चोरी-चकारी
चोरी-चकारी




नई बस्ती कॉलोनी में अपना अर्धनिर्मित घर देखने आया सिद्धार्थ वहाँ पहले से बसे वर्मा जी के हत्थे चढ़ गया, उन्होंने ने उसे चाय के बहाने अपने घर के सामने बैठा लिया था और उनका नॉनस्टॉप भाषण चालू था।
"शर्मा जी, देखो मकान तो बनवा रहे हो लेकिन थोड़ा धयान रखियेगा यहाँ चोरी-चकारी बहुत होती है; चौकीदार तक भरोसे के लायक नहीं है........."
"सही कह रहे है वर्मा जी........" सिद्धार्थ बोर होते हुए बोला।
"अरे सही तो कह ही रहे है; हम तो जबसे यहाँ बसे हैं यहाँ हो रही चोरी-चकारी से बहुत ही परेशान है।" वर्मा जी अपनी ही धुन में बोले।
तभी दिल्ली के नंबर वाली दो लक्जरी कार वहाँ आकर रुकी, दोनों कारो में से एक ड्राइवर उतरा और बोला, "वर्मा जी आज ही उठाई है दिल्ली से; आप कार स्टीरियो माँग रहे थे, चाहिए तो मै कार से निकाल देता हूँ, पुरे पाँच हजार लगेंगे।"
"क्या बकवास करता है चोरी की कार है; कबाड़ में ही बिकेगी, स्टीरियो देना हो तो पाँच सो रूपये दूँगा, देना हो तो दे नहीं तो चलता बन।" वर्मा जी उत्साह के साथ बोले।
"माल तो पचास हजार से कम का नहीं है, पाँच हजार में सस्ता ही है लेकिन आज थोड़ा जल्दी में हूँ इसलिए पाँच सौ में दे रहा हूँ, तुम पैसा निकालो मैं स्टीरियो निकालता हूँ।" कार का ड्राइवर थोड़ा चिढ़ते हुए बोला।
"ज्यादा बकवास क्यों कर रहा है, चल निकाल स्टीरियो देता हूँ तेरे पाँच सौ.........शर्मा जी जरा ये मसला निपटा कर पिलाता हूँ चाय आपको।" कह कर वर्मा जी कार की तरफ बढ़ गए।
"वर्मा जी थोड़ा जल्दी में हूँ, चाय फिर कभी पी लूँगा।" कहते हुए सिद्धार्थ ने चोरी-चकारी पर भाषण देने वाले लेकिन चोरी-चकारी का माल खरीदने में व्यस्त वर्मा जी की तरफ देखा और उठ खड़ा हुआ।