चोरी का रहस्य
चोरी का रहस्य
आज सुबह से ही राजू जासूस, अपने कमरे में बेचैनी से चहलकदमी कर रहा था, उसकी असिस्टेंट मिस रीटा परेशान थी कि बॉस को क्या हो गया, सुबह से किस चिंता में हैं, कितनी सिगरेट फूंक चुके थे, कॉफी के कप खाली कर चुके थे।
"बॉस"रीटा ने कहा: कुछ तो बताएं, क्या बात है?
अरे, क्या कहूँ, राजू जासूस बोला: अगर इसी तरह खाली रहे तो इस बार इस कमरे का किराया भी न दे पाएंगे।
लगता है अब जासूसी छोड़ कुछ और काम करना पड़ेगा, वो मायूसी से बोला।
क्यों फिक्र करते हो बॉस, पूरे शहर में आपकी टक्कर का कोई नहीं है।
अभी वो ये बातें ही कर रहे थे कि फ़ोन की घण्टी घनघना उठी।
बात करके, राजू जासूस मुस्करा दिया, अरे आज तो भगवान को भी मांग लेता तो मिल जाते, चलो कमरा ठीक करो, एक मोटी पार्टी/क्लाइंट आ रहा है
अभी अभी।
उसने कहा तो रीटा के चेहरे पर भी खुशी दौड़ गयी।
थोड़ी देर बाद, राजन, यही नाम था उनके क्लाइंट का, अपना किस्सा सुना रहा था इन दोनों को।
राजू जासूस ने खास हिदायत दी थी कि छोटी से छोटी बात उन्हें बतानी है। कितनी भी गैर जरूरी लगे तुम्हें, जो, वो भी।
राजन के दादा जी की दो पत्नियों में बड़ी व पहली पत्नी की संतान उसके पिता निरंजनदास थे और दूसरी पत्नी की इकलौती औलाद उसके चाचा संजय थे। दोनों भाई एक मां की औलाद न होते हुए भी बड़े प्यार से रहते। बड़ी मां के देहांत के बाद निरंजन छोटी मां को ही सब कुछ मानते पर उन्हें वो फूटी आंख न सुहाता।
जब दोनों लड़के बड़े होने लगे और उसके दादा वृद्धावस्था में कई बीमारियों का शिकार होने लगे, उन्हें लगा कि अपनी वसीयत कर देनी चाहिए जिससे दोनों बच्चों में उनके बाद कोई विवाद न हो।
उन्होंने एक हिस्सा अपनी पत्नी के नाम और बाकी बचा दोनों लड़कों में बराबर बांट दिया था।
छोटी मां को ये बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था, उनका मन था कि सारी सम्पत्ति पर उनके अपने बेटे का ही कानूनन हक हो, इस बात को लेकर घर में कुछ विवाद भी होता रहता था।
पिछले ही माह दादाजी की डेथ के बाद, ये विवाद कुछ बढ़ गए थे।
अब दो दिनों पहले, उसके पिताजी के कमरे से सारा कीमती समान, जेवरात, कैश तो चोरी हुआ ही, साथ ही उसके पिता को भी घायल कर दिया गया।
पुलिस का पूरा शक उसकी छोटी माँ पर ही जा रहा है लेकिन उसके पिता ये मानने को तैयार नहीं। उन्होंने पुलिस से साफ कह दिया है कि उनकी छोटी माँ का इसमें जरा हाथ नहीं।
अब ऐसे में आप ही हमारी मदद करें, मैंने सुना है आप दूध का दूध और पानी का पानी कर देते हैं। मैं बड़ी उम्मीदें लेकर आपके पास आया हूं, खर्चे की आप फिक्र न करें। राजन ने कहा।
राजू जासूस, कुछ सोचते हुए बोला, तुम्हारे घर में और कौन कौन है?
राजन: जी, दादी, पापा, मां, चाचा, चाची, उनके दो बच्चे और मैं।
चार नौकर हैं। उनके लिए सर्वेंट क्वार्टर है घर के एक हिस्से में।
तुम्हें किसी पर शक है, किसी से कोई दुश्मनी, लड़ाई हुई कभी? कोई बिज़नेस राइवलरी।
नहीं, सोचते हुए राजन ने कहा, ऐसा तो कुछ नहीं।
नौकर कब से हैं, नया तो नहीं रखा है कोई, जासूस बोला
नहीं, सब पुराने हैं, हां, रघु चाचा , जो हमारे बहुत पुराने मुलाज़िम हैं , उनका बेटा, बहु शहर से आये हुए हैं कुछ समय से।
राजू जासूस सिर हिलाता रहा और मन ही मन हिसाब लगाता रहा।
ठीक है कल तुम्हारे घर आकर सबसे बात करते हैं कल।
अगले दिन सुबह 10 बजे, राजू जासूस, उसकी अस्सिस्टेंट रीटा राजन के घर मे मौजूद थे।
राजन के पिता के काफी चोटें आई थीं, उनसे पूछा गया कि क्या आप हमलावर को पहचान सकते हैं।
उन्होंने बताया कि क्योंकि उनका चेहरा ढका हुआ था और कमरे में उचित रोशनी नहीं थी, ये मुमकिन नहीं है।
फिर भी उन्हें लगता है कि हमलावर अकेला ही था और पहचाने जाने के डर से उसने उन्हें पीटा था।
राजू जासूस ने कहा: ये आपके चेहरे पर काले निशान कैसे हैं?
निरंजनदास ने अनभिज्ञता जाहिर की, पता चला उन्हें पहले क्लोरोफार्म देने की कोशिश की गई थी, जिसमें असफल होने पर ही बेदर्दी से पीटा गया।
राजन की दादी को भी इंटररोगेट किया गया लेकिन वो अब भी अपनी बात पर अडिग थीं। उनका कहना था कि ये सारी संपत्ति उनके पति की है और इसपर उनका और उनके बेटे का हक है बस।
वो बड़ी तल्खी से बोल रहीं थीं और बड़े बेटे की हालत पर उन्हें ज़रा रहम नहीं था, साथ ही इस केस में किसी भी तरह से लिप्त होने को पूरी तरह नकार रहीं थीं।
नौकरों से भी पूछताछ की गई लेकिन कुछ तथ्य मिल नहीं रहे थे।
रीटा परेशान थी कि बॉस क्या रास्ता निकालेंगे, यहां तो शक की सुई किसी पर टिक नहीं रही। उसकी ये संभावना भी बॉस ने नकार दी जब उसे दादी की तल्खी से उनपर शक हुआ था।
राजू जासूस ने कहा: अपराधी कभी भी कड़वा नहीं बोलता, वो हमेशा चाशनी में लपेट कर बात बोलता है।
या तो घर मे ही कोई है जो हमारी नज़रों से दूर है अभी, या कोई महत्वपूर्ण बात, राज़ हमें बताया नहीं गया है।
एक बार फिर आज राजू जासूस सब घरवालों से मुखातिब था। बिना सूचना दिए उसके धमकने से सबसे ज्यादा परेशानी नौकर के बेटे बहु को थी। उसने उन्हें ही धर लिया अपने प्रश्नों के जाल में।
राजू:आप यहां कब आये?
सोहन(नौकर का लड़का, जो शहर में कहीं चपरासी था)साहब कुछ दिनों से ही आये थे।
राजू: क्या कमा लेते हो शहर में?
सोहन: अरे साहब , कहाँ गुजारा होता है, लगता है अब यही आ जाएंगे, कोई काम ढूंढेंगे।
राजू: तुम्हारे कपड़े, मंहगी घड़ी, सेल फ़ोन देख कर लगता तो नहीं ऐसा।
सोहन: (थोड़ा सकपकाते हुए) नहीं साहब, ये तो ससुराल से मिली है।
उसकी बीबी, उससे ज्यादा ठाठ से दिखी।
राजू ने तेज आवाज में कहा: कुछ कुबूलना हो तो अभी मौका है, खुद कुबूल लो, फिर नहीं मिलेगा अवसर।
उसकी इस बात से दोनों मियां बीबी हड़बड़ा गए। उनके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं।
बहुत जल्दी उन्होंने ये कुबूल किया कि उन्होंने ही ये सब किया था, उन्हें पूरा विश्वास था कि पूरा शक दादी पर ही जायेगा, वो रोज उल्टा सीधा बोलतीं, झगड़ा करतीं। इसका फायदा उठाकर उन्होंने ये कदम उठाया था। सारा चोरी का सामान उनके पास से बरामद हो गया था।
सब लोग राजू जासूस की तारीफों के पुल बांध रहे थे और वो मुस्करा के सबका स्वागत कर रहा था।
जब सब चले गए, वो और रीटा अकेले रह गए, रीटा ने उनसे पूछा: बॉस , मुझे तो बताइए, आपने ये सब किया कैसे?
राजू मुस्कराने लगा: अरे ये हो तो सीक्रेट है, ऐसे ही मैं चीफ और तुम मेरी असिस्टेंट नही हो।
रीटा गिड़गिड़ाई: सर प्लीज बताओ न
राजू: पहले ही दिन मुझे, उन दोनों पर शक हुआ था, मैंने उनके कमरे में कैमरे फिट कर दिए थे।
फिर उनकी सारी गतिविधियों पर मैंने नज़र रखी और खुदबखुद वो मेरे जाल में फंस गए।
लो तुम ये बादाम खाओ, उसने कुछ भीगे बादाम रीटा की तरफ उछाले, रीटा अभी भी अपनी आंखें जल्दी जल्दी झपका रही थी।
