चतुर या मूर्ख
चतुर या मूर्ख


आजकल कुछ वीडियो दिखाए जा रहे हैं। पुलिस जमघट लगाने वालों को, बिना मास्क पहने बाहर पड़ने वालों को और बिना कारण भटकने निकले लोगों को डंडों से हड़का रही है। कहीं पर लोगों को सरे आम मुर्गा बनाया जा रह है तो कहीं मेंढकों तरह फुदकाया जा रहा है। बरबस अपने सकूली दिन याद हो आए। हद तो तब हुई जब बिना मास्क हीरोगिरी पर उतारू लोगों के सरे बाज़ार शर्ट उतरवाकर नाक पर बंधवाया गया। इन के परिवार वालों ने और बच्चों ने भी ह सब देखा होगा ! क्या सोचा कहा होगा घर पहुंचने पर -आरती तो निश्चित न उतारी होगी।
जो दिखाया जा रहा था लज्जास्पद तो था,पर नकारा नहीं जा सकता। शाम को मैं कुछ मास्क लेने के लिए मेडिकल की तरफ निकली। एक वयस्क सज्जन सामने से आते दिखे, बिना मास्क। हाथ में तहाया हुआ रुमाल ज़रूर पकड़े हुए थे। मेरे सामने पड़ते ही झट नाक पर धर लिया। बस दो कदम गए हेंगे, फिर हाथ नीचे। किसे धोखा या तसल्ली दे रहे थे - खुद को या दूसरों को !
दुकान पर फिर भी सब ठीक था। एक बार में बस दो ही लोगों अंदर ले रहे और वह भी मास्क के साथ। दुकानदार भी मास्क लगाए हुए था। एक पल को लगा कॉलोनी का वह व्यक्ति शायद अपवाद हो। इतने में पांच छह अधेड़ उम्र के लोग दुकान के सामने से गुज़रे - बिना मास्क, मस्ती में। दुकानदार से रहा नहीं गया। बोल उठा इन लातों के भूतों के लिए पुलिस की लाठी ही ठीक है। बच्चों की बात फिर भी समझ आती है। इन समझदारों को क्या कहें- चतुर या मूर्ख ?