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Harshita Dawar

Abstract Fantasy Inspirational

3  

Harshita Dawar

Abstract Fantasy Inspirational

डायरी ज़िन्दगी की

डायरी ज़िन्दगी की

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250

जैसे स्वर्ण मुद्राएं स्वर्ण पदक स्वर्ण अक्षर

जीवन जीने के मातृ संस्कृति

किसी के लिए बेकार किसी के सिर्फ काले अक्षर

किसी के लिए सिर्फ बेकार वक्त जाया किया

किसी के लिए ये लिखते कैसे हो

किसी के लिए बस यहीं कबाडीं

किसी के लिए सबक

किसी के लिए परेशानी में उगे सूरज सा एहसास

किसी के लिए नई राह

किसी के लिए जीवन मंत्र या तत्व

डायरी ज़िन्दगी की

आज बेटी ने पूछा मां कितना लिखते हो

कितना सोचते हो बस गुम से नज़र आते हो

बस मुस्कुराई और कहा ज़िन्दगी की किताब हैं मैं बुनती हूँ। ये सोचकर भी चुप भी होती कभी तो बताना होगा क्या लिखती हूँ।।

आज वो शायद इतने घेरे में घिरे उच्चतम स्तर गहराई तक नही पूछती हैं पर हिम्मत करती जानने की कोशिश करती बताती हूँ।

ये सफ़र रोज सीढियां चढ़ते वक्त हिम्मत जुटाने तक हर से हाफं जाने तक, फिर ज़ोर की छलांग लगाने तक ,चींख कर चिल्लाने तक ,दम भर कर अंतर की सांस भरने तक, जिंदगी से ऊब जाने तक फिर से जी जाने तक पहुंचती हूँ।

कभी तो वो भी पढ़ेगी मेरी मां की तलाश शुरू से अंत तक इस क़दर उलझे सवालों में उलझी रही कैसे उभरी हूँ।,

नंदिया पर्वत तल तट समुद्रं की गहराइयों में ख़ुद को गवाती हूँ।

आकाश पंछी उड़न खटोला में ख़ुद को स्वारी समझ ख़ुद को उभरती हूँ।

किसने कितने तजुर्बे सपने सजाए पतंग की डोर को पकड़ कर कश्ती में स्वार हूँ।

इम्तेहान कितना बड़ा हैं ज़िन्दगी का वक्त पर वक्त परीक्षा के साथ स्याही फीकी कभी गहरी सी लगती हूँ।

इस दौरान अग्नि आंखो से नहीं बल्कि अग्नि परीक्षा में शामिल होती हूँ।

कहते है औरत का जन्म तीन बात होता हैं जब वो पैदा होती, जब कुमारी बनती, जब अर्धगिनी बनती, जब मां बनती, मेरा तो मानना हैं चौथा स्तंभ भी गढ़ कर मैं दबंग अकेली मां खड़ी हूँ।

हिफाज़त मेरी ज़िन्दगी की कहानी में सच्चाई लिखती हूँ।

हार को तब तक हार न समझना जब तक मैं ख़ुद से हारी नहीं हुं

इस डायरी को ज़िन्दगी की अभिलाषा समझ कर लहरों में बहती जाती हूँ।

ये डायरी में छिपे गुनाह नही गवाही देते दिल के करीब से गुज़रे कई राज़ है जो कभी ख़ुद को बताने से कतराती हूँ।

जब बेटी बड़ी होगी गर्व से कहेगी मेरी मां की डायरी हैं ,

मै हुगी तब देख पहुगी ,पर वक्त ने बेल ले की तो सितारा बन कर वही से आशीष देती रहूँ।गी

बक्से में ख़ुद को बंद इस डायरी में छिप कर जब एक एक लफ्ज़ छूकर पढ़ेगी तो लगेगा दिल को राहत मिल रही होगी

इल्म है इस बात का असर पड़ता हर बार का आज भी मिसाल हूँ।

कल हूँ। ना हूँ। पर हिम्मत ज़रूर देती रहूँ।गी

मेरी इस डायरी के हर मोड़ पर एक नया आकार देकर सम्मानित करती रहूँ।गी

क्या मिला क्या गवाया क्या अपनाया क्या दिलवाया क्या क्षमता दिखाई हर मुश्किल को किनारा दिखाती रहूँ।गी

एक एक बूंद जैसे वादे इरादे निगाहों भर हर एक नासाज़ मिज़ाज बदलाव दुख सुख शांति उपलब्धि के हर आसुओं के ज़वाब देती रहूँ।गी

हर मां को एक अपनी डायरी ज़िन्दगी के नाम लिखनी शुरू करनी चाइए जैसे हर बार कुछ खत्म होता फिर बरनी भरते हम बस उसी तरह जो अंदर है वो भर आता और एक पन्ना ज़िन्दगी भर्ती हूँ।

और पन्ना पन्ना कर एक एक बूंद कर अपने कमरे में छोटी छोटी बातों को एक नया आकार दे देती हुं

बस आज कल डिजिटल वर्ल्ड होगया मगर मुझे मेरा पेन हाथ में लेकर मेरी डायरी को ज़िन्दगी की तरह संवारना सोचना उसको कई रंगों में छिपा रंग लगती हूँ।

फिर पढ़ती हूँ। मुस्कुराती हूँ। गुमगीन हो जाती हूँ।

अश्रु भी बहाती हूँ। , आज भी कई पन्नों पर मेरी पूजीं से उभरे मिलते हैं

याद आते हर पल मुंह बनाते नासाज़ भी होते, मुस्करा भी जाते, अच्छे बुरे हर पल का हिसाब भी करती हूँ।

ये हर्षिता की ज़िन्दगी की अंतिमा तक साथ छोटी सी डायरी।


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