प्यार से सजा घरौंदा
प्यार से सजा घरौंदा
रुचिका एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती थी। उसके घर में मां पापा भाई बहन सब मिलकर ही काम किया करते थे। घर की साफ सफाई और बर्तन के लिए एक मेड रखी हुई थी बाकी काम पूरा परिवार मिलजुल कर करता था।
कुछ दिनों बाद रुचिका की शादी एक ऐसे परिवार में हुई जो किसी जमाने में बहुत पैसे वाला हुआ करता था। घर में नौकर चाकर हुआ करते थे पैसों की रेलम पेल थी। घर में दूध की नदियां बहा करती थी। फिलहाल तो ना उतना पैसा रहा ना उतने राजसी ठाठ-बाट ही रहे ।
रुचिका ने ससुराल आते ही अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां अपने कंधों पर उठा ली। वह हरदम कोशिश करती थी कि सारा काम सही समय पर हो जाए जिससे सासू मां को कोई भी शिकायत का मौका ना मिले। वैसे तो रुचिका की सासू मां भी उसके गृह कार्यों में मदद किया करती थी। बस रुचिका को सासू मां की एक ही बात अच्छी नहीं लगती थी और वह यह कि रुचिका कभी भी अपने पति वासु को कुछ काम करने को कहती थी तो सासू मां पीछे से टोक देती कि, "अरे मेरे बेटे से कोई काम मत कहो मैं कर दूंगी ना । बहुत नाजों से पाला है मैंने अपने बेटे को।" और सासू मां शुरू हो जाती अपने राजसी ठाठ बाट का पुराण सुनाने।हालांकि वासु ने रुचिका को कभी किसी बात के लिए मना नहीं किया था और ना ही वह अपने पुराने राजसी ठाठ बाट का बखान करता।
एक दिन रुचिका ने वासु से कहा , "वासु सुबह का समय बहुत व्यस्तता भरा होता है , ऐसा करिए जब तक मैं किचन और बाकी के घर की डस्टिंग कार्यों में व्यस्त होती हूं उतनी देर में आप बेडरूम की डस्टिंग और वॉशरूम साफ कर दिया करें जिससे मेरा काम भी हल्का हो जाएगा और थोड़ा सा समय भी बच जाएगा। "
वासु बहुत ही हेल्पिंग नेचर का था और उसने सहर्ष ही हामी भर दी ।
एक सुबह सासू मां वासु के पास किसी काम से उसके बेडरूम में पहुंची तो देखा वासु वाशरूम साफ कर रहा था । यह देखते ही सासू मां गुस्से में आ गई और जोर से रुचिका को आवाज लगाई।
रुचिका भागी भागी कमरे में आई तो सासू मां ने गुस्से से आंखें तरेरते हुए कहा , "अब यह दिन देखने ही बाकी रह गए हैं कि मेरा बेटा वाशरूम साफ करे । मैंने मेरे बेटे को राजकुमारों की तरह पाला है। बैठे पानी पिलाया है। कितने नौकर उसके आजू-बाजू रहते थे । और आज तुम मेरे बेटे से वाशरूम साफ करवा रही हो" और यह बोलते हुए उनकी आंखों में आंसू आ गए।
रुचिका और वासु ने मां को चुप कराया। रुचिका ने सासू मां का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा , "जानती हूं मां कि आपने वासु को बहुत लाड़ प्यार से पाला है मैं आपकी भावनाओं को अच्छी तरह से समझती हूं पर मां आपको यह स्वीकार करना ही पड़ेगा कि ना अब आपके जमाने का राजसी माहौल रहा ना नौकर चाकर । जब सारे काम खुद ही करने हैं तो मिलजुल कर ही करने पड़ेंगे। और वैसे भी अपने घर के काम करने में कोई शर्म नहीं। सभी मां बाप अपने बच्चों को राजकुमार और राजकुमारियों की तरह ही पालते हैं मगर उन्हें अपने बच्चों को समयानुसार खुद को ढालने की कला भी सिखानी चाहिए । मेरे मायके में भी पापा और भाई हमेशा मां की घरेलू कार्यों में मदद करते रहते हैं ।
मां परिस्थितियों के अनुरूप खुद को तैयार करना भी जरूरी है । कल को मेरे बच्चे भी होंगे तो मैं भी उन्हें राजकुमारों की तरह ही नाजों से पालूंगी , उनकी परवरिश में कोई कसर नहीं छोडूंगी मगर उन्हें हर परिस्थितियों में खुद को ढालना भी सिखाऊंगी।"
तभी वासु ने भी मां गले लगाते हुए बोला , "हां मां भूल जाइए वह राजसी ठाठ बाट के दिन । हम सब मिलकर अपने घरौंदे को प्यार से चमकाएंगे "राजसी नहीं प्यार के ठाट-बाट से सजा घरौंदा" बस अपना आशीर्वाद और प्यार हम दोनों पर बनाए रखिएगा।
