डियर डायरी। 13/04/2020
डियर डायरी। 13/04/2020


Dear Diary 13/04/2020
मैंने 28 मार्च की अपनी डायरी में लिखा था, कि उद्योग धंधों को बंद नहीं करनी चाहिए, बल्कि इन उद्योगों को इस शर्त पर चलने देना चाहिए कि फैक्ट्री में ही मज़दूरों के रहने, खाने की व्यवस्था की जाए। और आज यह जानकर खुशी हुई, कि इन्हीं शर्तों पर प्रधानमंत्री मोदी ने उद्योग धंधों को चलाने की सिफारिश की है और संभवत 15 तारीख से उद्योग धंधे शुरू हो जाएंगे। मज़दूरों को काम मिलने लगेगा। मैंने यह भी लिखा था, कि घर मकान आदि बनाने के काम में लगे मज़दूरों को काम करने की छूट मिलनी चाहिए और उनको भी छूट मिल गई है। देर से ही सही, परंतु यह एक सही कदम है। अगर यह निर्णय पहले ही ले लिया गया होता, तो आज लाखों मज़दूरों को लॉकडाउन के दौरान अपना काम छोड़कर भागना न पड़ता और लॉकडाउन का भी उल्लंघन न होता। यह बहुत दुख की बात है, कि लॉकडाउन के दौरान लाखों लोग बेरोजगार हो गए, जबकि लाखों लोगों ने इस दौरान जमकर कमाई भी की। खानपान की सभी वस्तुएँ महंगे दामों पर बेची गई। मास्क को जरूरी बताकर लागत मूल्य से दुगने चौगुले दामों पर इन्हें बेचा गया। कुछ समय पहले कोरोना टेस्ट का छह हजार रुपये सरकार ने निर्धारित किया था। मगर इस बात का कहीं भी जिक्र नहीं किया गया, कि कोरोना का टेस्ट करने में वास्तविक लागत कितनी आती है। यह बात पूरी तरह से अपने सर के ऊप
र जा रही है की कोरोना टेस्ट करने में हजार रुपये का भी खर्च आता होगा..!
एक दो ऐसी खबरें भी सुनने में आई, कि सिर्फ चालीस या पचास रुपये में भी आप टेस्ट कर सकते हैं, कि आपको कोरोना है या नहीं। लॉकडाउन के दौरान करोड़ों लोगों के खाते में पांच सौ और हज़ार रुपये भेजे गए। इन रुपयों को निकालने के लिए भी बैंकों में लंबी-लंबी लाइनें लगी। लॉकडाउन भी टूटा। और सरकार के खाते से हज़ारों करोड़ रुपए निकल गए। मेरे विचार में लॉकडाउन के समय बैंकों में यह पैसा भेजना सही नहीं रहा। सरकार को पार्षदों, सेक्टर वार्डन, ग्राम प्रधान, पुलिस और समाज सेवकों की मदद से घर घर रोटी और अन्य जरूरत का सामान निशुल्क पहुंचाना चाहिए था। अगर ऐसा होता, तो सरकार का हजारों करोड़ रुपए न खर्च होता, न लॉकडाउन टूटता और न कोई भूखा मरता। दरअसल समाज सेवा में सबसे बड़ी बाधा हमारे अंदर नैतिक मूल्यों का ह्वास है..! यहां मुसीबत के समय में भी लोगों की सेवा में लगे लोग अपना लाभ देखने लगते हैं और कमाई का साधन ढूंढने लगते हैं..! पर जो हुआ सो हुआ, हमें आगे के बारे में सोचना चाहिए और यह संकल्प लेना चाहिए कि कम से कम ग़रीब और मजबूर लोगों के साथ आप अन्याय न करें और उनकी रोटी न छीनें..! क्योंकि~ चार मीटर कफन में ही जाओगे तुम मर कर..! मुश्किल होगा जवाब देना ऊपर वाले के दर पर..!! ~विजय कांत वर्मा