मां का आशियाना

मां का आशियाना

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"ऐ छोरी , कुछ काम काज सीख ले अपनी अम्मा के साथ , पराए घर जायेगी तो नाक कटवा देगी और  निकाल दी जाएगी घर से" दादी की कड़क आवाज सुनकर छोटी सी स्वाति अपने मां के पल्लू से चिपक गई और धीरे से बोली "दादी यह तो मेरा घर है "

दादी मुंह चढ़ाकर बोली " चुप कर ! लड़कियां तो पराई होती हैं तेरा घर तो वह होगा जहां तेरा ब्याह होगा । यह तो वंश का घर है हमारे घर का कुलदीपक मेरा राजकुमार आजा दादी की गोद में" कहते हुए सारा लाड़ वंश पर उड़ेल दिया ।

छोटी सी स्वाति की आंखों में आंसू छलक पड़े।

संयुक्त परिवार में जन्मी स्वाति धीरे धीरे अंतर्मुखी स्वभाव की होती जा रही थी ,वजह थी परिवार में दादी का बोलबाला ... दादी जिनकी सोच अभी भी वही थी कि लड़के से ही परिवार का नाम आगे बढ़ता है। लड़कियां तो पराई होती हैं ... स्वाति बचपन से देखती सुनती आ रही थी कि पापा भी दादी की कोई बात नहीं टालते थे जिसकी वजह से स्वाति की मां सुनैना भी दब कर रह गई थी । बचपन से दादी के ही रंग में रचे-बसे पापा मां की कोई बात सुनना ही कहां चाहते थे। दादी हर बात में नुक्ताचीनी करती थी मां की हर बात में कमियां निकालना और साथ में यह कहना अपने घर से कुछ सीख कर भी आई हो। ये पराई लड़कियां क्या जाने हमारे घर के तौर तरीके । "सुन सुनैना यहां यह सब नहीं चलेगा... यह घर मेरा है और तुझे मेरे हिसाब से रहना पड़ेगा।" स्वाति बालमन में उठे प्रश्न की उधेड़बुन मैं उलझी यह उत्तर ही नहीं ढूंढ पा रही थी की दादी के कहे अनुसार यह घर लड़कियों यानी मेरा नहीं, मेरी मां की शादी के बाद यह घर भी तो मां का नहीं बल्कि दादी के कहे अनुसार दादी का घर है तो आखिर मेरा या मां का घर है कौन सा... ? इस सोच के साथ उम्र की दहलीज पार करते हुए अंदर ही अंदर घुट रही थी स्वाति। कई दफा मन कसमसा कर रह जाता जब वह पापा को अपना पुरुषत्व मां पर दिखाते देखती ... पापा भी कहां पीछे रहते थे मां को सुनाने में ।मां जब भी पापा से अपने दुख या परेशानियों को बांटने की कोशिश करती तो पापा सीधे से जवाब देते इस घर में रहना है तो हमारे कायदे कानून से रहो वरना वह रहा बाहर का रास्ता ढूंढ लो अपना ठिकाना।

स्वाति का दिल कई बार विद्रोह पर उतर आता। वह दादी से पूछना चाहती थी दादी आप भी तो किसी और घर से आई थीं, तो यह घर आपका कैसे हो गया सिर्फ इसलिए कि मेरे पापा की मां हो आप... और अगर हां, ....तो मेरी मां भी तो मेरे भाई वंश की और मेरी मां है , तो उस नियम के तहत यह घर मां का हुआ। क्यों आप लोग बात - बात कर उसको जलील करते रहते हैं । पर हर बार मां उसको चुप करा कर उसकी भावनाओं को ताला लगा देती थी यह बोलकर कि "बेटा बड़ों की इज्जत करनी चाहिए वह तेरी दादी हैं, बड़ी है वह तुझसे... उनकी बात का बुरा मत माना कर।"

दिन-ब-दिन स्वाति विद्रोही स्वभाव की होती जा रही थी। उसने मन ही मन ठान लिया था अपनी दादी की बातों को गलत साबित करने का और अपने पापा के दंभ को तोड़ने का। अपनी सारा गुस्सा , कड़वाहट और झुंझलाहट को अपनी कमजोरी ना बनाकर उसको अपनी ताकत बनाने का।

दादी और पापा के लाख मना करने के बावजूद वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान देती रही । पापा ने तो उसकी पढ़ाई लिखाई पर खर्च करना ही बंद कर दिया था क्योंकि उनकी संकीर्ण सोच कि "बेटियां तो पराई होती हैं" जिसकी शादी का बोझ था उनपर , पर उसने मेहनत से पढ़ाई कर और हर क्लास में अव्वल आने पर मिलती रही स्कॉलरशिप और अपने जूनियर्स को ट्यूशन पढ़ा कर उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी । स्वाति की मेहनत और लगन से एक नामी कॉलेज में प्रवक्ता के पद का अप्वाइंटमेंट लेटर आया तो वह खुशी से फूली न समाई और मां के पास जाकर उनके पैर छू कर गले लग गई।

आज वह निसंकोच होकर अपनी मां को साथ लेकर पापा और दादी के पास गर्व के साथ यह खुशखबरी सुनाने पहुंची ... अपना अपॉइंटमेंट लेटर दादी के हाथ में रखकर उनके और पापा के पैर छूकर वो बोली "दादी एक औरत होकर भी आप औरत की भावनाओं को कभी नहीं समझ सकीं,हमेशा आपने और पापा ने मां को पराए होने का ही ताना दिया । मां भी किसी की बेटी थी आपकी तरह , वह भी शादी के बाद अपना घर छोड़ कर इस घर में आई थी आपकी तरह , उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी इस घर को दी है फिर भी "वह पराई है" का तंज सुनती आई है । क्या आप बताएंगी औरत का अपना घर कौन सा होता है? क्योंकि कोख जाई मां का घर भी लड़की के लिए पराया होता है । शादी होकर ससुराल आई तो वह घर पति का होता है ...तो यह घर भी उसका नहीं ..! तो आखिर कौन सा घर होता है हम औरतों का....? और अगर यह घर मां का है तो उसको पूरे जीवन पराई होने का एहसास क्यों कराया जाता है।

बस बहुत हुआ दादी ...अब अगर आपने और पापा ने मां को पराए होने का ताना दिया तो अब और नहीं सुनूंगी आप दोनों की बातें.... अपनी मां के आशीर्वाद से आज मैं इतनी सक्षम हो गई हूं कि ले जा सकती हूं अपनी मां को एक नए आशियाने में जो "मां का आशियाना" होगा । अपनी मां का हाथ अपने हाथों में लेकर स्वाति ने गर्व से बोला " दादी मानो तो बहू भी अपनी है वरना बेटी भी पराई है".... घर सिर्फ आदमी से ही नहीं वरन आदमी और औरत की साझेदारी से बनता है।घर जितना आदमी का होता है उतना ही

औरत का भी होता है।"



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