डे 33 : मेरे अपनों का दर्द
डे 33 : मेरे अपनों का दर्द
डे 33 : मेरे अपनों का दर्द :26.04.2020
कोरोना पेशेंट्स 26500 के लगभग आ चुके हैं ।
19000 का इलाज चल रहा है
6000 ठीक हो चुके हैं
600 की मृत्यु हो गयी है ।
4 लाइन में कोरोना का ये ज़िक्र एक रोबोटिक प्रक्रिया सा मालूम देता है । ज़िक्र इसलिए ज़रूरी है कि इस महामारी से से मेरा देश जूझ रहा है और ये आंकड़ें ज़ेहन में याद रखना ज़रूरी है । सर्वप्रथम तो विश्वास ही नहीं होता कि ऐसा कुछ हो भी सकता है ;लेकिन अब करना पड़ रहा है । कोई वायरस इतना शक्तिशाली हो जायेगा कि वो बस खांसकर - छीककर आपको मौत का एहसास कराएगा । मौत 600 की ही हुई है , ऐसा बिलकुल मत समझना ; क्यूंकि यहाँ सरकार आपसे थोड़ा सा झूठ बोल रही है ; क्यूंकि अगर सच कह दिया तो आप तो डंडा लेकर सड़कों पर उतर जाओगे ।
मेरी एक करीबी दोस्त थी - ख़ुशी । दोस्त तो आज भी है - बहन जैसी दोस्त । लेकिन ये दोस्ती एक ऑनलाइन प्लेटफार्म की है ;जहाँ चैटिंग होती है , माइक दिया जाता है बात करने को और वीडियो कालिंग भी कर सकते हो । व
हीँ मिली थी मुझे 'ख़ुशी '। चुलबुली , चंचल और सबको अपना समझ कर बात करने वाली । खान को खानू कहकर प्यार जताने वाली , सुमित को सुमितवा कहकर उठाने वाली और मुझे चिड़िया की तरह बुलाने वाली मेरी नन्ही सी दोस्त ; ख़ुशी । उसके अंकल की कोविड -19 में मृत्यु हो गई । आज यू .के. में , ६० साल के लगभग थे , हार्ट के पेशेंट थे , डायबिटीज थी । एक मन कह रहा है कि कहीं तुम हर बीमारी पर कोविड - 19 का टैग तो नहीं चिपका कर दे रहे हो हमें ?
ऐसा महसूस हुआ जैसे दिल धक् से यह गया हो एक सेकंड के लिए । उस रात सोया नहीं गया मुझसे ।
उसने फिर भी रोकर कहा , "दुआ करना सिस" ।
"मेरी दुआ से वो वापस आ जायेंगे क्या ख़ुशी , बोलो ? "
पर ऐसा ही सब करते हैं । आँखें नम हैं किसी अपने के लिए और उसका अपना वापस नहीं आ सकता है । लगा जैसे मेरी ख़ुशी की ख़ुशी को किसी की नज़र लग गयी हो.
ऑंखें नम हैं और नींद पूरी नहीं हुई है फिलहाल,
कोरोना का कहर मेरे अपनों पर है बरकरार ।