कलमकार सत्येन्द्र सिंह

Tragedy

4.4  

कलमकार सत्येन्द्र सिंह

Tragedy

धूप

धूप

1 min
292


धूप

“सुनो...अब यह सासु माँ के ताने सुने नहीं जाते...कुछ करो...”– वह बोली.वह ऑफिस जाते हुए किसी बहस में पड़ना नहीं चाहता था.

जल्दी से नाश्ता कर के निकल पड़ा.

उदास चेहरे को देख कर उसके मित्र ने माजरा पूछा.उसने अपनी पारिवारिक व्यथा अपने मित्र के समक्ष रख दी.

“...बस...अपना फ्लैट ले लो...आज़ादी भी...” – मित्र की बात कुछ ठीक लग रही थी उसे.दो महीने में एडवांस दे दिया गया और दिवाली से पूर्व वे उधर शिफ्ट भी हो गए.दिवाली माँ के बगैर कभी मनाया न था उसने.

बालकनी में छन छन कर आती धूप को देखते हुए तथा पति की मनोस्थिति भांपते हुए उसने कहा – “सुनो जी...डॉक्टर ने तुम्हे धूप लेने के लिए कहा था...गठिया के दर्द में मुझे भी सोने नहीं देते थे...बस कुछ दिन में सब ठीक हो जाएगा”

चश्मा उतारते हुए वह कभी बाहर देखता तो कभी पत्नी को.भीगी पलकों से वह धूप में छिपे पत्नी के भावार्थ को समझने का प्रयास कर रहा था.


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy