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Ragini Ajay Pathak

Abstract Drama

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Ragini Ajay Pathak

Abstract Drama

चोरौंधा

चोरौंधा

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मायके से विदा होके रागिनी ससुराल के चौखट के सामने आ गयी थी। कार घर के ठीक बाहर गेट के सामने खड़ी थी अपनी नयी नवेली दुल्हन लेकर अनुज घर के बाहर कार में ही बैठा था। माँ ने अभी गाड़ी में ही बैठने के लिए कहा था। दुल्हन आ गयी दुल्हन आ गयी घर में चारो तरफ एक भागमभाग मच रही थी। तभी रागिनी ने देखा एक महिला कार के अंदर कुछ ढूंढ रही है। उसे समझ नहीं आया कि ये से क्या हो रहा है तभी सासु माँ गीता जी मुस्कुराते हुए पास कर बोलीं " बहु सास की साड़ी कहां रखी है ?

गीता जी के इतना कहते रागिनी को याद आया की माँ ने कहा था कि ये साड़ी मैं समधनजी के लिए रख रही हूं तेरी विदाई के समय तेरे साथ कार में ही रखी जायेगी। क्योंकि इसी साड़ी को पहनकर वो बहु को उतारने की रस्म पूरी करेंगी।

रागिनी ने आगे की सीट पर रखे गिफ्ट के पैकेट की तरफ इशारा किया।

गिफ्ट का पैकेट लेकर गीता जी अंदर गयी,लेकिन लौटी तो उनके चेहरे से मुस्कुराहट गायब थी। रागिनी ने देखा तो उन्होंने वहीं साड़ी पहनी थी जो रागिनी की माँ ने दी थी, वहाँ मौजूद औरते साड़ी की तारीफ कर रही थी लेकिन गीताजी को साड़ी नही पसंद आयी थी

उन्होंने बहु के गृहप्रवेश की सारी रस्में की गृहप्रवेश के समय दरवाजे पर ही उसकी ननद निशा ने दरवाजा रोका और भाई से कहा बिना नेग लिए अंदर जाने नही दूँगी, पूरे 50000 तो चाहिए ही मुझे आखिर इकलौती बहन हुँ तुम्हारी लाओ मेरा नेग।

अनुज ने कहा"अरे निशा तू भी ना ,चल जाने दे अंदर परेशान मत कर वैसे भी रात भर जाग कर थक चुका हूं,कल ले लेना अभी तो नही मेरे पास।"

निशा-"क्यों आंगन में तुम्हें खिचड़ी खाते समय तुम्हारे ससुराल वालों ने तुम्हे नेग नहीं दिए,वैसे भी इतना बड़ा संयुक्त परिवार है भाभी का।"

अनुज-" अच्छा वो पैसे मिले तो है लेकिन मैंने गिने नही।"

तब तक अनुज की बात को बीच मे काटते हुए गीता जी ने कहा"निशा जाने दे बेटा अंदर, सबको देना लेना नही आता, इसके लिए तो बड़ा दिल चाहिए, मुझे मिली साड़ी देखकर तुझे ये बात खुद ही समझ जाना चाहिए था।"

वहाँ मौजूद सबके बीच में इस तरह गीताजी का व्यंग्य करना रागिनी को बिल्कुल भी अच्छा नही लगा, लेकिन रागिनी अपमान का घूंट पी के रह गयीं।

सारी रस्में होने के बाद गीता जी ने अनुज से कहा " बेटा, मुझे वो चोरौंधा(बेटी की माँ बेटे की माँ को ये उपहार दूल्हे के हांथो भिजवाती है ये कहते हुए की ये सीधा अपनी माँ को देना बिना किसी को बताये) तो देना जो तेरी सास ने तुझे दिया "

अनुज -"चोरौंधा ये क्या होता है उन्होंने ने तो ऐसा कुछ नही दिया,मुझे।"

गीताजी-"हाय राम कितने कंजूस और बेशर्म निकले तेरे ससुराल वाले चोरौंधा की रस्म में एक उपहार ना दे सके, कुछ नही तो नेग में 101 रुपये ही दे देते की बेटा दे देना अपनी मां को।"

अनुज-"अच्छा उपहार तो दिया मुझे उन्होंने ये कहकर की मैं बिना किसी को बताये सीधा आपको दूँ लेकिन ये चोरौंधा है ये मुझे नही पता था रुकिये अभी लाता हुँ कहते हुए अनुज ने कमरे से लाकर एक उपहार अपनी माँ को दिया।"

वहाँ मौजूद सभी रिश्तेदार औरते पूछने लगी देखे तो सही की आखिर समधन ने दिया क्या है? गीताजी ने उपहार खोला तो उसमें सोने की चेन के साथ कान की बूंदे थी सभी तारीफ कर रहे थे लेकिन गीताजी का मुँहटेढा ही रहा।

गीताजी-" कितने हल्के है जीजी, ये देखो दम ही नही इसमे ना वजन मुझे तो 18 कैरट का सोना दिख रहा है"

अनुज ने लाकर खिचड़ी खाने के समय भी मिले सभी उपहार रख दिये,लेकिन उसमें पैसों की गिनती हुई तो सिर्फ 30000 ही निकलें, चार सोने की अंगूठी ,तीन सोने की चेन ,कपड़े इत्यादि लेकिन किसी चीज की कोई कीमत नही थी उन लोगो की नजरों में।

गीता-"देखो मैने कहा था ना नही मिले होंगे जब कि चार बुआ ,चार चाचा ,मामा मामियो , तीन बड़ी बहनो से भरा पूरा परिवार है।"

ये सब बातें अंदर रागिनी सुनकर रोने लगी, उसे याद आ रहा था कि उसने अपनी मां को मना किया था माँ ये सोने की चेन आप ही पहनना आप खाली गला रहती हो कान की बूंदे ही सिर्फ दो, वैसे भी वो लोग पैसे वाले है।

लेकिन उसकी मां ने कहा"नही बेटा ये तो उनका हक बनता है उन्हें भी तो इंतजार होगा,भले उनके पास कितना भी पैसा हो,लेकिन इस की बात ही अलग है वहाँ चार औरते पूछेंगी तो वो क्या कहेंगी"

रिश्तेदारों ने अनुज को अपनी मर्जी और हैसियत के हिसाब से सामान दिए थे।

सास के बक्से से लेकर साड़ी, कपड़े ,फर्नीचर ,बर्तन दहेज में मिले हर एक समान में ढूंढ ढूंढ कर कमी निकली गयी,जैसे शादी ना हुई कोई शॉपिंग कर के आये हो। फाइनल बात सबकी ये हुई कि अनुज के ससुराल से कुछ भी ढंग का नही मिला।

रागिनी के चेहरे पर उदासी थी और मन मे गुस्सा लेकिन माँ की मिली सीख से वो कुछ बोल नही थी कि बेटा अब उसी घर मे तेरा जीवन बीतना है तो रिश्तों में किसी बात को लेकर कड़वाहट या मनमुटाव मत रखना। हो सकता है की हम लोगो की कोई बात या दिया समान उन्हें ना पसन्द आये तो चुपचाप सुन लेना कुछ भी पलट कर मत कहना।

अपने मधुर व्यवहार से सबका दिल जीतने की कोशिश करना।

अगले दिन रागिनी की माँ का फोन आया । उन्होंने रागिनी से पूछा"कैसी है मेरी बिटिया रानी, खुश तो है ना ,बाकी सभी कैसे है।"

रागिनी का मन हुआ वो अपनी मां के गले लग कर जोर जोर से रो ले जी भर के एक एक बात बता दे,लेकिन अगले ही पल उसे याद आया कि क्यों वो अपने दुःख से अपनी मां को भी दुःखी करें तो उसने अपने आंसुओं पर कंट्रोल करते हुए कहा- "सब कुछ बढ़िया है माँ"

तब तक फोन रागिनी को बुआ ने ले लिया और कहा"कैसी है मेरी भतीजी?"

रागिनी-"अच्छी हूं बुआ"

बुआ-"और ससुराल में सब कैसे है सबके व्यवहार कैसे है तेरे साथ"

तब तक सामने आईने से रागिनी को अपनी सास कमरे में आती दिखी।

रागिनी-"सभी का व्यवहार अच्छा है बुआ,क्यों कोई बात है"

रागिनी को पता था कि बुआ भी बड़बोली और कमियां निकालने माहिर इंसान है। तो उसने फोन इस बार स्पीकर पर कर दिया।

बुआ-"कुछ नही बस तेरे ससुराल वालों के नाम बड़े और दर्शन छोटे निकले,भाभी ने कितने महंगे महंगे समान चुन चुन कर दिए तुझे, एक तेरे ससुराल वाले है मुझे सिंदूर बोहराई की अच्छी साड़ी भी ना दी, सोना चांदी की निशानी तो दूर की बात रही एक जोड़ी पायल तो दे ही सकते थे, अब तो मुझे बोलते लाज आती है कि मेरी भतीजी के ससुराल वाले इतने कंजूस है और तेरे भाई को भी फेरो के समय लावा (प्रदक्षिणा) का शर्ट पेंट अच्छा नही दिया।"

कमरे में घुसती सासुमां के कदम दरवाजे पर रुक कर बात सुनने लगी।

तब रागिनी ने कहा-"बुआ हर इंसान अपनी तरफ से अच्छे से अच्छा उपहार देने की कोशिश करता है, अब वो बात अलग है कि सामने वाला उपहार भावना से ना जोड़कर पैसे से तौलने लगे, उपहार की कीमत नही हमे देने वाले का मन भी देखना चाहिए। "

पीछे से रागिनी की माँ ने बोला"बिल्कुल ठीक कहा जीजी बिटिया ने कमियां निकालने वाले तो भगवान में भी कमी निकाल दे उनके लिए तो अच्छी से अच्छी चीजें भी खराब दिखती है ,क्योंकि वो कमियों से बना चश्मा जो आंखों पर पहन के निकलते है, अच्छा बिटिया रखती हूं कल चौथी पर तेरे पापा और बाकी लोग जाएंगे तुझसे मिलने कुछ चाहिए तुझे तो बोल भिजवा दूँ।"

रागिनी "-नही माँ कुछ नहीं चाहिए।"कहकर रागिनी ने फोन रखा

शीशे से रागिनी ने देखा गीताजी की नजरें झुकी हुई थी वो कमरे में अंदर आने की बजाय बाहर चली गयी। लेकिन आज रागिनी के मन को सुकून था कि उसने अपने मन की बात अपनी सास तक पहुंचा दी थी।

लेकिन साथ ही वो मन ही मन सोचने लगी कितना कुछ बदल गया अचानक अब ससुराल या मायका कही से कोई कमी हुई तो सुनना सिर्फ उसको ही होगा चाहे उसकी गलती हो या ना हो।


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