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Harshita Dawar

Inspirational

3  

Harshita Dawar

Inspirational

माँ के जज़्बातों की ट्रॉफ़ी

माँ के जज़्बातों की ट्रॉफ़ी

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सलाम मिशन मंगल..मिशन मंगल का नाम मॉम रखा गया। अगर  डैड नाम रखा होता तो वो मार्स के बाहर ही चक्कर लगाता ये फिल्म का ही डायलॉग है।

शाबाशी हर औरत को जो माँ है। खुद को शाबाशी भी लेने का अधिकार है। हम औरत को पैदा होते ही एक शाबाशी इस तमंगे से मिल गई ये तेरा घर नहीं।

शाबाशी खुद को दो साल पर साल हम खुद को पहचाने लगती है। शाबाशी खुद को दो, किशोरी से दहलीज़ लांघ कर किसी के घर को चिरागों से रौशन करती है। शाबाशी खुद को दो अपने जिस्म के हिस्से को नोचकर खुद को भी भी घोटती रहती है। शाबाशी खुद को दो शहरों में पली बढ़ी। फिर भी कितने सालों बाद तक पिछड़े राज्यों में बसने के बाद भी लांछन दाँतों में भिचे चुप रहने ही खुद से हज़ारों मौत मारती है। शाबाशी खुद को दो खुद की इज़्ज़त को देहलीज पर टांग कर हर रोज़ किसी और का हमबिस्तर बन कर बिछ जाती है। और उसको सिर्फ हवस का शिकारी कुत्तों की तरह नोचकर धिक्कारता रहता है।

शाबाशी खुद को दो रोज़ अपने जिस्म की नुमाइश करके, सवेरे उसके आंगन में तुलसी को ज्योत जगाती हो। अपने जिस्म के निशान छिपाए उसके माँ बाबा को चाय पिलाती हो। चरण स्पर्श करके फिर से वही ज़िन्दगी की और मुंह मोड़ लेती हो। शाबाशी खुद को दो खुद को भूलकर बांझपन के कलंक लगवाती हो। खुद की इच्छा को दफ़न कर माँ बन जाती हो। बच्चे पैदा करने का उपकरण बन कर खुद को बेकार ख़राब केहलवाती हो।

शाबाशी खुद को दो साल दर साल खुद को कमज़ोर करके घर को मजबूत बनाती हो। रिश्तों में खुद को फंसा कर अंतर्मन में खुद को फाँसी की साजा सुनाती हो। शाबाशी खुद को दो अब खुद को ज़िन्दा कर दो। शाबाशी खुद को दो जैसा हम सोचते है वैसे बन जाते हैं। शाबाशी खुद को दो मानवता में एक की सोच नीच होने से सारी कौम को बदनुमा दाग़ दिया जाता है। शाबाशी खुद को दो उड़ान भरने का वक़्त हमारा है। शाबाशी खुद को दो हम सिर्फ हम ही माँ बनने का हक अदा करती है। शाबाशी खुद को दो अब अपने सपनों को पूरा करने दौड़ में शामिल हो गई हो। शाबाशी खुद को दो रूड़ी वादी समाज को रू-ब-रू कराती हो। शाबाशी खुद को दो आज की औरतें दबने डरने घुटने वाली नहीं। शाबाशी खुद को दो अब घर तेरा नहीं मेरा नामांकन के तमंगे लगेंगे उस घर की दहलीज में ना घुसने दूँगी। शाबाशी खुद को दो तुलसी अब खुद के घर की देहलीज में ही जलाऊंगी। शाबाशी खुद को पहचाने जाने वालो से लूंगी। शाबाशी खुद की पहचान बनाने में कामयाबी के शिखर पर चढ़ कर दिखूंगी। शाबाशी अब एक अकेली माँ लड़ कर तारों से भी लड़ झगड़ कर अपना और अपनी बेटी का अस्तित्व बनाउंगी। शाबाशी खुद की ख़ुशी में है। ख़ुशी तब मिलेंगी जब हम जो सोचते है। जो करते है।जो चाहते है। हम उन सपनों को जी सके। शाबाशी तब मिलती है जब एक माँ अकेले होकर कर भी अपनी बेटी के सपने पूरे करने की होड़ में जुट जाती है। शाबाशी उसी में है मिल जाती है जब मेरी बेटी मुझे आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू माँ कह कर पुकाराती है। हर्षिता से जज़बाते हर्षिता का सफ़र तय कर लेती हो।

जब मेरी बेटी मेरे पैरो पे पैर रखकर मेरी ही परछाईं मेरी उम्मीद पर खरा उतरना चाहती है। माँ मैं आप जैसी बनना चाहती हूं। ये कुछ शब्द मेरे दिल में कहर मचा देते है। अकेले जीते जीते अकेले पालन करके अपनी बेटी के ये बातें सुनकर मेरी ममता को ट्रॉफी मिल जाती है। हर्षिता की भूमिका को नई दिशा मिल जाती है।


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