Laxmi Yadav

Tragedy Inspirational

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Laxmi Yadav

Tragedy Inspirational

चंदन के फूल

चंदन के फूल

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समर सिगरेट सुलगा कर बालकनी में आराम कुर्सी पर बैठ गया। गुलमोहर के पुष्प से सुसज्जित वृक्ष के सौंदर्य को निहारते हुए वो अतीत में चला गया। 

मानो कल ही की बात हो, हमारे बगिया की नन्ही कली इस लाल गुलमोहर के फूलों को देखकर बहुत खुश होती थी। पूरे साल इंतज़ार करती। बरसात में भीगे वृक्ष के नन्ही बूँदों में उसे बहुत आनंद आता था। वो मुझसे हमेशा पूछती 'ये फूल साल में एक ही बार क्यों खिलते है? हमेशा क्यों नहीं खिलते? '

पर नियति की क्रूरता देखो, मेरी खुशी बेटी के आँचल में भगवान ने एक भी फूल नहीं खिलाया..... । 

रोहन और खुशी का सात साल पहले प्रेम- विवाह हुआ था। पर आज रोहन की दादी ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया " रोहन मेरा इकलौता पोता है, उसकी औलाद से ही हमारा वंश- बेल आगे बढ़ेगा। ऐसे में अगर खुशी इस लायक नहीं है तो क्या फ़ायदा? जब दूध ही नहीं तो खाली बर्तन रखकर क्या करेंगे? इसलिए अपनी लड़की अपने घर ले जाइए।" पर सुशिक्षित व समझदार रोहन ने कहा " नहीं, यह गलत है। मैंने माँ को गाँव से बुलाया है वो कल आ रही है। मुझे मेरी माँ पर पूरा भरोसा है। वो ग्राम प्रधान भी है अतः आज तक कोई गलत फैसला नहीं किया है। दादी को वही समझा सकती है।" एक लड़की के माता पिता के लिए जीवन में ऐसी घड़ी अग्नि- परीक्षा समान होती है, जब उनकी बेटी के भाग्य का फैसला दूसरों के हाथ में चला जाता है। 


दूसरे दिन सुबह रोहन का फोन आया कि माँ गाँव से आ गई है, आप लोग शाम को आ जाए। मुझे अपनी माँ पर भगवान से भी ज्यादा भरोसा है। आप लोग भी चिंतित ना हो। जिसे सुनकर हम दोनों को थोड़ी राहत मिली। हम दोनों शाम को रोहन के घर पहुंचे। दरवाजे पर ही केवड़े के अगरबत्ती की जानी- पहचानी खुशबू ने समर को अंदर तक झकझोर दिया। रोहन ने दरवाजा खोला। ड्रॉइंग रूम में दादी के साथ खुशी भी बैठी थी। हम दोनों से उसकी उदास आँखें व मायूस चेहरा देखा नहीं जा रहा था। रोहन ने बताया माँ साँझ आरती कर रही है। इतने में रोहन की माँ ने आरती की थाली के साथ प्रवेश किया। परिधान में सादगी व शालीनता तो बालों में परिपक्वता झलक रही थी। कुल मिलाकर बहुत गरिमा मय व्यक्तित्व था। सबने आरती ली, वो अंदर चली गई। 

थोड़ी देर में हम सब वर्तमान विषय पर बात करने बैठे। दादी ने अपना पक्ष रखते हुए बात दोहरा दी। रोहन ने भी अपनी बात दोहराई। मैंने और श्रद्धा ने भी अपना पक्ष रखा। रोहन की माँ सब सुन रही थी। अंत में दादी कर्कश स्वर में बोली " अब तू ही बता, इस रिश्ते का क्या भविष्य है? खुशी कभी माँ नहीं बन सकती, इसमें रोहन का क्या दोष? वो क्यों औलाद सुख से वंचित रहे। सही कह रही हूँ ना ' मृदुला '। अंतिम शब्द ' मृदुला ' गरम पारे की तरह कानों में उतर गया। इतने में रोहन की माँ ने चश्मा उतारा और समर चौक गया। यह चिर- परिचित चेहरा, हाँ, वही वो ' मृदुला ' ही थी। रोहन की माँ ने कहा " मैं फैसला कल बताऊंगी। आप लोग मुझ पर भरोसा रखिये। " रात का भोजन करने के बात रोहन और खुशी नीचे टहलने चले गए। मृदुला अपनी सास के साथ बैठी थी। बातचीत के दौरान मृदुला अपनी सास से बोली " माँजी, खुशी बहुत अच्छी बच्ची है। इतने साल में कभी शिकायत का मौका नहीं दिया। बिल्कुल अपनी सगी दादी का सम्मान देती है। थोड़ी देर एक औरत होकर सोचिये। खुशी की जगह आपकी अपनी बच्ची के साथ प्रकृति ने ये अन्याय किया होता तो। उसका आज भविष्य इसी प्रकार दांव पर लगा होता तो, क्या तब भी आपके विचार यही रहते? रही बात वंश- बेल की, तो ये अपना खून- खानदान - वंश ये दकियानूसी बातें लोगों के द्वारा बनाये गए है। आज आपको एक बात बताने जा रही हूँ। " मृदुला अंदर जाकर कागजात और प्रमाण पत्र ले आई। फिर बोली "माँजी, आप मुझे माफ़ करना। आपके बेटे ने अपनी कसम दी थी। पर आज बच्चों की बसी बसाई गृहस्थी उजड़ने से बचाने के लिए अपने

मरहूम पति की कसम तोड़नी पड़ रही है। रोहन हमारी दत्तक संतान है। पर बताइये कहाँ कोई कमी है? बच्चे गीली मिट्टी का रूप होते है। जैसा रूप हम देते है वो वैसे बनते हैं। इसलिए रोहन बिल्कुल अपने पिताजी की परछाई है। जरा सोचिये, गाँव में चाचाजी का बेटा आपका खून- खान -दान- कुल दीपक है, संतोष। कोई नशा बाकी नहीं है उससे। बेचारी विधवा चाची अलग रहती है ।इस उमर में उन पर हाथ भी उठा देता है। गाली- गलौज तो रोज़ की बात हो गई है। वही हमारा रोहन बाबूजी के जाने के बाद तुरंत आपको ले आया। आपकी सेवा सुश्रुषा करता है। क्या अब भी आपके यही विचार है। दादी की आँखों से पश्चाताप के अश्रु छलक गए। 

इतने में रोहन और खुशी ने प्रवेश किया। दादी खुशी को पास बिठाकर बोली " बेटी, मैंने बहुत गलत किया तेरे साथ। हो सके तो मुझे माफ कर देना। " रोहन ने तुरंत कहा " नहीं दादी, आप हमारे बड़े बुजुर्ग हो। आपका पूरा हक है। " दादी ने मृदुला से कहा " तू कल जो भी फैसला लेगी उसमें मैं तुम्हारे साथ हूँ। सभी अपने अपने कमरे में चले गए। 

इधर श्रद्धा सो चुकी थी पर समर की आँखों में नींद नहीं थी। ' मृदुला 'यह नाम कानों को चीर रहा था। वो अतीत की धुंध पार करता हुआ कॉलेज के दिनों में पहुँच गया। मृदुला और वो एक ही कॉलेज मे थे। मृदुला की सादगी, लंबी केश राशि और शालीन स्वभाव पर उसका दिल आ गया। इसलिए माँ के विरोध के बावजूद एक साधारण शिक्षक की बेटी से प्रेम- विवाह कर लिया। माँ को मृदुला बिल्कुल पसंद नहीं थी क्योंकि वो ऊँचा दहेज लेकर किसी बड़े घर की बेटी को बहु बनाना चाहती थी। मृदुला को आगे पढ़ना था पर समर की माँ ने साफ मना कर दिया। मृदुला भोर से पूजा पाठ से दिन की शुरुआत करती। दिन भर काम करती, साँझ- आरती के समय पूरा घर गायत्री मंत्र और केवड़े के अगरबत्ती की खुशबू से महक उठता। पर माँ कोई ना कोई कमी रोज निकाल ही लेती। पर मृदुला ना कभी शिकायत करती ना ही विरोध करती। लेकिन विवाह के तीन साल बाद जब माँ को पता चला कि मृदुला के सारे मेडिकल रिपोर्ट नेगेटिव आ रहे है। और सारे टेस्ट असफल हो रहे है। उन्होंने घर में बवाल मचा दिया। गुस्से में बोली " तूने दिया क्या इस घर को आज तक। ना दान- दहेज लेकर आई ना ही इस घर की वंश बेल को आगे बढ़ा रही हो। समर को मैंने पहले ही कहा था, इस लड़की के पैर इस घर के लिए अशुभ है। अब या तो ये घर में रहेगी या मैं...... "

मृदुला रात भर सिसकती रही। पर समर माँ की इच्छा व औलाद सुख की चाहत के आगे असहाय था। उसे आज भी अच्छी तरह से याद है मृदुला का उसके आंगन में आखिरी दिन, सूजी आँखों से सुबह की पूजा की, रोज की तरह तुलसी की पूजा और चौखट पर रंगोली बनाई। अपना सामान लेकर माँजी के पैर छूकर अपने अश्रु पूरित नेत्रों से पूरे सपने के महल को देखा और त्याग करते हुए चली गई। उसके बाद समर ने कभी कोशिश ही नहीं की जानने की वो कहाँ है, कैसी है? क्योंकि माँ ने तीन महीने के भीतर ही अमीर घर की बेटी श्रद्धा को बहु बनाकर ले आई। 

थोड़े दिन सब ठीक चला। पर बाद में श्रद्धा व माँ में कभी बनी ही नहीं। खुशी के जन्म के बाद माँ मायूस होकर गाँव चली गई। उनके हिसाब से पोते के हाथों ही मोक्ष प्राप्त होता है। यह सब सोचते हुए समर वर्तमान में लौट आया। समय की विडंबना देखो, आज उसी मृदुला के हाथों उसके कलेजे के टुकड़े खुशी के भविष्य का फैसला....... ओह! क्या होगा कल...... वो सोच रहा था... काश, इस रात की सुबह ही न हो.....। मृदुला का सामना करने की समर की हिम्मत नहीं हो रही थी। 

सुबह मृदुला रोहन और खुशी को लेकर निकल पड़ी। गाड़ी अनाथ आश्रम में जाकर रुकी। मृदुला ने खुशी की ओर बड़े प्यार से देखकर कहा " बेटी, जिस प्रकार पुरुष व समाज हमारी मर्जी नहीं पूछता उसी तरह भगवान भी हमारी इच्छा नहीं जानना चाहते है कि हमें बेटा चाहिए या बेटी। पर तकदीर ने तुम्हें मौका दिया है, जाओ बेटी खुद निर्णय लो। तुम बेटे की माँ बनना चाहती हो या बेटी की.. " खुशी तो जैसे समझ ही नहीं पा रही थी। इतने दिनों से दुःख व तनाव झेलने के बाद यह अप्रत्याशित था। वो चुपचाप अंदर चली गई। मृदुला बाहर पेपर वर्क पूरा करने में लग गई। थोड़ी देर में रोहन और खुशी एक बच्चे को गोदी में लिए हुए आये। दोनों के चेहरे प्रसन्नता से खिल उठे थे। खुशी ने बच्चे को मृदुला की गोदी में देते हुए चरण- स्पर्श किये रोहन ने भी साथ दिया। खुशी की आँखों से आँसू बह रहे थे। वो बोली " मम्मीजी, आपकी पोती, इसका नाम आप रखिये। " मृदुला ने बच्ची का माथा चूमा फिर बोली " मेरे रोहन और खुशी के जीवन में मुस्कान लाने वाली हमारी ' मुस्कान ' है ये। " सभी घर पहुँचे। दरवाजे पर दादी बड़ी खुशी व उत्साह से बच्ची का स्वागत किया। रोहन और खुशी तो जैसे छोटे बच्चे की तरह खुश थे इस नये खिलौने को पाकर। मृदुला ने राहत की साँस ली। 

शाम को समर और श्रद्धा खुशी के घर आये। एक हारे हुए खिलाड़ी की तरह बोझिल कदमों से प्रवेश किया। ड्राइंग रूम में मृदुला अपनी सास के साथ बैठी थी। आसमानी सिफ़ान की साड़ी, जुड़े में गजरा और कलाई पर सफेद बेल्ट की टाइटन की घड़ी में बहुत ही प्रभावशाली व्यक्तित्व लग रहा था। चाय पीते हुए श्रद्धा ने मृदुला से पूछा " दीदी, क्या फैसला किया आपने बच्चों के भविष्य के बारे में ? "मृदुला ने मुस्कुराते हुए कहा " दोनों अपने कमरे में है, मैंने अपना फैसला सुना दिया है। "समर का दिल बैठ गया। क्या फैसला लिया होगा ? कहीं कोई बदला..... यह सब सोचते हुए कब खुशी के कमरे में दोनों पहुँच गए उसे पता ही नहीं चला। उसकी तंद्रा तब भंग हुई जब अचानक उसकी गोदी में एक नन्ही बच्ची थी। रोहन व खुशी प्रफुल्लित होकर पैर छू रहे थे। खुशी ने चहकते हुए कहा " पापा, ये आपकी पोती ' मुस्कान ' है। " समर व श्रद्धा विस्मित से थे। एक पल में सबकी दुनिया बदल गई। सभी लोग आनंद में डूब गए। इतने में दादी आई बोली " आप लोग मुझे माफ कर देना। मैं आप लोगों की कसूरवार हूँ। " श्रद्धा ने कहा कि बड़े बुजुर्ग अपनो को प्यार भी करते है और शिकायत भी। पर मृदुला वहाँ पर नहीं थी। 

समर मृदुला को खोजते हुए छत पर पहुँच गया। जहाँ एकांत मे मृदुला सूर्यास्त को निहार रही थी। समर ने आवाज़ दिया " सुनिए " मृदुला ने पलटकर देखा चिरपरिचित मुस्कान के साथ। समर ने हाथ जोड़कर कहा " आपका बहुत बहुत धन्यवाद। मेरी बच्ची के आँचल में खुशियाँ डालने के लिए। लेकिन एक सवाल है आपसे? " मृदुला ने चश्मा उतारा और कहा " जानती हूँ, यही ना की रोहन मेरी संतान कैसे? रोहन के पिताजी हिमांशु जी ने मुझ जैसी परित्यक्तता स्त्री को सारी कमजोरी जानते हुए भी स्वीकार किया था। विवाह के एक साल बाद हमने रोहन को दत्तक ले लिया। इस प्रकार रोहन हमारी संतान है। यह सत्य मैंने माँजी को कल ही बताया है। " समर मानो जमीन में गड़ गया। इतना ही कह पाया की हो सके तो मुझे क्षमा कर देना। मृदुला ने निस्तेज भाव से कहा " समर, कुछ गलतियाँ हम करते है तो कुछ गलतियाँ परिस्थिति हमसे करवा देती है। मेरे पति हिमांशु जी हमेशा कहते थे, फल- फूल वृक्ष पर आना प्रकृति का नियम है। उसी प्रकार चंदन के वृक्ष पर भी फूल खिलते है। पर इस बात का उस पर कोई प्रभाव नहीं होता क्योंकि वो तो पवित्र है, स्वयं घिसकर भगवान के माथे तिलक बनकर चढ़ता है। इसलिए चंदन के वृक्ष पर फूल खिले ना खिले वो पवित्र ही रहता है, उसकी सुगंध तनिक भी कम नहीं होती। वो अंत तक वैसी ही पवित्र और सुगंधित रहती है। जो हुआ विधि का विधान था. ... जिसमें हम कुछ नहीं कर सकते है। काश, उस वक्त इसी मेरे निर्णय में मेरा साथ दिया होता तो किस्मत की कहानी कुछ और होती। चलो, पंडित जी आते ही होंगे, बच्ची के नामकरण के लिए बुलाया है। " 

समाप्त



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