चकोतरे का पेड़
चकोतरे का पेड़


चकोतरा के नाम से चौक गए ना? आज तो शायद किसी ने इसका नाम भी ना सुना हो? पर यूपी में यह बहुत मिलता भी है और खाया भी जाता है। दशहरे पर खास तौर पर चकोतरा घर लाया जाता है। जिन्होंने ना देखा सुना हो उनके लिए बता दूं की यह बहुत बड़े संतरे जैसा होता है। इस का रंग हरा पीला सा होता है छिलका बहुत मोटा गूदे वाला होता है और काटने पर बहुत तेज महक आती है। चकोतरा की इतनी महिमा इसलिए गाए जा रही है की मेरी किशोरावस्था की यादें जुड़ी हैं जो आज भी चेहरे पर मुस्कान ले आती हैं।
तब हम 12वीं क्लास में थे मतलब यह है की आसमान पर पैर थे। सभी स्टूडेंट्स का यही हाल था। एक तो हम थे साइंस के स्टूडेंट जिनका रुतबा औरों से थोड़ा अलग होता था। हमारा गर्ल्स कॉलेज रामपुर में नवाब के महल में ही था। जो उन्होंने गर्ल्स कॉलेज को दे दिया था। हमारी क्लास एक ऐसे खंड में थी जिसमें सामने टीचर्स हॉस्टल था दूसरी तरफ मेन गेट प्रिंसिपल ऑफिस और स्कूल ऑफिस थे। हमारा खंड पेड़ों से भरा था हमारी क्लास के ठीक सामने एक चकोतरा का पेड़ फलों से लगा महक फैलाता पूरी शान से खड़ा था।
उस समय दूर-दूर से लड़कियों को लाने के लिए
स्कूल की दो बसे थी जो 3 चक्कर लगाती थी। लिहाजा हम पहले चक्कर में सुबह 5:00 बजे स्कूल पहुंच जाते थे। पेड़ पर लटके बड़े-बड़े चकोतरा को देखकर रोज-रोज मुंह में पानी भर आता। एक दिन सभी ने दिमाग जोड़ कर जुगत लगाई की चकोतरा कैसे तोड़ा जाए। पूरी क्लास की पंचायत ने फैसला लिया की सवेरे 5:00 बजे आने वाली लड़कियां चकोतरा तोड़कर पीछे के डेस्क मैं छुपा देंगी। वही किया गया। चकोतरा तोड़कर डेस्क में छुपा दिया गया।
यह उम्र का वह स्वप्निल पड़ाव होता है जब ना कोई चिंता होती है ना कोई तनाव। अपने आसपास से बेखबर हवा के पंखों पर तैरते रहते थे हम लोग। रसायन शास्त्र की क्लास चल रही थी मैडम बोर्ड की तरफ पलटी। लड़कियों को सब्र नहीं हुआ और उन्होंने चुपचाप चकोतरा काटना शुरू कर दिया! क्लास में तेज महक फैल गई जिसे शर्मा मैडम ने भी पकड़ लिया। उसे महक को पकड़कर शर्मा मैडम चकोतरा तक पहुंच गई! फिर क्या था, पूरी क्लास कान पकड़कर प्रिंसिपल ऑफिस के बाहर 3 दिन तक खड़ी की गई। बड़ी बेइज्जती हुई और गुनाह बिन लज्जत की बात यह की चकोतरा भी खाने को नहीं!
मिला सजा हमने खाई और चकोतरा हंसती हुई साइंस टीचर ने!