विक्टिम कार्ड और नहीं
विक्टिम कार्ड और नहीं
Eye opener for society
विक्टिम कार्ड और नहीं
आज तक ये एक्टिंग ही थी या सच कहूं दूसरों को खुश करने के लिए बस अपनी दिल हार रही थी। आज सपना अपना पूरा सपना तोड़ चुकी थी।
हर हाल में जवाब मांगा पर पीड़िता सी जिन्दगी को पूरे घाव भरे जिस्म को छुपाती रही।
सिर्फ शतरंज सी ज़िन्दगी को उसे कभी घर के हर सदस्य को वज़ीर , घोड़ा , राजा ,रानी बन कर उसके अपने तो कहने को थे एक छोटा सा प्यादा ही समझते रहे। हमारे घर की इज़्ज़त को दाव पर कैसे लगाएगी, है तो वो भी बेटी अपने घर वालों की बात को कैसे टालेगी हर बार यहीं ताने सुन सुन कर सब सहती रही।
अब वो भी बेटी की मां बनने वाली थी, अब वो हर घाव का हिसाब रखने लगी थी, ताकि उसकी बेटी के साथ विक्टिम कार्ड की कहानी में शामिल न हो जाएं।
जिंदगी कभी आसान नहीं होती ये सब बातें उसके जहन में हर पल खरोचती रहती थी की मेरी बेटी के साथ क्या होगा , इतने सालों में क्या से क्या किया अपनी पहचान अपनी इज्ज़त सबकी इज्जत बनाने के लिए पर आज तक भी सिवाए तानों और लांछन के कुछ हासिल नहीं हुआ।
बहरहाल घर के सारे सदस्य घर के बाहर दोगले पन का जवाब देते नज़र आते जैसे की हम अपनी बहु को बेटी मानते हैं , कभी कोई तारीफ नहीं , बहुत ख़्याल रखते हैं, पर अंदर ही अंदर सपना टूट रही थी जैसे रोज अपने जिस्म को घसीटती और आज के लिए तैयार करती ।
आज उसकी बेटी हो गई घर के हर कोने में दही सी छुपी थी, कोई खुश नहीं था पर दिखावा तो बहुत था ।सपना समझ गई थी मुझे नहीं अपनाया और न बेटी को अपनाएंगे।
ये सवाल खड़े करते लोग वो चार लोग क्या कहेंगे, यही सवाल की जकड़न उसके हलक से निवाला तक उतार नहीं पा रही थी।
पर ज़िन्दगी को शायद कुछ और हो मंजूर था।
जिंदगी इम्तहानों से भरी भारी सी आंखें भरती अपनी और अपनी बेटी को दुत्कारते हुई चलती रही।
जैसे ही बेटी एक साल की हुई अब वो अपने हर घाव का जवाब मांगना चाहती थी। अपने घर वालों को पूछती और बताया करती पर साथ कौन है ये भी जानती थी।
अकेले ही दम भरती और अब अपनी बेटी का सोच सोच कर घुलती थी। पर ज़िन्दगी हमको एक वक्त के साथ बदल देती हैं, अपने सपनों को हकीकत बनाना से रूबरू कराना जानती है।
अब अपनी बेटी को स्कूल भेजने तक का सफ़र शुरू किया। घर की नहीं जेल जैसी जिंदगी को अब अलविदा कहने लगी सपना अब मज़बूत मां बन गई है।
चार लोग ना मिले जो बातें बनाते है। एक महीने से नौकरी कर रही है। अब बदतमीज या बेशरम का तमगा लेकर जीने लगी हैं क्योंकि जैसे करो हे वैसा भरोगे , जैसा बोलोगे वैसा सुनोगे क्यों सही कहा ना?
सपना अब बोल चुकी थी ना सहूँगी, का दबूँगी, यही रहूंगी ना कुछ काम करूंगी जैसा अपने आज तक मेरे साथ किया वैसा .....
वैसा ही कर के दिखाऊंगी जैसा अपने आज तक मेरे साथ किया, और अगर कुछ गलत किया या मेरी बेटी के साथ कुछ गलत हुआ ये मत सोचना मैं चुप चाप सहती जाऊँगी।
मुझे जलाया या कुछ मांग की तो भी में चुप नहीं रहूंगी।
आज तक अपने परिवार की इज़्ज़त आप सब की इज्ज़त की खातिर सब सहती आई हूं पर मेरी ख़ामोश को कमज़ोर बेजुबान अबला नारी समझ कर बेचारी ज़िन्दगी में क्या करेंगी ये ताने सुना कर नौकरानी बना कर, अपने बेटे की हवस का जवाब बना कर एक कठपुतली सी ज़िन्दगी जीने को जीना कहते हैं ? क्या उसे ख़ुशी कहते है?
क्या उसे अपने ज़मीर से आवाज नहीं आती , कई बार आती खुद को दुत्कारती , अपने से घिन भी आती, लगता एक कतरन सी ज़िन्दगी इस्तेमाल कर के कोने में पड़ी मेज़ थी क्या मैं , अब सपना अबला नहीं रही याद रखना...
मान चुकी है आज पढ़ी लिखी ना होती तो शायद आज बेटी का भी ना सोच पाती,
हालांकि अकेली मां की ज़िन्दगी की चुनौतियों में हर छोटी चुनौती का व्याख्या करना बहुत कठिन है।
पर ज़िन्दगी के पथरीले रास्ते पर चलना , अपने अस्तित्व पर इतनी चोट खा चुकी होती है तो घाव भी लगते हो अपनी बेटी को देखकर बार अनदेखा कर देती हैं बस यहीं उम्मीद करती है जो मैंने सहा वो नहीं सहेगी ।
अकेली मां (Single mother) को बहुत से अधिकार मिले है पर कहने को
वैसा वूमेन सेल से भी सहायता ले सकते है, गवर्मेंट में भी बहुत सी व्यवस्थाएं सी है पर किसने खुद को गिरवाना हैं ये आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते है
पर अपने फैसलों से पीछे हटना सीखा नहीं है
अपने उसूलों को नीचा दिखाना सीखा नहीं है
पता नहीं लगता निभाया जाएं तो बेहतर है, अपने रगों में इंसानियत भरो नहीं तो ये मत समझना सपना अबला है, अब वो भी मां हैं और अकेली मां कभी कमज़ोर नहीं होती।
बस झुकती भी है तो बस अपने बच्ची की खातिर।
टूट भी जाए तो संभलना भी सीख जाती है।
और अपनी बेटी को भी यही सिखाती हैं।
अब और नहीं बस यहीं नहीं तो अपनी जिंदगी को बेहतर ढंग से चलाना और जीना जानती है
अब समाज और समझ को सामने लाना होगा हर औरत को सख्त कदम उठाना होगा ।
गलत करने वालों से ज्यादा गलत सहने वाले होते है
क्यूंकि अपने अपने साथ गलत करने का हक़ उन गलत इंसानों को दे दिया होता हैं
हमारी अच्छाई को पायदान समझ कर रौंदते रहते है
और अपने आप को श्रेष्ठ समझने की भूल कर लेते है।
पर ज़िन्दगी बहुत खूब है गिराती है तो उठने का मौका भी देती हैं ,
हम सब में वो हिम्मत है सिर्फ पहचानने जाने की तलाश है
अपने अंदर तो ताक़त को बटोर कर एक शेरनी हर औरत के अंदर है क्योंकि वो भी काली दुर्गा का एक रूप है
वो मां बहन बेटी बहु हैं ,जननी है....
