Harshita Dawar

Tragedy

4.8  

Harshita Dawar

Tragedy

रिश्ते प्यार से

रिश्ते प्यार से

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आज ज़िन्दगी की तकलीफों का आमना सामना हो गया। जिनको में रोज़ रास्ते में देखा करती थी। जिसके साथ एक ही बस में सफ़र किया करते हूं। एक ही रास्ते और एक ही मंज़िल के मुसाफ़िर है हम। कभी बात नहीं होती थी हमारी ।बस साथ जाए जाते नमस्ते आंटी से बात शुरू होने लगी पर रोज़ मिलते मिलते सीट देने से बात शुरू होती थी।

मैं उनसे पहले बस लेती हूं फिर वो आती है तो में उनको सीट दे देती थी। सिर्फ उन्हीं के लिए नहीं मेरा दिल से आवाज़ सी आती है कि जिसकी जितनी मदद कर सकूँ कर देती हूं। आज उनको कुछ पैसे की जरूरत पड़ी। उनके पास पैसे खुले भी नहीं थे टिकट के। मेरे पास आई और बोली टिकट लेनी है । मैंने बिना पूछे ही उनके लिए टिकट ले ली।  बहुत दिनों से मेरे दिल के सवालों ने कचोटते हुए दिल को बहला रही थी। आज उनकी पहल से मेरे दिल ने हिम्मत जुटा कर उनसे पूछने की चाह जाहिर कर दी।

कुछ पूछती उससे पहले स्टॉप आ गया। एक ही मंज़िल है हमारी पर रास्ते अलग अलग है। वो जैसे ही उतारने लगी मैं भी उतर गई । वो अपने रास्ते मैं अपने रास्ते चलना शुरू हुए । फिर भी दिल की खलबली को सुकून कहाँ मिल रहा था। मैंने उनको आवाज़ लगाई, वो रूकी और मुस्कुराई।सड़क पार कर के मै उनके पास पहुंची।  वो अधूरी सी आंखों में कुछ सवाल जो मेरे से पूछ रहे हो की कुछ ऐसा ना पूछ लूँ की जवाब ना दे पाऊँ।

मैने बोला आंटी कुछ पूछना चाहती हूं ।बुरा ना माने तो। बहुत वक़्त से आपको देख रही हूं।आप क्या करते हो । मेरे को जब लगता है में उनके बारे में जरूर लिखती हूं। ये सुनते ही उनकी आंखो में चमक सी दिखाई दी।

57 उम्र की रंजनी नाम है उनका।  1991में उनका पति का कैंसर से देहांत हो गया था कुछ वक़्त बाद, एक्सपोर्ट हाउस में पैकिंग की नौकरी भी लग गई भगवान की कृपा से। 3 बच्चे है । 1बेटा जो भुखार बिगड़ जाने की वजह से उसका भी 1साल में ही दहांत हो गया था। ये बता ही रही थी दुख से आंखें भर गई।

2 बेटियां जो शादी शुदा है। कभी कभी मिलने आती है जब उनके भी बच्चो के स्कूल की छुट्टियां होती है। रहती तो दिल्ली में ही है पर कुछ दूसरी जगह रहती है। पूछने पर पता लगा कि वो अकेले ही रहती है। दूसरी कॉलोनी में, कुछ दूरी में जहां मैं रहती हूं। उनकी बातों को सुनकर बहुत दर्द सा महसूस होने लगा।

एक बार को लगा किसी के ज़ख्म मैंने उभार दिए हो। मगर पूछे बिना रहा नहीं जा रहा था।

दिल के सवालों में गुम हों रही थी। क्यूँकि उनकी मुंह की झुर्रियों जो भगवान ने अपने हाथ से ब्रश करके इतनी ख़ूबसूरती से उम्र के हर पड़ाव को छलका जाती है।

उनके बालो की वो सफेदी उम्र का सलीका सिखाती रहती है।

फिर भी आज उनके हसरतों के होसलौ को सलामी देने का दिल चाहता है। अकेले ज़िन्दगी में कर गुज़रे कों दिल चाहता है। उनकी मसुमियत दिल को लुभा ती रहती है। उनके इस उम्र की मजबूरियों को वक़्त अपने आप में बयान करता रहता है। तभी शायद मैं अपने दिल के सवाल में उलझ जाती थी। मैं लेट भी हो रही थी ऑफिस पहुंचने में। मैंने बस उनको हिम्मत देते हुए कहा भगवान आपको बहुत शक्ति दें।आप खुश रहो। 

फिर वो बोली में पैसे जल्दी वापिस कर दूँगी। मैंने कहा आंटी जी कोई बात नहीं आप रख लीजिए। ये सोचकर मैंने आपकी मदद नहीं करी।

इतना कहकर हम अपने अपने ऑफिस के रास्ते निकल गए। जाते हुए मैंने पीछे मुड़कर देखा तो वो खुशी के साथ कुछ गम की परछाइयां आंखो में भर कर मुझे दुआएँ देती हुए चली गई।


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