें खदेड़ कर आगे बढ़ना ही चाहेंगे क्योंकि यह दुनिया का नियम है पर...चल कर गिरना और गिरकर संभलना और संभल कर अपना मुकाम हासिल करना बस यही तो है बहादुरी की निशानी.... और मैं जानती हूं की तू तो मेरा बहादुर बच्चा है... चल अब बहुत रो लिया , मन कुछ हल्का हुआ तेरा ....!"
"हां अब मैं ठीक हूं, आपकी आवाज सुनकर मुझे जिंदगी से लड़ने की ताकत मिलती है ,जिंदगी जीने की कला तो मैंने आपसे ही सीखी है..लव यू मम्मा हमेशा मेरे साथ रहने के लिए ।"
वसुधा जी फोन रखते ही यादों के झरोखों में चली गई ... जब विशू 1 साल का रहा होगा तब अपनी शरारतों की वजह से आहत होकर रोने लगता तो हमेशा वसुधा जी की सासु मां विशु को चुप कराते हुए एक ही बात कहती... अरे लड़कियों की तरह क्यों रो रहा है... लड़के भी कभी रोते है भला ?
जैसे-जैसे विशु बड़ा होता गया कभी स्कूल में किसी से लड़कर पीटकर या कभी किसी की बातों से दुखी होकर रोना शुरु करता तो विशु के पापा भी बोल देते अरे तू लड़की है क्या जो आंखों में आंसुओं का तालाब लिए घूमता है ... उस वक्त विशू मुझसे कहता मम्मा.... पापा ऐसे क्यों कहते हैं मुझे भी दर्द होता है जब मुझे चोट लगती है.... मेरे आंसू अपने आप आ जाते हैं बताइए मैं क्या करूं....
पर मैं विशू से यही कहती थी ...दुख और पीड़ा को कभी दिल में नहीं रखते वरना वह नासूर बन जिंदगी में जहर घोलने का काम करते हैं । दुख दर्द को अंदर ना दबाकर सब बह जाने दिया करो जिससे तुम्हारा दिल और दिमाग हमेशा हल्का रहेगा। और इस बात को जेहन से हमेशा के लिए हटा दो कि आंसू कमजोर लोगों की निशानी होते हैं या लड़के नहीं रोते हैं जिस तरह एक लड़की के पास दिल होता है उसी तरह लड़के भी पत्थर दिल नहीं बल्कि नाजुक दिल ही रखते है।
सदियों से चली आ रही धारणा कि "मर्द को दर्द नहीं होता या लड़के नहीं रोते".... अरे भाई क्यों नहीं रो सकते ...? क्या मर्द हाड़ मास का बना इंसान नहीं या उसके शरीर में दिल और जान नहीं... आंसू कमजोर होने की निशानी है रोना तो सिर्फ औरत होने की निशानी है कि वजह से आदमी अपने आंसू और ज़ज्बातों को छिपाना बेहतर समझते हैं और वह चाहकर भी अपने आंसू नहीं दिखा सकते क्योंकि लड़के कभी रोते नहीं... सदियों से उनके दिलो-दिमाग में बैठा दी गई मानसिकता कि "वह तो मर्द है और मर्द कमजोर होते नहीं, रोती तो लड़कियां हैं लड़के कभी रोते नहीं। इतिहास गवाह रहा है कि जब - जब पुरुष कमजोर पड़ा है तब - तब एक औरत के कांधे का ही सहारा लिया है एक औरत ने हीं उसको उबारा है... फिर भी लोगों की संकीर्ण मानसिकता यही रही है की औरत कमजोर और पुरुष शक्तिशाली है । एक तरफ बोलते हैं शक्ति का नाम ही नारी है मगर रोने के ठेका भी औरतों की जिम्मेदारी है ... आंसू तो खुशी में भी आते हैं और दुख में भी क्योंकि आंसुओं का संबंध तो भावनाओं से होता है तो उन आंसुओं को कमजोरी से क्यों आंकते हो ...और भावनाएं जितनी औरतों में होती है उतनी ही पुरुषो में भी होती हैं।
ना औरत कमजोर ना पुरुष शक्तिशाली है , एक सा ही दिल होता है दोनों के सीने मे .... और इस कटु सत्य को समझना आज के समाज की भी ज़िम्मेदारी है।