छलावा
छलावा
रात में अक्सर बुरी आत्माएं घूमती हैं। किसी को भी बहका सकती हैं। किसी प्रिय या दोस्त का रूप रख लेती हैं। पर जब आदमी को सच्चाई पता चलती है, तो फिर कुछ भी करने को शेष नहीं रहता। छलावा अपना काम कर चुका होता है।
इन बातों में कितनी सच्चाई है या कितना झूठ। कोई नहीं जानता। पर ऐसी कहानियां बहुत सुनी हैं। बहुतों ने छलावा देखने के दावे भी किये हैं।
रानी और सोनी दो सहेलियाँ। दोनों में बड़ा प्रेम है। दोनों साथ साथ स्कूल जाती हैं। साथ साथ पढाई करती हैं। सब कुछ एक जैसा है। बस विचारों के। रानी थोड़ा विज्ञान की उपासक है। भूत, प्रेम और छलावा पर यकीन नहीं करती। सोनी को भी समझाती है। पर सोनी समझती ही नहीं। दावा भी करती है कि उसने छलावा देखा है। खुद अपनी आंखों से।
सोनी जानती थी कि उस दिन वह छलावा ही था। सिद्ध बाबा उसका इलाज करने आये थे। बड़े योगी हैं। गांव में सब उनकी पूजा करते हैं। पर वह सिद्ध बाबा नहीं थे। छलावा थे। इलाज के साथ साथ कुछ ऐसा कर गये जो सिद्ध बाबा कर ही नहीं सकते। सचमुच वह सिद्ध बाबा नहीं थे। वह तो छलावा था।
छलावा के अस्तित्व पर संदेह नहीं किया जा सकता है। लगता है कि छलावा केवल भूत या प्रेम नहीं होते। मनुष्यों में भी बहुत छलावा हैं। जो समझ नहीं आते। और जब आते हैं तब कुछ नहीं बचता। शिवाय छलावा को पहचान न पाने का दोष खुद को देने के।
