दादी मां का सम्मान
दादी मां का सम्मान
आनंदी जी के एकलौते पोते अनुज की सफलता जो दिन पर दिन आसमान छू रही थी। जिसे सुन सुनकर आनंदी जी प्रफुल्लित होती। उसने ही इंडिया से लंदन अपने दादा दीनानाथ जी दादी और मम्मी सुधा, पापा अमर को फ्लाइट टिकट भेजकर लंदन बुलाया था।
अनुज शुरू से ही दादी का दुलारा था हर बार हर जिद वो दादी से ही पूरी कराता था, अनुज अपने माता पिता से ज्यादा करीब अपनी दादी के था क्योंकि मातापिता दोनो नौकरी पेशा थे तो पूरा दिन वो अपनी दादी दादा के साथ ही व्यतीत करता था।
महज पंद्रह साल की कमसिन उम्र में आनंदी जी की शादी उनसे दस साल बड़े दीनानाथ जी से हो गयी थी। सब कुछ अच्छा था लेकिन दीनानाथ जी आनंदी जी को बिल्कुल पसंद नहीं करते थे. पेशे से इंजीनियर दीनानाथ जी को पत्नी पढ़ी लिखी व शहरी चाहिए थी। लेकिन उस समय वो अपने मातापिता का विरोध नहीं कर पाए और उनकी शादी कक्षा पांच पास आनंदी जी से हो गया। जिसका अंजाम ये हुआ कि आजीवन दीनानाथ जी उन्हें अनपढ़ होने का ताना देते और कभी अपने साथ कही नहीं ले जाते।
समय बीतता गया आनंदी जी ने महज 17 वर्ष की आयु में अपने बेटे अमर को जन्म दिया जिसके बाद उनका पूरा समय बेटे के इर्दगिर्द ही घूमता। समय पंख लगाकर उड़ गया अमर बड़ा हो गया। तब दीनानाथ जी ने अपने बेटे के लिए सुधा को बहु रूप में पसन्द किया। ये कहते हुए की मेरे इंजीनियर बेटे की पत्नी भी इंजीनियर ही होगी पढ़ी लिखी....लेकिन कुछ नहीं बदला तो वो था आनंदी जी का नित्य होने वाला अपमान। जो अब सुधा के आने के बाद और बढ़ गया था दीनानाथ जी कभी एक मौका नहीं छोड़ते थे जब वो आनंदी जी को ये एहसास ना कराए की वो दुनिया की सबसे बेकार औरत है। जिससे शादी करके दीनानाथ जी की जिंदगी बेकार हो गयी। लेकिन आनंदी जी हर बार मुस्कुरा कर अपने अपमान का घूंट पी जाती और ऐसा दिखाती जैसे उनको कोई फर्क ही नहीं पड़ता। अब वो अमर के बाद वो अपना समय अपने पोते अनुज के साथ बिताती।अब उम्र काफी हो चुकी थी लेकिन कहते है ना रस्सी जल गई लेकिन बल नहीं गया" वही हाल दीनानाथ जी का था उम्र के आखिरी दौर में भी कटाक्ष करने से ना चूकते। जबकि ये पता था कि पता नहीं कब ये शाम ढल जाए और सबेरा कभी ना हो।
एक दिन उनकी पोती बहु सिया ने कहा,"दादी जी आप भी चलिए तैयार हो जाइए, आज हिंदी दिवस के अवसर पर पार्टी रखी गयी है। वहाँ बहुत सी मेरी परिचित महिलाएं भी आएंगी, मुझे आपको सबसे मिलाना है,सब बहुत खुश होंगे आपसे मिलकर।"
तब तक आदत से मजबूर दीनानाथ जी बोल पड़े,"अरे, बहु इनको लेकर कहा जाओगी, तुम तो इनको घर पर ही रहने दो सिर्फ हम लोग जाएंगे! ये अनपढ़ गंवार इंसान वहाँ जाकर क्या करेंगी। वहाँ पार्टी में मौजूद सभी अंग्रेजी में बात करेगे और ये ठेठ हिंदी में।"
लेकिन आज दीनानाथ जी की बाते सुन ना जाने क्यों आनंदी जी की हमेशा मुस्कुराती आंखे छलछला गयी। उन्होंने साड़ी के पल्लू से आंसुओं को पोछते हुए कहा," तुम्हारे दादा सही कह रहे है। मैं अनपढ़ समाज मे कही जाने लायक, नहीं बिटिया तभी तो आजतक कभी कही नहीं गयी"
लेकिन सिया आज सुधा की तरह संकोच में चुप नहीं रही,उसने दीनानाथ जी को जवाब देते हुए कहा" दादाजी,मैं तो दादी जी को अपने साथ लेकर जाऊंगी। दादी जी! आप मेरी बात सुनिए। आप वहाँ अपनी शुद्ध हिंदी में आत्मविश्वास के साथ बात करना सबसे। क्योंकि ये तो हम सब जानते है कि अपनी भाषा, भूमि से प्यार करना पूरे संसार में श्रेष्ठ भाव माना जाता है। और मुझे अपनी दादी को अपने साथ कही भी और कभी भी ले जाने मे संकोच या शर्म नहीं होगा।"
दीनानाथ जी को आज पहली बार किसी ने जवाब दिया था वो भी आनंदी जी की तरफदारी करते हुए। तब दीनानाथ जी ने कहा,"बहु ये सब बातें किताबों और भाषण में अच्छे लगते है मेरी मानो तो एक दो फ़ोटो इनके साथ निकाल कर सोशल साइट्स पर डाल दो उतना काफी है।"
तब तक अनुज ने कहा,"बस दादाजी मुझे माफ़ कीजियेगा लेकिन अब मैं अपनी दादी माँ का अपमान और बर्दाश्त नहीं करूंगा। शायद आप भूल रहे है कि जिसे आप हिंदी भाषी अनपढ़ औरत कह रहे है उसी दादी ने आपके बेटे और पोते दोनो की परवरिश की है। जिनके लिए आप गर्व से अपना सीना चौड़कर के सबसे कहते हो। क्यों बेटे को पढ़ाने के लिए आपके पास नौकरी से समय नहीं था और मेरे लिए समाज में सामाजिक सेवा के कार्यों से। लेकिन अफसोस कि आपने कभी अपनी ही पत्नी का सम्मान नहीं किया।सिया तुम ले जाकर दादी माँ को तैयार करो। वो आज पार्टी में पूरे सम्मान के साथ जाएंगी।
तभी घर की घंटी बजी सिया ने दरवाजा खोलकर देखा तो उसकी विदेशी पड़ोसन दरवाजे पर खड़ी थी उसने अंदर आकर हाथ जोड़कर सभी से कहा "नमस्ते"
तब सिया ने उससे अंग्रेजी में पूछा,"की किस काम से वो यहाँ आयी है।तो उसने साड़ी निकाली और पहनाने के लिए हिंदी में कहने की कोशिश करते हुए आनंदी जी की तरफ इशारा किया, क्योंकि उसे साड़ी में सिर्फ आनंदी जी दिख रही थी। सिया और सुधा ने सलवार कमीज पहन रखा था।
तब सिया ने उसे दादी के पास जाने का इशारा किया, आनंदी जी ने उसे साड़ी पहनना सिखाया और वो साड़ी पहन कर वे फूले नहीं समा रही है। उसने आनंदी जी के साथ ना जाने कितनी ही फोटो साड़ी पहन कर ली।और जाते समय बार-बार अपनी टूटी फूटी हिंदी में आनंदी जी से "धन्यवाद प्यारी दादी जी" कह रही थी
उसके जाने के बाद सिया ने सिल्क की साड़ी आनंदी जी को पहनायी और फिर सब एक साथ आनंदी जी को साथ लेकर पार्टी के लिए निकल गयी।उन्होंने हाॅल में जाकर देखा तो। देशी विदेशी महिलाएँ सब साड़ी पहन कर खुशी से झूम रही थी। बैकग्राउंड में गाना चल रहा है"जहां पांव में पायल, हाथ में कंगना और हो माथे पर बिंदिया" पार्टी हाल में पहुँचकर आज आनंदी जी बहुत ही प्रभुल्लित महसूस कर रही थी सिया और अनुज दादी को अपने परिचित संगी साथियों से मिला रहे थे लेकिन जैसे ही किसी को अंग्रेजी में बोलते सुनती उनके चेहरे पर उदासी छा जाती। और वो डर के दीनानाथ जी की तरफ देखने लगती लेकिन दूसरी तरफ आज उन्हें मन ही मन अपने देश अपनी भाषा और संस्कृति पर गर्व भी महसूस हो रहा है।फिर वहा सबको उपहार भेंट किए गए जिसमें खादी की साड़ियाँ देखकर आनंदी जी दंग रह गई।
सिया को जब मंच पर बोलने के लिए बुलाया गया तो वो आज अपने साथ दादी को लेकर भी मंच गयी। और कहा,"मैं माफी चाहती हूँ लेकिन आज हिंदी दिवस के मौके पर मेरी दादी आप सबके समक्ष हिंदी के बारे में कहेंगी।"डरती हुई आनंदी जी को जब सिया ने सहारा दे कर बोलने के लिए कहा,"तो वो भावुक हो गयी। फिर खुद को संभालते हुए उन्होंने दो टूक कहा," माँ और मातृभाषा कभी भी किसी पहचान और सम्मान की मोहताज नहीं होती,वो सर्वदा और सदैव हर जगह सम्माननीय होती है।और हमारी हिंदी तो बहुत ही मीठी है। जिसे बोलने और सुनने से ही कानों में मिश्री सी घुल जाती है।"
आज आनंदी जी को सम्मान प्राप्त हुआ। वो भी अपनी पोते बहु की वजह से। जिससे उनका मन आज बहुत हर्षित था। दीनानाथ जी आनंदी जी को एकटक देखते ही रह गए। पार्टी हाल में मौजूद देसी विदेशी सभी महिलाएं आज उनके साथ सेल्फी ले रही थी। और उनके सम्मान में तालियां बजा रही थी उनसे बात करके खुश हो रही थी। जीवन के अंतिम पड़ाव पर ही सही वो ये सम्मान पाकर खुश थी।
पार्टी से जब घर आयी तो उनके चेहरे पर खुशी थी लेकिन आज दीनानाथ जी के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था उन्होंने आनंदी जी के घर आने पर सबके सामने कहा आनंदी जी मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं आपका गुनहगार हूं। आज अनुज और सिया ने मेरी आँखें खोल दी।उसने सही कहा कि "मैंने आप के लिए क्या किया? आपके उस कमी को लेकर आपको उम्र भर ताने देता रहा जो कभी कोई कमी थी ही नहीं। हिंदी भाषी होना कोई अपराध नहीं। लेकिन अगर आपको अंग्रेजी बोलनी नहीं आती थी तो मैंने आपको सिखाने की भी कोशिश भी तो नहीं की बस दोष पर दोष मढ़ता रहा।"
तब आनंदी जी ने कहा "अजी आप भी क्या ये सब बातें लेकर बैठ गए? आप तो ये बताइए कि आज जो मैंने मंच से भाषण दिया वो कैसा था??"
क्यों सिया बता तो अपने दादा को की कितना अच्छा बोला मैंने। फिर दीनानाथ जी के साथ सब एक साथ बोल पड़े,"आप तो अच्छा बोलती ही हो। और हँसने लगे।"