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कलमकार सत्येन्द्र सिंह

Abstract

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कलमकार सत्येन्द्र सिंह

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दगाबाज़

दगाबाज़

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शहर में ज़बरदस्त दंगे हो रहे थे.सेना लगने की तैयारी हो रही थी.एक दम्पति की हत्या तो वह भी कर चुका था.दूर छिटके हुए उनके दुधमुंहे बच्चे पर उसे दया आ गई.किसी तरह उस बच्चे को बचते-बचाते घर ले आने में सफल हो चुका था.पता नहीं वह किस जमात या संगठन का दगाबाज़ था?

उसके हाथ में न कलावा था और न ही टोपी फिर भी उसे ऊपर वाले की माफ़ी मिल चुकी थी.


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