रिश्तों का एहसास
रिश्तों का एहसास




आज एक कहानी लिख रही हूं। ज़िन्दगी की सच्चाई पन्नों पर उतार रही हूं। दिल के जज्बातों को एहसासों में जगा रही हूं।
आज बेटा बहुत बड़ा हो गया, उस मां से भी मिलने का वक़्त नहीं उसको। मां को भी अपोइंटमेंट लेकर बात करनी पड़ती थी पर फिर भी बहुत व्यस्त रहता तो बात ही नहीं हो पाती थी।
जिस मां ने रात दिन की परवाह किए बगैर कपड़े सिल सिल कर उसकी पढ़ाई पूरी करवाई। अपने खाने की सुध भुलाकर उसको भरपेट खाना खिलाती।
आज वो बहुत बड़ा आदमी बन गया है, बड़ी कंपनी में बड़ा क्लेकटर लग गया है। वो हर साल अपनी मां के जन्मदिन पर एक गुलाब का फूल अपनी मां को गांव में ज़रूर कोरियर करवा देता है क्योंकि मां गांव में और वो शहर में रहता है। वो बहुत व्यस्त रहता है, ना ही कभी फोन पर बात कर पता है।
आज फिर फ़ूल वाले के पास जैसे ही पहुंचा, फूल वाला दखेते ही बोला गया बेटा गया। उसको देखते ही फूल वाले ने एक फूल पैक किया और उसके दे दिया।
वो कोरियर करवाने जा ही रहा था कि, एक लड़की बेंच पर बैठी बहुत रो रही थी। वो उसके पास गया, पूछा आप ठीक है, मदद की ज़रूरत है आपको।
वो लड़की और रो रो कर बोली, आज मेरी मां का जन्मदिन है।
वो लड़का भी ख़ुश होकर बोला आज मेरी मां का भी जन्मदिन है तो इसमें रोने की क्या बात है। लड़की बोली मेरे पास पैसे नहीं की एक फूल ख़रीद सकूं।
लड़का उसको वहीं फूल वाले की दुकान पर ले गया। सबसे महंगा फूल दिलवाया। लड़की ने बोला आप मुझे मेरी मां के पास छोड़ देंगे क्योंकि रिक्शा के भी पैसे नहीं मेरे पास। फिर वो अपनी गाड़ी में बिठा कर उसको मां के पास ले गया।
उसका स्वाभिमान उसको कचोट रहा था। उसका मुंह हलक से बाहर आ रहा था। वो खुद को कोसता जा रहा था क्योंकि वो लड़की उसको कब्रिस्तान ले आयी थी।
लड़की को अपनी मां की कब्र पर फूल चढ़ाते देख। वो लड़का बिलक बिलक कर रो रहा था। उसको अपनी गलतियों का एहसास हो रहा था।
अब उसने जो अपनी मां के लिए फ़ूल लिया था। उसको वहीं फेंक दिया।
गाड़ी में वहीं फ़ूल वाले के पास गए। इस बार फ़ूल नहीं गुलदस्ता पैक करवाया।
और खुद ही निकाल पड़ा गांव मां को मिलने। घंटों बाद गांव पहुँचते ही मां को आवाज़ लगाई। मां आज तो सातवें आसमान पर उड़ रही थी। मानो कुबेर का खज़ाना मिल गया हो। गले लगा कर दोनो मां बेटा खूब रोए।
माफी मांगी और वहीं से फोन किया कंपनी में की ज़रूरी काम से सात दिन नहीं आ पाऊंगा।
मां ये बात सुन कर नाच उठी सात दिन बाद वो फिर वापिस शहर लौट आया पर इस बार हर रविवार मिलने का वादा करके मां के हाथ का खाना खाने आऊँगा।
मां को ना फूल चाहिए ना गुलदस्ते उसको बस बच्चों का वक़्त, साथ, प्यार, स्नेह से बना अपने हाथों से खाना खिलाना। बचपन की यादों को फिर से याद दिलाना। वहीं खेल खिलौने दिखाना। यही दिल को भाता है। हर एक अनमोल रिश्ते को प्यार इज्ज़त स्नेह वक़्त के साथ संजोए। कही देर ना हो जाएं।