डायरी

डायरी

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"आनन्द, तुम संभाल लोगे ना?"

कविता ने डरते हुए पूछा।

"अरे! तुम अगर इतनी टेंशन लेकर जाओगी तो कैसे जाओगी? मुझे तुम पर पूरा विश्वास है, ऐसा कहकर जाना चाहिए तुम्हें। मतलब पति पर तुम्हें कोई विश्वास ही नहीं है?"

" नहीं वो बात नहीं है आनन्द, तुमने अकेले कभी मैनेज नहीं किया ना, दोनों बच्चों के साथ इसलिए पूछा।"

" नहीं, तुम बेफिक्र होकर जाओ। मैं सब संभाल लूँगा।"

" राखी, अगर शाम को नहीं जा रही होती, तो मैं कल बच्चों की छुट्टी करा लेती और अपने साथ ले जाती। उससे मिलना जरूरी है। पूरे पाँच साल बाद मिल रही हूँ और फिर पता नहीं उसका कब दिल्ली आना हो?"

" तुम जाओ।"

आनन्द ने उसकी चिंता पर मुस्कुराते हुए बाहर की ओर कविता को धकेला।

" अच्छा! बच्चे दो बजे आते हैं। तुम ले आना ध्यान से, ठीक है।"

गेट बंद करते हुए कविता ने कहा।

घर के अन्दर आते ही,आनंद सो गया आखिर कब समय मिल पाता है अकेले में सोने का मजा ले पाए।फोन की घंटी बजी, बंद आँखों से आनंद ने फोन देखा तो आँखें चौड गई। वो तो अच्छा था कविता का फोन था, जरूर पूछने के लिए फोन किया होगा

," क्या तुम बच्चों को लेने के लिए निकल गए।"

पौने दो हो चुके थे।एक मिनट में कविता आवाज से पहचान लेती कि वो बिस्तर में है। इसलिए फोन उठाने की बजाया आनंद बस स्टॉप की तरफ निकल दिया। बच्चों को लेने की बाद कविता को कॉल बैक करके तसल्ली दे दी

,"मैं बच्चों को ले आया हूँ।यार ये बच्चे बहुत परेशान करते हैं तुम कैसे मैनेज करती हो कविता?"

कविता ने हँसते हुए कहा

," तुम एक ही दिन में परेशान हो गए। चिंता मत करो में निकलने वाली हूँ। एक घंटे में पहुँच जाऊँगी।"

आनंद की फिर फोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ रवि था। रवि आलोक का नंबर माँग रहा था। आलोक, रवि और आनन्द का म्यूच्यूअल फ्रेंड, जिससे अब आनंद की बातचीत नहीं है और फिलहाल फोन में उसका नंबर भी सेव नहीं क्योंकि उसने अपना फोन फॉर्मेट किया था, जिसमें सभी नंबर डिलीट हो गए, लेकिन!आनन्द एक डायरी में जरूर अपने सारे नंबर नोट करके रखता है। आनंद ने रवि को दो घंटे बाद फोन करने के लिए के लिए कहा।जिससे वो अपना रखा हुआ नंबर ढूँढ सके, अब तक उसने कभी किसी रखी हुई चीज को नहीं ढूँढा है। बोलने से पहले ही, कविता हर चीज उसके हाथ में लाकर रख देती है। एक डायरी ढूँढने में इतना समय तो लग ही जाएगा। पूरी अलमारी छान मारी, पर कहीं डायरी नहीं मिली।

शायद! कविता को पता हो अगर उसे फोन किया तो फिर से वही कहेगी कि

" मैं कुछ संभाल नहीं सकता।"

अपनी डायरी ढूँढते वक्त, एक दूसरी डायरी जमीन पर गिर पड़ी। आनन्द ने जमीन से उठाया, उसका अंतिम लिखा हुआ पैरा खुल गया, जिसमें पैन पड़ा था। कविता ने कभी नहीं बताया कि वो डायरी भी लिखती है? डायरी पढ़ना गलत बात है लेकिन दूसरों की सीक्रेट पढ़ने में मजा आता है, और फिर वो मेरी पत्नी है। मेरे और उसके बीच में क्या छुपा है? यही सोच कर आनन्द ने पढ़ना शुरू किया। उस पन्ने की हैडिंग थी

"संदूक" ।

आनन्द की जिज्ञासा बढ़ गई। आखिर! ऐसी किस संदूक का जिक्र है, जिसे आनन्द दस साल में नहीं जान पाया?

2/6/2017

संदूक

" गर्मियों की छुट्टियाँ आते ही न जाने कितने जोक WhatsApp पर और Facebook पर पढ़ती हूँ , जो पत्नियों पर ही बनाए जाते हैं , पति को आजादी मिलती है , अपनी पत्नी से जब वो गर्मी की छुट्टियों में अपने मायके जाती है ।

सच पूछो! तो ये सिर्फ पति की छुट्टियाँ नहीं होती छुट्टियाँ होती हैं , उस लड़की की भी जो सब कुछ छोड़कर तुम्हारे साथ बंधी थी । कभी इतना आसान नहीं था सबकुछ जितना आज दिखता है । कभी वो रोई भी थी वहाँ से लौटते वक्त , शायद हर बार । अब रोती नहीं है ।तुम्हारी , तुम्हारे घर की आदत हो गई है । सबको अपना चुकी है।

शायद! अब एक शब्द ही है" मायका" ।क्या दस साल पहले इतना आसान था एक शब्द तक आना? अब तो बड़ी आसानी से कह देती है, माँ इतने दिन नहीं रुक सकती पूरा घर अस्त-व्यस्त हो जाता है , मेरे ना होने से। कभी उसने रो कर ये भी कहा था माँ , मैं नहीं जाना चाहती , मेरा मन नहीं लगता वहाँ ।शादी एक ऐसा सत्य है ,जो सबके जीवन में आता है ।हर लड़की को सब कुछ छोड़ कर आना ही पड़ता है। यही एक राहत का कारण है , वो उसे सहजता से स्वीकार भी कर लेती है।

अगर! ये बात उसे पहले से पता ना हो , तो सोचो, कितना मुश्किल हो जाएगा , सब कुछ उसके लिए ।छोड़ आती है वो सब कुछ , जिसे वो अपना समझती थी। एक नई दुनिया को अपना समझने के लिए। एक पल , विदाई के समय ऐसा लगता है कि सब रिश्तों को छोड़ दिया है उसने पीछे ।

रोती हुई सिसकियों में ढूँढती है उन सब अपनों को , जिनसे आखरी बार मिल ले , वो भाई , वो मामा- मामी, चाचा-चाची , ताऊ- ताई सब रिश्तों से गले लग कर रोना चाहती है , लेकिन वो रिश्ता , जिससा वो शायद जिंदगी में दूसरा ना बना पाएगी" पापा "। पापा कहाँ हैं? पापा कहीं नहीं दिखते । चारों तरफ नजर दौड़ने के बाद भी पापा नजर नहीं आते ,गले लग कर रोना चाहती है कि मैं जा रही हूँ , पापा कैसे नजर आएंगे ? पापा तो पुरुष है ना ,पापा पांडाल के पीछे छुपकर रो रहे हैं। नहीं देख पाएंगे वो अपनी बेटी को जाते हुए ।

दहलीज पर अपने हाथों की छाप के साथ अपनी एक संदूक छोड़कर ।एक मोटर गाड़ी में बैठ जाती है ।पीछे रह जाते हैं वो घर , वो गलियाँ , वो मोहल्ले , वो सड़कें , वो पेड़ पत्ते , नुक्कड़ , दुकाने ,सहेलियाँ। साथ जाती है एक पोटली, कहीं गाड़ी के ऊपर लदी , गाड़ी के पीछे दौड़ती ,गाड़ी के साथ-साथ दौड़ती अनगिनत यादों की। जिन्हें आजीवन नहीं भूल पायेगी।

दूसरे घर आकर अपने पैरों की छाप उस घर में छोड़ दी। क्या इतना आसान होगा दूसरे घर जाकर अपनी पहचान बनाना? दूसरे घर में हर चीज परायेपन का एहसास दिलाती है। चाकू चम्मच से लेकर हर वो इनसान जो अपनों जैसा रिश्ता रखता है।

अब कभी ये नहीं कहती, उसको सब्जी में धनिया पसंद नहीं है। अब हर सब्जी में धनिया डालती है। ये नहीं कहती, उसे बिना अचार के खाना नहीं खाना। अब ये नहीं कहती, उसको तोरई, घीया पसंद नहीं है । सच पूछो तो कुछ खाने का दिल ही नहीं होता।

अपनी शादी की एल्बम निकालकर घरवालों को उसमें देखकर खुश हो जाती है। ये मेरे अपने है। वो अपने जब भी फोन करते हैं तो बहुत रोना आता है ,अब तो ससुराल वालों ने भी बोल दिया है , जब आप फोन करते हो ? तो ये बहुत रोती है । आप फोन कम किया करो , कितनी जल्दी मान गए ना वो ।अब कम फोन करते हैं। खाली कमरे में बैठी अपनी शादी की वीडियो बार-बार चलाती है। देखो मेरा भाई जो हर काम के लिए मना करता था , हर बात पर मुझको चिढ़ाता था , कितना रोया है मेरे लिए। क्या सच में इतना प्यार करता है?

आपको अंदाजा नहीं किस कशमकश से गुजरती है वो। शादी के कुछ दिन बाद मायके जाती है तो ,

वो हर चीज जिसे वह अपने अधिकार से लेती थी। आज हर चीज को लेने से पहले दस बार सोचेगी।ये बातें ना भी कहीं जाती हैं , ना ही कभी बताई जाती हैं ।लेकिन उसका मन एक पल में ही अचानक अपने आप पराया समझ लेता है।

अब तो दस साल गुजर गए ।हर साल की तरह इस साल भी आई है , गर्मी की छुट्टियों में अपने मायके रहने के लिए , हर बार की तरह कुछ पुरानी तस्वीरें , उसके बचे हुए पुराने सूट , उसकी सैंडल की एक जोड़ी जो कभी उसने जिद्द करके मंगवाई थी , उसके अनगिनत चश्मों के फ्रेम, पुरानी धूल में लतफत डायरी जब भी आती है , तो उन चीजों की संदूक को खोलकर जरूर देखती है । अपने पुराने सूटों को दोबारा पहनने की कोशिश ,और माँ का हमेशा बोलना

"अब तो दे दूँ ये सूट किसीको? अब तो तुझे आएंगे भी नहीं ,और पुराने भी हैं ।कोई और पहन लेगा , किसी और के काम आ जाएंगे।"

"नहीं ,नहीं , इन्हें किसीको मत देना ।"

"पता नहीं क्या करेगी ?इतने कपड़ों का कभी नहीं देने देती इनको कब तक संभाल कर रखेगी?"

"माँ मेरी भावनाएं जुड़ी हैं , इनके साथ ।"

"पता नहीं तेरा समझ में नहीं आता। संदूक अब तक बांधकर रखी है। भावनाएं जुड़ी है , परेशान हो गई हूँ, कबाड़े को संभालते संभालते।"

वो लड़की कभी सोचती है ले जाए उस संदूक को अपने साथ, वहाँ जो अब उसका अपना घर है, लेकिन नहीं ! जो जिंदगी उसने यहाँ जी, ये यादें और ये सामान भी वहीं रहना चाहिए। लेकिन लौटते वक्त उस संदूक को दोबारा बंद करके आती है, अगली बार के लिए कि जब वो अगली बार आए , तो उसे दोबारा से खोल कर जी ले अपने घर की यादों को , जो घर अब मायके शब्द में सिमट गया है। सब कुछ बदल गया, मेरा जीवन मेरे रिश्ते मेरा घर लेकिन नहीं बदली तो वो संदूक, तुम आज भी मेरे लिए उतना ही मायने रखती हो। जब तुम्हें खोलती हूँ तो हर बार मेरे घर की यादें दौड़ने लगती है मेरे साथ।"

डायरी के पन्ने पलटते हुए आनंद का दिल भारी था और साथ में ये बात भी मन में आई, कुछ बातें ऐसी होती है जिनका जिक्र किसी से नहीं किया जाता। डायरी न लिखती तो ये बातें शायद कविता के मन के किसी कोने में दबी पड़ी रहती। आयुष ने आकर आनंद की शर्ट पकडकर हिलाई," पापा मम्मी कब तक आएंगी?"

" अभी आने वाली होगी।" आनंद ने कविता को फोन किया," कहाँ हो?"

" बस पंद्रह मिनट में पहुँच रही हूँ।" पंद्रह मिनट बाद कविता घर पहुँचकर बहुत हैरान हुई। पूरा घर कहीं से अस्त व्यस्त नहीं था। जैसा छोड़कर गई थी बिल्कुल वैसा ही। बच्चे खाना खाकर होमवर्क भी चुके थे। कविता के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आई जब आनंद ने उसका स्वागत दो कप चाय से किया। कविता ने हँसते हुए पूछा,

"चाय तुमने बनाई है?"

" और कोई है क्या घर पर जो चाय बना दे?"

'" मुझे नहीं पता था, तुम इतने अच्छे से सब कुछ संभाल लोगे?"

" मैंने कहा था ना तुमसे तुम बेकार ही चिंता कर रही हो।"

चाय की चुस्की लेते हुए आंनद ने कविता से कहा,

" तुम्हारे मायके चले क्या? "

"क्यों,एकदम अचानक?"

इतने नखरे करके जाने वाला आनंद आज खुद से कैसे बोल रहा है? कविता थोड़ी सी हैरान थी।

"अरे वहां एक बहुत इंपॉर्टेंट चीज है"

" क्या?"

"तुम्हारी संदूक।"

"कौन सी संदूक?"

कविता सोच में थी आनंद आज कैसी अजीब अजीब सी बातें और हरकतें कर रहा है?

" अरे! वही संदूक जिसकी वजह से तुम हमेशा छुट्टियों में रहने के लिए जाती हो अपने घर। अगर! पहले पता होता तो उस संदूक को शादी वाले दिन ही साथ ले आते। जिससे तुम्हें वहाँ बारबार जाकर उसे देखने की जरूरत नहीं पड़ती।"

कविता ने दिखावटी गुस्सा करते हुए कहा

," आनंद तुमने मेरी डायरी पढी? बैड मैनर्स। पता है ना तुम्हें किसीकी डायरी नहीं पढनी चाहिए।"

" नहीं पढता तो पता कैसे चलता, तुम्हारा रोज-रोज मायके जाने का राज। मैं सोचूँ दस साल हो गए मेरे जैसे प्यार करने वाले पति के साथ रहते हुए भी तुम क्यों नहीं भूल पा रही हो अपने घर वालों को?"

कविता ने अपनी दोनों हाथ आनंद के गले में डालते हुए कहा,

" नहीं वो मायके की संदूक है उसे वहीं रहने दो शायद तुम्हें ना पता हो कि एक संदूक ससुराल की भी है"

" अच्छा वो कहाँ है?"

आनंद ने पूछा,"

उसमें भी खजाना है क्या?"

"हाँ बहुत अनमोल खजाना। मेरी शादी का जोड़ा। मुफलिसी में दिया गया, तुम्हारा पहला तोहफा, वो गुलाबी साड़ी। कुछ एहसास तुम्हारे पहले स्पर्श और आलिंगन के। तुम्हारी वो शर्ट जिसकी खुशबू से कभी तुम्हारे होने का एहसास पाया था। तुम्हारी पहली फोटो, जिसे देखकर लगा था, इससे ज्यादा सुंदर लड़का, शायद मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा। जिसकी फोटो से मुझे प्यार हो गया था। बीवी से माँ बनने तक का सफर। पहला स्वेटर जो अपने हाथों से बनाया था, कहीं मेरे राजकुमार को ठंड ना लगे।उस लड़की ने जो कभी अपनी माँ से कहती,

" क्यों हाथ के बने स्वेटर के चक्कर में पडती हो? जब बाजार में एक से एक मिलते हैं।"

वो पहला शब्द, जब आयुष ने अपनी तोतली जुबान से मा मा मा बोला था। ऐसी और बहुत सी चीजें हैं। जो शायद बुढ़ापे तक मैं और इक्ट्ठा कर लूँगी, उस बडी सी संदूक में। तुम चिंता मत करो, जब वैंटीलेटर पर अपनी आखिरी साँस लूँगी, चाबी तुम्हें दे जाऊँगी और सारा खजाना भी। तुम बूढ़े भी तो हो जाओगे? मेरी याद आएगी तो कुछ तो चाहिएगा दिल बहलाने को। खुश हो जाए करना कितना प्यार करती थी।"

आनंद ने कविता के मुँह पर हाथ रखते हुए कहा

" रोमांटिक होते-होते तुमने इमोशन कर दिया। यार!प्लीज ये बेकार बातें मत किया करो पागल लडकी।जहाँ भी रहेंगे साथ रहेंगे वो भी सात जन्मों तक।"

"बाप रे! तुम्हें सात जन्मों तक झेलना पड़ेगा?" कविता कहते हुए जोर से हँसी ।दोनों की हँसी पूरे घर में गूँज गई।


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