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Vijaykant Verma

Tragedy

4  

Vijaykant Verma

Tragedy

डियर डायरी 21/04/2020

डियर डायरी 21/04/2020

2 mins
201


Dear Diary

21/04/2020

आह..! कोटा राजस्थान से आज 12 बसों में बैठकर 239 छात्र लखनऊ आये। इनमें कोई भी कोरोना पॉज़िटिव नहीं मिला। सभी को अपने घर भेज दिया गया। इन सभी के चेहरे पर बड़ी वाली मुस्कान थी..! सच, कितनी खुशी होती है जब कोई अपने घर परिवार में वापस आता है! वैसे अब तक विभिन्न सरकारी वाहनों से करीब दस हज़ार छात्र कोटा से अपने घरों को वापस आ चुके हैं।


कितनी अच्छी और कितनी खुशी की बात है यह..। फिर ये आह क्यों..? दोस्तों, ये आह..! उन मजदूरों की है, जिन्हें लॉकडाउन होने के कारण अपने घर वापस नहीं आने दिया जा रहा है..! अब यहां पर बहुत सारे सवाल है। इन छात्रों के लिए कोटा में रहने खाने की सब सुविधाएं थी। हॉस्टल था। सिर्फ एक ही समस्या थी, कि अपने घर-परिवार से दूर थे। लेकिन मानवीयता के आधार पर उन्हें घर वापस लाया गया। उनके लिए बसों की व्यवस्था की गई। रास्ते के लिए भोजन पानी का प्रबंध किया। गया। उनका रैपिड टेस्ट किया गया। इन सभी के लिए सरकार को शत शत सलाम..!


दोस्तों, इन छात्रों के चेहरे पर खुशियां देखकर क्या एक मजदूर के मुंह से आह..! नही निकलेगी..? मजदूरों के पास तो कोई काम भी नहीं है। और वो भी अपने घर परिवार से दूर हैं। उनके पास खाने को भी नहीं है। तो क्या इसे भेदभाव नहीं कहा जाएगा..? 


जिस तरह सरकार कोटा से छात्रों को वापस ले आई, क्या इन गरीब मजदूरों को अपने घर वापस नहीं पहुंचा सकती? इन छात्रों के वापस आने से लॉकडाउन नहीं टूटा, तो इन मजदूरों के आने से लॉकडाउन कैसे टूट जाएगा..? सच तो यह है, कि यह सारा खेल गरीबी और अमीरी का ही है..!


हमारा संविधान कहता है, कि नियम सबके लिए बराबर होने चाहिए। यह नहीं होना चाहिए, कि किसी को तो नियम में छूट दे दी, और किसी को नियमों में के बांध दिया..!


अगर डेढ़ दो महीने तक ये मजदूर लॉकडाउन में फंसे रहे और अगर यह मान भी लिया जाए, कि इनको आपने दो वक्त भरपेट बढ़िया भोजन खिलाया, तो प्रति मजदूर क्या हज़ारों का खर्चा नहीं आएगा..? क्या इससे कम पैसों में आप इन मज़दूरों को उनके घर वापस नहीं भेज सकते थे..?


और एक सच यह भी है, कि इन हज़ारों मजदूरों को दोनों वक्त रोटी पानी देना और उनके रहने की व्यवस्था करना और साथ में डिस्टेन्स रूल का भी पालन करना, यह बहुत ही कठिन टास्क है। और आसान और किफायती तरीक यही है, कि इन सभी मजदूरों को अपने घर पहुंचाने की व्यवस्था की जाए, जिससे वो भी अपने घर परिवार में पहुंचकर सुखचैन से कुछ दिन रह सके..!


होता है अक्सर यहां ऐसा, कि हम किसी के भले का सोचते है!

लेकिन भला करना तो दूर, हम और भी दुख में उन्हें डुबो देते हैं!!



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