Arun Tripathi

Abstract

4.8  

Arun Tripathi

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डेजी

डेजी

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मैं बस में बैठा अपने स्मार्ट फोन में बिजी था . अभी तीन घंटे का सफर और तय करना था . बस एक ढाबे पर रुकी . यात्रीगण बस से उतर अपनी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने लगे . मैं भी नीचे उतरा और ढाबे के पीछे जाकर लघुशंका की और फिर एक कप चाय लेकर सुड़कने लगा . चाय पीकर मैं बगल की पान की दुकान पर पहुंचा और माउथ फ्रेशनर ख़रीदा ...चाय अच्छी बनी थी ....मन तृप्त हो गया .

सूर्य अस्ताचल गामी हो रहे थे . गोधूलि की बेला बीत रही थी और निशा ...धरती को अपनी आगोश में लेने के लिए बेचैन हो रही थी .यात्री बस में बैठने लगे और मैं भी टहलते हुए बस की ओर चला ....

तभी एक तीन साढ़े तीन साल की बच्ची मेरे पैरों के गिर्द आ लिपटी ....और पापा ...पापा कहने लगी . मैंने उसे गोद में उठा लिया और वापस पान शॉप पर पहुँचा ...दो चॉकलेट खरीदी और उसे पकड़ाया ...वो खाने लगी .

मैं इधर उधर देख रहा था ...ये बच्ची किसकी है ? मुझे ऐसा कोई न दिखा ...जिसे देख कर मैं कुछ अनुमान लगा पाता ....तभी मेरी बस का हॉर्न बजा ....मैं उसे अनसुना कर ढाबे के संचालक के पास पहुंचा लेकिन वह भी अनभिज्ञ ठहरा . ...कंडक्टर मुझे आवाज दे रहा था . मैं बस तक पहुँचा और ड्राइवर ...कंडक्टर को बच्ची के विषय में बताया जो मेरी ऊँगली पकड़े खड़ी थी .....

कंडक्टर बोला ...." अरे साहब क्यों बवाल में फंसते हैं ?...इसे यहीं छोड़िये और अपनी गाड़ी पकड़िये .." 

मैंने बच्ची को देखा ...उसके मासूम चेहरे पर रुलाई आना चाहती थी ...वो शायद समझ रही थी कि मैं उसे यहीं छोड़ कर जाना चाहता हूँ ...

मेरी आत्मा को ये गवारा न हुआ कि मैं इस मासूम को छोड़ कर चला जाऊँ ...मैंने अपना बैग बस से उतार लिया . कंडक्टर नें हैरानी से मुझे देखा तो लेकिन कहा कुछ नहीं ....और बस चली गई . 

शाम ...सात बजे मैं उस बच्ची के साथ पुलिस स्टेशन में बैठा था . मैंने तफ़सील से सारी बात पुलिस अधिकारी को बताई . वह निर्लिप्त भाव से मुझे देखता रहा और बोला ...." भाई साहब ! मैंने आपकी सूचना दर्ज कर ली है ...इस बच्ची की फोटो भी ले ली है . अब अगर कहीं इसकी गुमसुदगी दर्ज होगी तो पता चलेगा . बहरहाल जो भी होगा ...हम आपको सूचित करेंगे . " 

मैं उठ कर चलने लगा ...बच्ची नें मेरी ऊँगली पकड़ रखी थी और इस बीच कई बार उस पुलिसवाले के सामने मुझे ..." पापा " कह चुकी थी .

वो पुलिस अधिकारी मुस्कुराया और बोला ..."बच्ची आपके साथ खुश है और आपको  "पापा " कह रही है . जाइये और पिता होने का कर्तव्य निभाइये !"

और मैं दूसरी बस में बैठ कर उस बच्ची को खिलाते पिलाते ...रात ग्यारह बजे अपने घर पहुँचा . बच्ची मेरी गोद में सो चुकी थी और मैं उसे सीने से लगाये अपना बैग पीठ पर लादे अपने घर मैं घुसा . माँ नें उस बच्ची को मेरी गोद में आश्चर्यमिश्रित कौतूहल से देखा . मैंने चुपचाप उसे अपने बिस्तर पर लिटाया और उसका चुम्बन लिया और माँ मेरे पास आई . 

"ये बच्ची किसकी है ?"....माँ नें पूछा .

मैं बोला ..".मुझे भी नहीं पता . रास्ते मैं मिली . पुलिस को सूचना दे दी है . इस समय मैं इस मासूम को कहाँ छोड़ आता ....इसलिए घर ले आया . मुझे नींद आ रही है ...जल्दी से कुछ खिलाओ ...सुबह बात करेंगे ."

सुबह मेरी आंख खुली ...वो मासूम मेरे सीने से चिपकी गहरी नींद में भी मुस्कुरा रही थी . मुझे उसका इस तरह सोना बहुत सुखद लगा और वात्सल्य भाव से मैंने उसका चुम्बन लिया ....उसकी आँखे खुली और वो मेरी आँखों में झांकती हुई बोली ..." पापा " और मैं अभिभूत हो उठा .....

एक महीना हो गया था उसे मेरे घर में आये . वो मुझे पापा कहती ....माँ को मेरी ही तरह माँ कहती और बाबू जी को बाबू जी . इस तरह वो सबसे ऐसी घुलमिली कि जैसे वो इसी घर में पैदा हुई हो .बस एक ही बात उसे बर्दास्त नहीं थी ....वो मुझसे दूर नहीं रह सकती थी .मैंने उसके वास्तविक माता पिता का पता लगाने की हर संभव कोशिश की लेकिन कुछ पता न चला .


मैं स्वयं मनोविज्ञान से परास्नातक कर रहा था और एक कंपनी में पार्ट टाइम जॉब करता था . मैं बिना विवाह किये ही एक पिता बन गया था उसके

"पापा " कहने से मुझे एक अनाम खुशी मिलती और मुझे अजीब महसूस अब नहीं होता था . मैं बेहद जिम्मेदार हो गया . दोस्तों के साथ पार्टी वार्टी बंद हो गई . दस घंटे से ज्यादा घर से बाहर रहना हो तो ये न मुझे मंजूर था और न ..." डेजी " को .

एक दिन उसकी कुछ तबियत खराब थी . बाबूजी कहीं बाहर गए थे ...माँ कहीं और व्यस्त थी और मुझे शाम चार बजे से रात आठ बजे तक की डियूटी बजाने कंपनी आफिस पहुँचना था ........मैंने उसे गोद मैं उठाया . डॉक्टर को दिखाया . दवा खिलायी ...और उसे लेकर ऑफिस पहुँच गया . कुल मिला कर उस दिन ऑफिस में सबको पता चल गया कि मेरी एक प्यारी बेटी है और मैं उसे बहुत प्यार करता हूँ .

मेरी कुलीग अंजली नें पूछा ...."तुमने शादी कब की ?"

मैनेजर बोला ..."तुम्हारे प्रोफ़ाइल में तो अनमैरिड लिखा है फिर ये बेटी ...?"

मैंने सबको एक ही जवाब दिया .....

"मैं कुंवारा हूँ और इसका वास्तविक पिता नहीं हूँ फिर भी ये मेरी बेटी है और जीवन भर रहेगी क्योंकि मैं इसका " पापा " हूँ" .

इस तरह ...हर जगह लोगों के कौतूहल भरे प्रश्नों का जवाब देते देते चार साल बीत गए और " डेजी " दूसरी कक्षा की विद्यार्थी के रूप में पढाई खेलकूद सहित हर चीज में अव्वल रहने लगी .जब वो मुस्कुराती तो मेरे हृदय में खुशियों के झरने फूट पड़ते . उसकी हर इच्छा मेरी इच्छा और खुशी मेरी खुशी बन गई .

इसी बीच मेरा " नैदानिक मनोविज्ञान " का पी जी डिप्लोमा भी पूरा हो गया और मुंबई के एक बड़े संस्थान में मुझे एक अच्छी नौकरी मिल गई . 

न मैं डेजी के बिना रह सकता था और न डेजी मेरे बिना ...और मैं उस सात साल की बच्ची को साथ लेकर मुंबई आ गया .मैंने उसका एक अच्छे डे बोर्डिंग स्कूल में एडमिशन कराया . सुबह पांच बजे उठ कर ब्रेकफास्ट और लंच तैयार करता ....फिर उसे उठा कर तैयार करता ...उसकी चोटी गूंथता साथ साथ उसे भी ब्रेकफास्ट खिलाता और खुद भी खाता ....नौ बजे उसे स्कूल छोड़ कर ऑफिस पहुँचता और शाम पांच बजे उसे लेकर घर पहुँचता .

मेरी दुनिया " डेजी " से शुरू होती और उसी पर खत्म होती . मेरे पडोसी मुझे बड़े आदर भाव से देखते और आपस मैं चर्चा करते ....कैसे मैं अकेले ही अपनी बेटी को इतना अच्छे से पाल पोस रहा हूँ ....अनुमान लगाते ....शायद शादी जल्दी हो गई होगी और पत्नी ...बेटी को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई होगी .....

न मेरे पास इन सवालों का कोई माकूल जवाब था और न ही इतनी फुर्सत कि मैं इनका जवाब देता ....लेकिन मेरे घर वाले चिंतित हो रहे थे और मुझ पर शादी का दबाव बढ़ता जा रहा था .....और एक दिन मेरी माँ का फोन आया .....उन्होंने शादी का अल्टीमेटम दिया और कहा ....

" मैं तुम्हारे बाबू जी के साथ आ रही हूँ . मेरे साथ लड़कीवाले भी होंगे और लड़की भी ...तुम दोनों एक दूसरे को समझबूझ लो और शादी करो ...मैं अब और इंतजार नहीं कर सकती !!" 

मैंने एक लम्बी साँस खींच कर फोन रख दिया .


तीन दिन बाद वीक एंड पर ...मेरी माँ , मेरे बाबू , उन्ही की उमर के एक साहब ...उनकी पत्नी और एक पचीस साल की खूबसूरत लड़की ...ये सारे लोग मेरे फ्लैट पर पहुँचे .डोरवेल बजी और डेजी नें दरवाजा खोला और माँ बाबू को देख खुश हो गई ....माँ की गोद में चढ़ कर वो पंचम स्वर में बोली .....पापा ..पापा ...माँ आई है ...बाबू भी साथ आये हैं . मैं बाथरूम में था ...जल्दी से तौलिया लपेट ...कपड़े पहनता मैं बाहर आया और तीन अजनबियों को माँ बाबू के साथ देख सकपकाया ,अभी मैं किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा था कि ....माँ के साथ खड़ी वो औरत बोली .....

"तो आपके एक नातिन भी है ...! आप नें बताया नहीं !! हम अपनी बेटी की शादी किसी ऐसे आदमी से नहीं कर सकते ...जिसके पहले से ही एक बेटी हो !"

अब माँ बाबू क्या जवाब देते ? वे मेरा मुँह देखने लगे और मैं बोला ..."देखिए ये मेरी बेटी है और मैं इसका पापा ..लेकिन मैं विवाहित नहीं हूँ ."

अब तो वे और भी हैरान हुए ....

मैंने उनके स्वागत में जलपान की व्यवस्था की और स्विगी पर लंच ऑर्डर किया .सामने सोफे पर वो पचीस साल की खूबसूरत लड़की अपने माता पिता के साथ बैठी थी . मेरे अगल बगल माँ बाबू बैठे थे और डेजी ....मेरी गोद में .चाय का दौर समाप्त हुआ और डेजी मेरी गोद से उतर कर सेंटर टेबल से सावधानी से एक एक क्राकरी उठा कर किचेन में ले जाने लगी ...तभी वो लड़की उठी और कप प्लेट और अन्य सामान करीने से उठा कर डेजी के साथ किचेन में चली गई .

इधर शादी की बात गंभीर मोड़ पर पहुँच चुकी थी . हम लोग पैंतालिस मिनट से इसी बात पर चर्चा कर रहे थे और उधर वो लड़की ... डेजी के साथ किचेन में बैठी ..जाने क्या कर रही थी ?लड़की की माँ और पिता दोनों ही शादी के लिए तैयार नहीं थे . मुझे भी कोई इंट्रेस्ट नहीं था ...और डोरवेल बजी ...

जब तक मैं उठता वो लड़की आयी और स्विगी का लंच रिसीव कर वापस चली गई . डेजी के साथ उसने डाइनिंग टेबल पर लंच सर्व किया . लेकिन वो लड़की फिर डेजी के साथ किचेन में चली गई ...उन दोनों नें वहीं बैठ कर लंच किया .

अंततः बातचीत अपने अंजाम तक पहुंची और लड़की की माँ नें ऊँचे स्वर से घोषणा की ....हमें शादी मंजूर नहीं . और कुछ देर के लिये सन्नाटा छा गया .

डेजी को गोद में उठाये वो लड़की किचेन से बाहर आयी और निर्णय सुनाया ....."लेकिन मुझे शादी मंजूर है ...."मैं हैरानी से उसका मुँह देखने लगा और फिर उसे ऊंच नींच समझाने की कोशिश की ...लेकिन वो टस से मस न हुई ......

और बोली ..."मुझे आपकी पत्नी बनने में उतनी रुचि नहीं है ..मैं तो " डेजी की मम्मी " बनना चाहती हूँ ."

मैंने डेजी को देखा वो " अपनी मम्मी " के गले से लिपटी मुस्कुरा रही थी ...मैं क्या करता ? जब डेजी को मंजूर है ...तो मुझे क्यों न होता ?



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