डायरी
डायरी
शाम के चार बजकर तीस मिनट हो रहे हैं ।
प्राचीन काल से चली आ रही परंपराओं का अक्सर कुछ अर्थ होता है। संभव है कि अनेकों परंपराएं समय के साथ अप्रासंगिक बन गयी हों। पर केवल पुरानी बातों का विरोध ही करते रहना चाहिये, यह भी कोई अच्छी अवधारणा तो नहीं है।
आज द्वितीय शनिवार था। पर हमारे लिये अनेकों बार अवकाश में भी अवकाश नहीं रहता। आज भी एक तकनीकी समस्या थी। आफिस में काफी समय लगा।
इस बार मम्मी का जीवित प्रमाणपत्र समय से दाखिल नहीं हो पाया। वास्तव में अब जीवित प्रमाणपत्र आनलाइन दाखिल होने लगा है। जो लोकवाणी केंद्रों पर किया जाता है। गत वर्ष जिस लड़के ने मम्मी का जीवित प्रमाणपत्र तैयार किया था, इस वर्ष उसने अपनी दुकान बदल दी है। फिर दूसरी जगह पता की। आज मम्मी का जीवित प्रमाणपत्र दाखिल करा दिया।
कल आदरणीया श्रीमती कांता राय जी ने लघुकथा विधा के विषय में काफी जानकारी दी। मुख्य बातें निम्न रहीं।
(१) लघुकथा में सांकेतिकता की प्रधानता होती है।
(२) लघुकथा का अंत एक विशेष तरीके से होता है कि आगे भी कहानी जारी रहने की संभावना रहे।
(३) लघुकथा में घटित होने के पीछे के कारण का अधिक महत्व होता है।
(४) लघुकथा नवीन विंदुओ की तलाश करती है।
(५) जहाँ कहानी में पहले पृष्ठभूमि तैयार की जाती है, वहीं लघुकथा में कुछ घुमा-फिराकर बात कही जाती है।
(६) लघुकथा निश्चित ही छोटी कहानी होती है पर इसे शव्द सीमाओं से बांधा नहीं जा सकता है। अनेकों बार लघुकथा में काफी शव्द प्रयोग किये जाते हैं।
नवंबर की डायरी प्रतियोगिता का परिणाम कल आना था। पर अभी तक नहीं आया है। इस समय नबंबर की डायरी परिणाम की सूचना भी नहीं शो हो रही है। अपितु अब दिसंबर के महीने की डायरी के परिणाम की तारीख आ रही है।
आज बहन आस्था सिंहल के उपन्यास को पढना आरंभ किया है। संभवतः कल तक पूरा पढ लूंगा।
आज के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।
