आज की सीता

आज की सीता

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गार्डन की ओर बने कमरे की खिड़की खोलते ही ठंडी हवा का झोंका सांसों को भिगोता हुआ गुजर गया। ऊष्मा एक लंबी सांस लेते हुए हवा की खुशबू को खुद में महसूस करने लगी कि अमरूद की खुशबू भी उसके नाक के नथुनों से टकराई। कितने सारे अमरूद लटक रहे थे पेड़ पर। कमरे का दरवाज़ा खोल कर वह गार्डन में निकल आई। कितने चाव से ऊष्मा ने यह गार्डन सजाया था। ज़िद कर के आरव से सारे पौधे मंगाए थे कि इन फलों और फूलों की खुशबू से हमारा जीवन भी फूलता, फलता, महकता रहेगा । गुड़हल चंपा चमेली गुलाब कितने ही तरह के खूबसूरत फूलों की खुशबू से गार्डन हर समय महकता रहता था। पर इस खुशबू को अपनों की ही नज़र लग गई थी। ऊष्मा और आरव खुश हाल दंपति थे। तीन साल पहले दोनों ने प्रेम विवाह किया था। परिवार के विरुद्ध जाकर विवाह करके इसी घर में आरव ऊष्मा को लेकर आया था। गृह प्रवेश के लिए आरव के कुछ दोस्त आए हुए थे जो उनके विवाह के भी साक्षी बने थे। आरव के दोस्तों ने मिलकर बहुत ही खूबसूरत ढंग से घर को फूलों से सजा दिया था। आरव के ऑफ़िस की कलीग रीता दी ने आरव और ऊष्मा की आरती उतार के गृह प्रवेश कराया। थोड़ी देर की हँसी ठिठोली के बाद सारे दोस्त नव दंपति को अकेला छोड़ कर अपने घर चले गए। एक दूसरे के प्यार में खोए वह दोनों हमेशा के लिए एक दूसरे के हो गए। जिंदगी बहुत खुशनुमा जा रही थी की अचानक एक दिन आरव की बुआ उन लोगों से मिलने आ गई। तीन साल बाद अपने परिवार के किसी सदस्य को देखकर आरव फूला न समाया। ऊष्मा और आरव ने बहुत प्यार से बुआ का स्वागत किया। ऊष्मा ने तो अपनी बुआ सास को सर माथे पर बिठा लिया पर उसे क्या मालूम था यह बुआ सास उसकी जिंदगी में ग्रहण का काम करेंगी। 


अमीर घर के इकलौते बेटे आरव का इतनी बड़ी कंपनी में ऊंचा ओहदा और साधारण घर की खूबसूरत सी ऊष्मा से उसकी शादी आरव के घरवालों को फूटी आँख ना भाई थी। शायद आरव के घर वालों की मिली भगत से ही बुआ सास को यहां भेजा गया था ताकि वह आरव और ऊष्मा की खुशहाल जिंदगी में सेंध लगा सकें। बुआ सास की खुराफाती दिमाग में चल रहे मंसूबों को ऊष्मा भांप ही ना पाई और उनके जाल में फंसती चली गई। एक ओर चाशनी में लिपटी जुबान से बुआ ऊष्मा का दिल जीतती गई और दूसरी ओर आरव के मन में शक के कीड़े को जगा कर यह बात कूट-कूट के भर दी की ऊष्मा चरित्र की अच्छी नहीं और अपने रूप के जाल में फंसाकर तुझ से शादी सिर्फ तेरा स्टेटस देखकर की है। ऊष्मा को तुझ से नहीं तेरे पैसों से प्यार है और अगर तुझ से भी ज्यादा पैसे वाला कोई मिलेगा तो वह उसके साथ हो जाएगी। बुआ ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी आरव को ऊष्मा के खिलाफ भड़काने में और आखिरकार उनके मंसूबों ने रंग दिखाना शुरू ही कर दिया शक के कीड़ों ने आरव के दिमाग में घुसपैठ बना ली। आरव के दिन-ब-दिन बदलते स्वभाव को देखकर ऊष्मा को जब बुआ सास पर शक होना शुरू हुआ तब तक बात काफी हद तक बिगड़ चुकी थी।

आज तो हद ही हो गई। आरव चिल्लाता हुआ घर में घुसा और तलाक के पेपर ऊष्मा के मुंह पर फेंकता हुआ बोला "आखिर अपनी औकात दिखा ही दी न ....पता नहीं किस- किस के संग गुलछर्रे उड़ा कर तूने मुझे फँसाया। दिन में रेस्तरां में मैंने अपनी आँखों से देखा तुझे किसी पराए आदमी के साथ। बुआ सही कहती हैं तुम्हारा चरित्र ही नहीं किसी के साथ घर बसाने लायक...!

"अपनी जुबान को लगाम दो आरव...! मेरे प्यार और विश्वास को तुमने गुलछर्रे का नाम दिया। किसी की सुनी सुनाई बातों पर विश्वास करके तुमने मेरे विश्वास को तोड़ा है। तुम जैसी छोटी मानसिकता के आदमी के संग मैं खुद भी नहीं रहना चाहूँगी। मैं किस आदमी के साथ थी और क्यों थी , यह जान कर भी तुम मुझ पर विश्वास नहीं करोगे क्योंकि तुम्हारी आँखें वही देख रही है जो तुम्हारी बुआ तुम को दिखा रही है। मैं सब कुछ बर्दाश्त कर सकती हूं मगर अपने चरित्र पर उंगली नहीं आखिर "सीता की अग्नि परीक्षा कब तक" होती रहेगी। और हमेशा सीता ही क्यों अग्नि परीक्षा दे, क्या पुरुष कभी ग़लत नहीं होता। हमेशा स्त्री से ही सीता बनने की उम्मीद की जाती है क्या पुरुष कभी राम बन पाते हैं। खैर न मैं देवी सीता हूं और ना तुम भगवान राम। 

और जिस आदमी को लेकर तुम मुझ पर लांछन लगा रहे हो वह तुम्हारे पिता के द्वारा भेजा गया दलाल था जो तुम्हें छोड़ने के बदले में अच्छी खासी रकम का ऑफर लेकर आया था। तुम्हारे घर वालों ने एक तीर से दो शिकार किए। उनको पता था मैं ऐसे किसी से मिलने नहीं आऊंगी इसलिए बहाने से मुझे मिलने बुलाया, उनको पूरा विश्वास था कि मैं उनका प्रस्ताव स्वीकार नहीं करूंगी इसीलिए ग़लतफहमी पैदा करने के लिए बहाने से तुम को भेजा ताकि तुम देख सको मुझे किसी पराए पुरुष के साथ। 

आरव को हकीक़त का भान होते ही पछतावा हुआ और वह रोते हुए ऊष्मा से माफ़ी मांगने लगा। वह अपने किए पे बहुत शर्मिंदा था। ऊष्मा ने अपने प्यार और विश्वास से संजोए घर को फिर से खुशहाल बनाने के लिए आरव को माफ़ तो कर दिया मगर इस वादे के साथ कि आजीवन ऊष्मा और उसके प्यार पर विश्वास करेगा, वरना वह आज की सीता है जो अग्नि परीक्षा नहीं बल्कि मुंह तोड़ जवाब देगी अपनी ओर उठने वाली हर उंगली का। 



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