देवा-रूपा
देवा-रूपा
देवा जिस कॉलेज में पड़ता था, उसी में उसकी दोस्त रूपा भी पड़ती थी। दोनों कॉलेज के पीछे गार्डन में अकेले में मिलते थे। दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे। साथ रहने के कसमें वादे करते थे। दोनों एक ही शहर में अलग-अलग कॉलोनी में रहते थे। मगर रात में देवा उसके घर चोरी छुपे जाता था, और कुछ देर रुक कर वापस अपने घर आ जाता था। एक दिन रूपा के पापा ने देवा को घर के अंदर घुसते देख लिया। उन्होंने कहा कौन हो? और इतनी रात को मेरे घर के अंदर कैसे आये ?
रूपा ये घर का दरवाजा क्यों नहीं बंद किया था !
हाँ बताओ कौन हो तुम ?
देवा :- जी...मेरा नाम देवा है सर, मैं रूपा का क्लासमेट हूँ ।
रूपा के पापा:- अच्छा ये बात है। इसका मतलब घर का दरवाजा रूपा ने ही खोल कर रखा था।
क्यों रूपा सही कहा ना ?
रूपा :- पापा में देवा को पसंद करती हूँ और शादी करना चाहती हूँ ।
पापा :- लेकिन बेटा अभी तुम्हारी पढ़ाई लिखाई पूरी नहीं हुई ।
देवा:- सर, हम दोनों एक दूसरे के बिना अब एक पल भी दूर नहीं रह सकते, हम दोनों भी साथ रहकर अपना एक परिवार बनाना चाहते हैं ।
पापा:- परिवार ऐसे ही नहीं बनता बहुत। बड़ी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है ।
देवा:- मैंने एन. डी. ए. की परीक्षा पास कर ली है। दो महीने बाद मेरी ट्रैनिग शुरू हो जाएगी ।
पापा:- अच्छा ये बात है तो फिर कोई समस्या नहीं हमें। तुम लोग कभी भी शादी कर सकते हो। तुम दोनों होनहार हो, समझदार हो।
देवा तुमने उच्च क्लास की परीक्षा पास की है, बहुत बढ़िया बेटा ।
रूपा:- पापा जब देवा की ट्रेनिंग हो जाएगी तब हम शादी कर लेंगे।
पापा:- बिलकुल कीजिए बेटा कोई टेंशन नहीं ।
फिर दो वर्ष बाद रूपा और देवा शादी की शादी हो गई और वो दोनों साथ-साथ रहने लगे। उनके घर एक बेटा और एक बेटी ने जन्म लिया और बन गया एक "छोटा सा परिवार"
"खुशहाल परिवार" ।

