vijay laxmi Bhatt Sharma

Inspirational Others

3.3  

vijay laxmi Bhatt Sharma

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डायरी सोलहवाँ दिन

डायरी सोलहवाँ दिन

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प्रिय डायरी आज लाक्डाउन का सोलहवाँ दिन है। मन बहुत बेचैन है और यही वजह है शायद की मैं अपनी स्मृतियों को दौड़ा रही हूँ। यहाँ वहाँ खंगाल रही हूँ। उठती हूँ तो कोई खबर नहीं सुनती काम करते करते गुम हो जाती हूँ मधुर यादों में तब एहसास होता है की यंत्रवत काम करते करते हम तो पुरानी बातों को याद करना ही भूल गए। पुरानी यादें बचपन की बातें व्यस्त दिनचर्या मे कभी उनका ध्यान ही नहीं आया। अब जैसे वो स्मृतियाँ जोर दे मुझे अपनी ओर खींच रहीं हैं की हम भी तुम्हारे जीवन का हिस्सा हैं। एक बात जैसे याद आती है उन स्मृतियों से वो है प्रिय सखी अमिता संग संग मोती बाग एक के लड़कियों के सरकारी स्कूल मे हम दोनो पढ़ते थे। अब बात स्कूल की आयी है तो मुझे अपनी अध्यापिका जो हमे राजनीति शास्त्र पढ़ाती थीं मेरी पसंदीदा अध्यापिका थीं, मैं जब गोल मार्केट, बंगाली स्कूल से यहाँ आयी थी नवीं कक्षा में थी, उस समय तो उन्होंने ही मुझे पहचाना और प्रधनाचार्या जी के पूछने पर उनके ही शब्द थे मैडम ये लड़की कर लेगी। इन शब्दों ने पिताजी के मुखमंडल पर आयी चिंता की रेखाओं को मिटा दिया था। खुश बहुत थे पिताजी। और गैरोला मैडम के इन शब्दों ने उनके प्रति मेरे भाव आदर के हो गए। सकारात्मक सोच और आपके कहे शब्द कई बार आपको तमाम उम्र याद रहते हैं, वही मेरे साथ हुआ आज भी मैं उनको उसी आदर के साथ याद करती हूँ। आगे चलकर उनकी और भी कई खूबियों ने मुझे प्रभावित किया उनका अनुशासन के प्रति सख़्त होना। समय समय पर हमे यानी लड़कियों को अपने आप को कैसे सुरक्षित रखना है इस विषय पर भी हमे शिक्षित करना कुल मिलाकर वो सबसे अलग थीं। उनके व्यक्तित्व में कुछ बात थी जो उन्हें सबकी प्रिय अध्यापिका बनाता था वो भी तब जब वो बहुत सख़्त स्वभाव की थीं।


तो मैं कह रही थी अमिता मेरी प्रिय सखी नवीं कक्षा से बहरवीं कक्षा तक हम साथ साथ पढ़े उसके बाद साथ तो नहीं पढ़े परन्तु दोस्ती पक्की रही एक दूसरे के घर आना जाना लगा रहा। उसमें एक खूबी थी वो बहुत अमीर परिवार से थी और मैं निम्न मध्यम से परन्तु वो हमेशा साधारण रहती उसे कभी मैने अमीरी का घमंड करते नहीं देखा और ना ही उसके परिवार को उन्होंने मुझे हमेशा बहुत प्यार और सम्मान दिया। हम साथ हँसते खेलते बड़े होते गए कभी कभी छोटी छोटी बातों पर नोकझोंक.. एक दिन उसे मेरी नैशनल कैडेट कोर की तस्वीर दिखी और वो उसे लेने की ज़िद करने लगी और मेरे पास वो एक ही तस्वीर थी क्यूँकि उन दिनो मोबाइल फोन नहीं होते थे की कितनी भी तस्वीर खींच लो और ना ही इतने पैसे की ज्यादा तस्वीरें ख़रीद सकें। खैर काफ़ी देर की नोक झोंक के बाद, मैं उसे वो तस्वीर नहीं दे सकी तो वो नाराज़ होकर मेरे घर से नंगे पाँव ही अपने घर चली गई जो थोड़ा तो दूर था। माँ को पता चला तो बहुत नाराज़ हुईं और कहा फोटो ज्यादा जरुरी है या दोस्ती मुझे ग़लती का एहसास हो गया था परन्तु वो कहावत है ना ”अब पछताय होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत” और कई दिन हम एक दूसरे से नहीं मिले क्यूँकि उन दिनो फोन की सुविधा थी नहीं और कॉलेज फिर पढ़ाई के चक्कर मे मैं उससे मिलने भी नहीं जा सकी। फिर एक दिन माँ के कहने पर मैं उसके घर गई फोटो साथ ले गई। उसकी मम्मी ने दरवाज़ा खोला मैने नमस्ते की तो उन्होंने जवाब दिया बेटा माफ़ करना अमिता की बचकानी हरकत के लिए। मैने उन्हें कहा नहीं आंटी मेरी ग़लती है एक बेजान फोटो के लिए दोस्त को नाराज़ करना समझदारी नहीं.. माँ ने कहा तो आंटी मुझे ग़लती का एहसास हुआ इसीलिए ये फोटो दे अपनी दोस्त वापस लेने आयी हूँ कह मैं उनके साथ ही अन्दर हो गई। अमिता से मिली हम दोनो की आँखें नम थीं और दोनो को ही दोस्ती की अहमियत समझ आ गई थी, उसने कहा मेरी ग़लती है मुझे यूँ आना नहीं चाहिए था बिना सोचे समझे कुछ भी बोल दिया और मैने भी उसे कहा फोटो दोस्ती से बढ़कर नहीं लो ये फोटो उसने कहा जब दोबारा खिंचवाओगी तब देना ये तुम्हारे पास एक ही है और यादगार है इसे तुम अपने पास रखो। यूँ एक दूसरे का मान कर हमने अपनी दोस्ती को और सुदृढ़ किया। प्रिय डायरी इस विपदा की घड़ी मे जब इस महामारी कारोना से पन्द्रह लाख से ज्यादा व्यक्ति विश्व भर मे संक्रमित हो गए और अस्सी हज़ार से ज्यादा मौतें हो गई हैं ऐसे वक्त ये स्मृतियाँ ही हमे चिंतमुक्त रखती हैं हमारे अन्दर एक नई ऊर्जा का संचार करती हैं। प्रिय डायरी आज इतना ही राष्ट्र सेवकों का धन्यवाद करते हुए जो दिन रात एक कर अपना फ़र्ज निभा रहे हैं । हमारे डाक्टर, नर्सें, हॉस्पिटल स्टाफ़, सफाई कर्मचारी, मीडिया, सुरक्षाकर्मी, बिजली पानी और सभी सेवाओं से जुड़े व्यक्ति इन सभी की निस्वार्थ सेवा के लिए मैं इनका आभार व्यक्त करती हूँ। प्रिय डायरी अब विदा लूँगी कल के सुनहरे दिन के लिए दोस्ती पर इन पंक्तियों के साथ:

दोस्त हैं तो ज़िन्दा हैं हम आज

बिना दोस्त जिंदगी मौत के समान।


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