चाय का आधा कप
चाय का आधा कप


चाय पीते हुए वह कहने लगा,"कितने दिनों के बाद हम मिल रहे है,नहीं ?"
मैनें कहा,"क्या करे?उधर तुम बिजी हो अपने बड़े से कारोबार में और इधर मैं अपनी इस छोटी सी नौकरी में।"
"अरे यार,दोस्ती भी तो कोई चीज होती है कि नही?और दोस्तों के लिए वक़्त को निकाला जाता है।दोस्तों को उनके हक़ का वक़्त दिया जाता है।"
मेरी बात पर वह चाय पीते हुए रुक कर कहने लगा,"अरे यार, आया तो हुँ ना?इतने दिन के बाद कोई तो मिला है मुझे मेरे दिल की बातें करने के लिए।खुशियों के साथ साथ दर्द भी तो बाँटना होता है।यूँहीं बातें करते हुए देखो आज हम
ने चाय के साथ दिल की कितनी बातें की है।"
अचानक उसके फ़ोन की घंटी बजी।शायद वह फिर से कारोबारी बातें करने लगा।फ़ोन पर बात खत्म होते ही वह अचानक उठ खड़ा हुआ और नेक्स्ट टाइम जल्द मिलने और ज्यादा देर रुकने का वादा करके वह चला भी गया।
उसकी चाय का कप आधा खाली ही रह गया था।मुझे लगा कि ये चाय का कप नही खाली हुआ है बल्कि हमारे दुख दर्द आधे हुए है।
सचमुच जिंदगी कैसे बदल गयी है ? पहले हम छोटी सी छोटी बातें शेयर करते थे लेकिन आज कितनी सारी ऐसी बाते है जो अनकही रह गयी है बिल्कुल इस आधे चाय के कप की तरह....