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Hardik Mahajan Hardik

Abstract

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Hardik Mahajan Hardik

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डर के सायों में

डर के सायों में

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डर के सायों में जी रहे है, कैसे हम अब यूँ डर-डर के जीयेंगे, *घमंड का करके परित्याग* अब डर के सायों से बाहर आना है।

हमारे खरगोन शहर कि दुर्दशा का हुआ बुरा हाल है।

कैसे करें हम हमारे खरगोन कि तुलना लोग बेख़बर आज बेख़ौफ़ हुए है, हर जगह आगज़नी हर जगह पथराव चारों और जो देते थे भाई चारे का संदेश आज वो ही लोग नीचें गिर गए है।

हर जगह ख़ामोशी का मंज़र हर जगह आगज़नी हर जगह डर का साया जिसमें रहने को आज हम खरगोन वासी सभी हुए है।

पथराव के बाद भी आज डर के साँयों में मजबूर है, जिंदगी और मौत आज बेख़ौफ़ हमारे नज़दीक है, कैसे जीयेंगे हम कैसे ज़ख़्म पर लगे घाव अपने सी पाएंगे।

जो लोग देते थे मीठी मीठी बातें करके भाई चारे का संदेश आज वो ही लोग खरगोन शहर में हमारे सब पर प्रहार कर रहें है।

 इतना घमंड किस बात का है.?

इतना घमंड क्यूँ उनका है.?

कैसे करें इसकी तुलना आज खरगोन शहर अंधकार में है, रातों को चैन से सो ना पाए हम तीन दिनों से यही हालात हमारे है, डर डर कर जीना अब हमें नहीं है।

घमंड भाव का करके परित्याग अब हमें खरगोन शहर को बर्बाद होने से रोकना है, हिल मिलकर एक दूजे के साथ हमें अब कुछ करना है।

जितना भी घमंड हो उनका मिलकर तोड़कर हमें अब चूर-चूर करना है।


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