Ravi Ranjan Goswami

Drama Crime

4  

Ravi Ranjan Goswami

Drama Crime

चुनाव

चुनाव

6 mins
321


चुनाव चाहे देश का हो या सोसाइटी का कुछ लोगों के लिए जंग से कम नहीं होता।

अंबर रेजीडेंशियल सोसाइटी में पिछले पाँच वर्षों से लालाराम जी और कान्तिलाल अध्यक्ष और सचिव के पद पर काबिज थे। पर अबकी बार उन्हें रामलाल और जोजफ से चुनौती मिली थी। लोगों ने इन दोनों को परंपरा का हवाला देकर मनाने की कोशिश की किन्तु वे नहीं माने। मार्च का महिना शुरू हो चुका था। 5 मार्च को मीटिंग में ये निर्णय हुआ कि पंद्रह तारीख को वोटिंग होगी। अब सोसाइटी में दो गुट बन गये । एक लालाराम गुट ,दूसरा रामलाल गुट अधिकांश लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी न किसी गुट से जुड़ गये। कुछ लोग गुट निरपेक्ष भी थे।

रामलाल और जोजफ के चुनाव पर ज़ोर देने की वजह थी सोसाइटी के रखरखाव और अन्य छोटे बड़े कार्यक्रमो के लिये एकत्र किया जाने वाला चंदा। पिछले दो वर्षों से हर कार्यक्रम के लिये चंदे की दरें बेहिसाब बढ़ गयीं थी। कार्य क्रमों का स्तर घट गया था। सोसाइटी कोई छोटी न थी। चंदे से लाखों रूपये इकट्ठे होते थे।

सोसाइटी के लोगों को ऐसा लगने लगा था की चंदे में कुछ घपला हो रहा है या उसका उचित तरीके से उपयोग नहीं हो रहा है। लेकिन कोई खुल के नहीं कह पा रहा था। लालाराम और कांतिलाल दोनों काफी प्रभाव शाली व्यक्ति थे। जब रामलाल और जोजफ इस विषय को लेकर आगे बढ़े तो सोसाइटी के वे लोग उनको समर्थन देने के लिये तैयार हो गये।

लालाराम के लिये ये चुनाव जीतना बहुत जरूरी था क्योकि अगले वर्ष उनका नागरिक पार्टी की ओर से नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव लड़ने का विचार था। सोसाइटी का चुनाव हारने से उनके प्रतिद्वंदीयों को उनके खिलाफ मोर्चा खोलने का बहाना मिल जाएगा और उनको चुनाव टिकट प्राप्त करना मुश्किल होगा।

एक दिन दोपहर को लालारम और कांतिलाल सोसाइटी के कार्यालय में बैठे थे।

लालाराम ने कांतिलाल से कहा, “सोचा नहीं था अचानक चुनाव का सामना करना पड़ेगा?”

कांतिलाल बोला, “उन्हें लगता है हम चंदे में से पैसा खाते हैं।”

लालाराम ने हँसते हुए कहा, “ पता नहीं किसने ये बात फैलायी! हमने चंदे में से कुछ लिया? हम लोगों ने तो सिर्फ कमीशन लिया।”

कांतिलाल ने कहा, “आप सही कहते हैं। ये लोग समझते हैं हम बहुत माल बना रहे है।”

लालाराम ने गंभीर होकर कहा, “ये चुनाव जीतना बहुत जरूरी है। वर्ना अगले वर्ष नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव लड़ना मुश्किल हो जायेगा।”

कांतिलाल ने पूछा, “ आप हारने की क्यों सोच रहे हम फिर से जीत सकते हैं।”

लालाराम ने कहा, “मैं हारने की नहीं, जीत सुनिश्चित करने की सोच रहा हूँ। तुम भी कुछ सोचो।“

कांतिलाल ने कुछ विचार कर कहा, “ अगर हम रामलाल और जोजफ को कुछ रूपये देकर अपना नाम वापस लेने को कहें तो?”

लालाराम की आँखों में चमक आयी। वह बोला, “कांति तुम किसी बहाने से कोशिश करो। पैसे में बहुत ताकत होती है।”

कांतिलाल बोला, “ठीक है मैं दोनों की नब्ज टटोलता हूँ।” यह कहकर कांतिलाल उठ कर चलने लगा तो लालाराम ने कहा, “आज ही कोशिश करो। जो बात हो फोन पर बता देना।”

इसके बाद लालाराम भी अपने निवास की ओर चला गया।

शाम को कांतिलाल का फोन आया। उसने कहा, “लालाजी हमने दोनों की नब्ज टटोली दोनों को ईमानदारी का बुखार बुरी तरह चढ़ा हुआ है। पैसे से काम नहीं बनेगा।”

लालाराम ने कहा, “कोई बात नहीं। जब अंदाजा लग गया तो उनसे पैसे की बात मत करना।”

कान्तिलाल ने पूछा, “आगे क्या करना है?”

लालाराम ने कहा, “भिक्षा मांगना शुरू करते है।”

कांतिलाल की आवाज में आश्चर्य था, “क्या मतलब?”

लालाराम ने हंस कर कहा, “ बड़े बड़े नेता मांगे हैं ; वोटों की भिक्षा। समझे?”

कान्ति ने पूछा, “विरोधियों का क्या करना है?”

लालाराम ने कहा, “ वो हम देख लेंगे। तुम प्रचार करना प्रारम्भ करो। गुड नाइट।”

गुड नाइट कहकर बिना कान्ति के जवाब को सुने लालाराम ने फोन काट दिया।

दो दिन बाद ही सोसाइटी में जगह जगह लालाराम के आदमक़द और कान्ति लाल के उससे थोड़े छोटे कट-आउट जैसे उग आये। रामलाल और जोजफ ने कुछ कपड़े के बैनर कुछ खास स्थानों पर लगवा दिये थे। पर्चे बांटे गये । घर घर जाकर वोट मांगे गये।

इस बीच एक दिन सोसाइटी से थोड़ी दूर स्थित चकमक होटल के कमरा न.42 में एक गुप्त मीटिंग हुई। मीटिंग में चार लोग थे लालाराम, कांतिलाल, छज्जू और मंगल।

कांतिलाल के चेहरे पर तनाव था। छज्जू और मंगल शहर के छंटे हुए गुंडे थे जिनका एक पाँव जेल में दूसरा बाहर रहता था।

लालाराम ने कान्ति को इशारा किया। उसने जेब से पाँच सौ रुपए के तीस नोट यानि पंद्रह हज़ार रुपए छज्जू को दिये। छज्जू ने नोट गिने और लालाराम से बोला, “सेठ पाँच हज़ार और चाहिये। बाज़ार में हर चीज़ के दाम बढ़ गये हैं। लालाराम ने कान्ति से पाँच हज़ार रुपये और दिलवा दिये।

रूपये अपनी पैंट की जेब के हवाले करके छज्जू चलने के लिए उठ खड़ा हुआ। उसे देखकर मंगल भी खड़ा हो गया।

लालाराम ने उनसे कहा, “जितना कहा है उतना ही करना।”

छज्जू बोला, “ठीक है।”

और दोनों कमरे के बाहर चले गये। उनके जाने के पंद्रह मिनट बाद लालाराम और कान्तिलाल भी वहाँ से चले गये।

11 तारीख को नाम वापस लेने की तारीख थी।

रामलाल का नियम था सुबह पाँच बजे घूमने जाते थे और लगभग एक घंटा पैदल घूम कर छः बजे वापस आ जाते थे। उस दिन वो 9 बजे तक नहीं लौटे तो पत्नी को चिंता हुई उसने मोबाइल का नंबर लगाया तो घंटी की आवाज बेड रूम से आयी। रामलाल अपना फोन घर पर ही छोड़ गये थे। फिर उन्हों ने जोजफ को फोन लगाया और अपनी चिंता व्यक्त की। जोजफ ने उन्हें सांत्वना दी और अपना स्कूटर लेकर रामलाल की तलाश में निकल पड़ा। वह अपने घर से सोसाइटी के गेट तक ही आया था कि रामलाल जी गेट से प्रवेश करते दिखायी दिये। वह थोड़ा लंगड़ा के चल रहे थे और उनके बायें हांथ की कलाई पे प्लास्टर चड़ा हुआ था।

जोजफ ने पूछा, “ क्या हुआ ? कहीं गिर पड़े क्या?”

रामलाल ने गहरी सांस लेकर कहा, “मैं समझता था मेरा कोई शत्रु नहीं है किन्तु इस चुनाव ने मेरे शत्रु भी बना दिये। सुबह सुबह दो नकाबपोश लोगों ने मुझ पर हमला किया और धमकाया कि मै चुनाव से अपना नाम वापस ले लूँ । मारपीट कर धमका कर वे भाग गये। मैंने तुरंत थाने में जाकर रिपोर्ट की। अस्पताल गया तो वहाँ डॉक्टर ने हाथ में प्लास्टर चढ़ा दिया बोला बारीक फ्रेक्चर है।

जोजफ बोला, “ आप कम से कम घर पर या मुझे फोन तो कर देते।”

रामलाल ने कहा, “ चलो छोड़ो, जाने दो, मैं ठीक हूँ । सबको क्या परेशान करना।”

शाम को पूरी सोसाइटी में चर्चा थी कि लालाराम और कान्तिलाल ने चुनाव से नाम वापस ले लिया।

दरअसल रामलाल ने सुबह की घटना के बाद जब नाम वापस नहीं लिया तो लालाराम ने नाम वापस लेने का निर्णय लिया और कान्ति सहित चुनाव से नाम वापस ले लिया। साथ ही सोसाइटी में सब से रामलाल जी और जोजफ को सहयोग देने की अपील की।

लालाराम को किसी भी कीमत पर हारना मंजूर नहीं था।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama