Himanshu Sharma

Crime Drama Tragedy

0.2  

Himanshu Sharma

Crime Drama Tragedy

धर्म

धर्म

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शहर में दंगे चरम पर थे और चरम पर थी मानव में बसे पशु की पराकाष्ठा ! चारों और बस मार-काट का आलम था न जाने कितने ही लोगों ने इस मानव जनित त्रासदी में अपने बन्धु-बांधवों को खो दिया था ! मगर सिसकियाँ भी आती थी तो इस भय में कहीं दब जातीं थीं कि कहीं उनकी इहलीला भी न ख़त्म कर दी जाए ! शहर के बीचों बीच आलमपुर की बस्ती थी दंगों से पहले यहाँ सब सामान्य था मगर अब कुछ तनाव और संशय ने मन में घर कर लिया है...।

मानव प्रवृत्ति है, जहाँ बात अपने धर्म पर आती है आपका पडोसी जो किसी भी समुदाय का क्यूँ नहीं हो, आप उसके प्राणों की बलि अपने धर्म की रक्षा के लिए दे देते हैं ! भले उस भले मानस ने आपकी सहायता किसी भी परिस्थिति में की हो...!

ऐसे ही तनाव के माहौल में एक चौराहे पर एक बालक्रंदन सुनायी दे रहा था, मगर किसी ने उसकी और ध्यान नहीं दिया !

चमचा नेता से,

"भैया जी, मन पसीज रहा है। ज़रा उस बच्चे को उठा लाइए न ! न जाने क्या हो जाए उसके साथ, वैसे भी उन सामने वालों का क्या भरोसा ? ये लोग तो मन आये तो बचवन को भी न छोड़ें !"

नेता उवाच : "देख ये उन लोगों की चाल भी हो सकती है, हो सकता है उन्हीं का किसी का बच्चा ऐसे ही रख दिया हो, ताकि हमारी बिरादरी का कोई भला मानस जाए और उस पर ये लोग ये कहकर वार कर दें कि हमारे बच्चे को उठा के ले जा रहा था, सालों का कोई भरोसा है क्या...!"

चमचे ने गर्दन से ऐसे हामी भरी कि वास्तव में उनका धर्म नष्ट करने कि चाल सामने वाले कर रहे हों और उनका ये नेता तथाकथित उनके "अभ्युत्थानं अधर्मस्य: तदात्मानं सृजाम्यहम: !" की प्रवृत्ति रखता हो !

....

एक ने उनके दबंग से कहा,

''भाई ! बहुत देर से ये बच्चा रो रहा है, कहिये तो जाकर उठा लाते हैं, दिल फट रहा है उसकी आवाज़ सुनकर...! ऐसे लगता है इस शायरी पर तामिल कर दूं कि मस्जिद बहुत दूर हम कैसे जाएँ, चलो किसी रोते हुए बच्चे को हँसाए !"

"लगता है बड़े शायराना मिजाज़ हो रहें हैं आपके...! यहाँ मुशायरा नहीं चल रहा है ! समझे आप !

और सामने बच्चा पता नहीं काफिर का हो ! आप यही चाहेंगे कि हमारे मज़हब में उनके बच्चे आयें और पले बढें...! जाइए, चुपचाप जाकर खड़े हो जाइए !"

बेचारे ने कुछ भले काम कि सोची मगर यहाँ भी मज़हब की दीवार खड़ी हो गयी !

अगले दिन अखबार में कहीं पर एक बहुत छोटी - सी खबर छपी थी जिसका शीर्षक था,

"नवजात का क्षतिग्रस्त शव मिला...आलमपुर में दिनांक २७ फरवरी को एक चौराहे पर एक नवजात का क्षत-विक्षत शव बरामद किया गया है...!"

जिस धर्म ने एक नवजात पर दया नहीं दिखाई वो क्या किसी और पर दया दिखायेगा...!

अब आप ही सोचिये, अगर आपके सामने ऐसा हो तो आप किसका साथ देंगे ?

उस धर्म का, जिसने उस शिशु को काल के मुख में धकेला ?

या आपके अपने मानव-धर्म का ?

जवाब आपके भीतर ही है...!


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