Lokanath Rath

Tragedy Inspirational

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Lokanath Rath

Tragedy Inspirational

डर के बाद.....

डर के बाद.....

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अंजलि सिन्हा आज देश की राष्ट्रपति जी से उसकी सेवा के लिए विशिष्ट सेवा पदक लेने जा रही है। आज अपनी इस तीस साल की उम्र मे पहेली बार ख़ुश तो हो रही है पर अपनी पिता माता को बहुत याद कर रही है।


कप्तान अशोक सिन्हा देश की सेना के एक जाबाज सिपाही थे। बचपन से उनको सेना मे भर्ती होने का सपना था। वो उसके लिए अपनी पढ़ाई के दौरान तैयारी भी चालु कर दिए थे। पढ़ाई ख़तम करके वो सेना मे भर्ती हों गये। उसके लिए उनको बहुत मेहनत करनी पड़ी। सेना मे काम करते वक़्त उनकी मुलाकात अनीता से हुई। वो एक हस्पताल मे काम करती थी। उसी हस्पताल मे अशोक अपनी माँ का इलाज करवाने गये थे। उनका शहर पटना मे था। वहां अनीता के सेवा करने के जोश को देखते हुए अशोक मन ही मन उसे पसंद कर लिए थे। जब अशोक को पता चला की अनीता एक अनाथ लड़की है, तब अशोक उसको और पसंद करने लगे। कुछ दिन उस हॉस्पिटल मे रहेने के बाद उनकी माता का निधन वहीं पर ही गया। फिर अशोक अपने कार्यस्थल पर आ गये। आने से पहेले वो सुनीता को मिलकर आये थे और उनकी मन का बात उसको बोल दिए थे। सिर्फ उनको अनीता की जवाब की इंतजार था। एक महीने बाद अनीता का जवाब मिला। फिर दोनों शादी के बन्धन मे बंध गये। उनकी शादी के दो साल बाद अंजलि उनकी दुनिया में आयी। दोनों बहुत ख़ुश थे। जब अंजलि सात साल की थी तब अनीता का देहांत हो गया।

अपनी बच्ची को साथ लेकर अशोक कुछ दिन रहे। बाद मे फिर अंजलि को एक बोर्डिंग स्कूल मे दाखिला दे दिए। अंजलि पढ़ाई मे खूब तेज थी। अशोक बहुत ख़ुश होते थे उससे मिलकर। जब भी अशोक अंजलि से मिलते थे, उसे सदा वीरों की कहानी, अपनी सेना की कहानी बोला करते थे। वो उसे बोलते थे की कभी भी कोई अगर मुसीबत आ जाये तो डर तो लगेगा, पर डर कर हार नहीं मानना। जब अंजलि आठवी कक्षा में थी तब एक युद्ध मे अशोक वीरगति को प्राप्त किये। अंजलि बहुत डर गयी थी। अकेले पिता माता के बिना वो कैसे जियेगी, वो फिर क्या करेंगी, ये सब उसको बहुत सताया।

एक दिन रात को उसको अपने पिता की कही हुई बात याद आ गई। उसने फिर ठान लिया की अब ये डर की बात उसको अपने आप को संभालनी होगा और आगे बढ़ना होगा। वो फिर खूब मन लगाकर पढ़ने लगी उसके पिता के जो पैसे थे उसमे उसकी पढ़ाई मे कोई दिक्कत नहीं हुई। अपने ग्रेजुएशन के बाद वो सेना मे नौकरी के लिए इम्तहान दी और उसमे उसको कामियाबी मिली। वो सेना मे एक कप्तान के हिसाब से नौकरी करने लगी। अभी सीमा पर हुई लढाई मे उसकी नेतृत्व मे दुश्मन के पुरे शिवीर को ध्वस्त कर दी। अपनी देश के सम्मान का रख्या अपनी जान की फिकर ना करते हुए की है। इसीलिए उसे ये विशिष्ट सेवा पदक मिलने जा रहा है। वो अपनी आँखों से बहते हुई आंसू पोंछ कर अपनी पिता माता की तस्वीर के सामने माथा टेक कर अपनी वर्दी पहन कर निकल पड़ी। जाते जाते अपनी पिता को बोली, "डर के बाद कामियाबी। आप के सिखाये हुए रास्ते मे जाकर मुझे मिली।" अपने पिता को एक सैलूट दे कर वो निकल पड़ी राष्ट्रपति भवन।।


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