डायरी लॉक्डाउन२ दसवाँ दिन
डायरी लॉक्डाउन२ दसवाँ दिन


प्रिय डायरी लॉक्डाउन के समय मे तुम ही मेरी प्रिय सखी हो। यूँ तो साहित्यिक गतिविधियाँ भी डिजिटल हो रहीं हैं कल ही यानी २३ अप्रेल को विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पुस्तकों पर एक डिजिटल चर्चा रखी गई समयावधि एक घंटा रखी गई ... बड़े बड़े साहित्यकारों के वक्तव्य सुनने को मिले और अपने विचार भी रखने का समय मिला।
प्रिय डायरी पुस्तकें ही तो हमारी सच्ची दोस्त हैं, हमदर्द है ... मार्गदर्शक और हमारी प्रेरणा स्रोत हैं... हमारी जिज्ञासा का हल भी हैं पुस्तकें तो हमारी मुश्किलों का हल भी यही हैं। और आजकल इस लॉक्डाउन के समय पुस्तकें ही तो हैं जो हमे आहिस्ता आहिस्ता जीना सिखारहीं हैं... हमारे अस्तित्व को बचा हमारे ज्ञान को बड़ा रही हैं।
प्रिय डायरी इसी अवसर पर अपने प्रिय लेखक और उसकी पुस्तक के विषय पर लिखना था तब मैने चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी की बहुचर्चित प्रेम कहानी “उसने कहा था “ पर अपना वक्तव्य लिखा सौ साल से भी ज्यदा पुरानी ये कहानी आज भी उतनी ही चर्चित है जितनी १९१५ में थी... लेखक की शैली जो पाठक को बांधे रहती है बचपन से सीधे २५साल आगे प्रथम विश्वयुद्ध और फिर वापस बचपन के प्यार का किसी की पत्नी के रूप में नायक से अपने पति और बेटे की रक्षा का वचन और नायक का अपने बेटे और पत्नी की परवाह किए बैग़ैर उस वचन को निभाना... सारे वक्त कहानी बांधे रखती है किसने क्या कहा होगा और आख़िर में भेद खुलता है... प्रदेश में भी नायक मरते वक्त खुद को गाँव में अपने भाई की गोदी में महसूस करता है और अपने बेटे को याद करता है ... कहानी प्रेम कर्तव्य और देशप्रेम की अनूठी मिशाल है... नायक का अपनी मिट्टी से प्रेम उसे अन्त समय में गाँव की ही अनुभूति कराता है... कहानी शिक्षा देती है की युद्ध प्रेम की भावना को नष्ट कर देता है.. कहानी बहुत दिलचस्प अन्त तक जिज्ञासा बनाए रखने वाली किसी उपन्यास से कम नहीं है...
प्रिय डायरी यही होता है की किसी ख़ास दिन फुर्सत के पलों में हम वो कर पाते हैं जो करना चाहते हैं और वर्षों बाद लॉक्डाउन की वजह से विश्व पुस्तक दिवस पर मै इतना सबकुछ कर पाई तो लगा की सोच सकारात्मक हो तो घर पर रहकर भी अपनी खुशी के कार्य कर खुश रहा जा सकता है।
प्रिय डायरी आज राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर जी की पुण्य तिथि है... इस अवसर पर उनको मेरा नमन... उनकी ही पंक्तियों के साथ प्रिय सखी विराम लूँगी जिसमें शिक्षा है आज के युग को भी:
न्याय शान्ति का प्रथम न्यास है,
जबतक न्याय न आता,
जैसा भी हो, महल शान्ति का
सुदृढ़ नहीं रह पाता।