बूढ़े नहीं बड़े बनिये
बूढ़े नहीं बड़े बनिये
शकील जी और सुरति जी काफ़ी सालो बाद मिले थे। दोनों बहुत पुराने दोस्त है। दोनों ही अपने जमाने के शानदार खिलाडी रहे। खिलाडी कि एक पारी पूरी करने के बाद दोनों ने ही निर्णायक बनना पसंद किया ताकि खेल से जुड़े रहे।
अब दोनों ही रिटायर हो चुके है फिर भीं किसी ना किसी टूर्नामेंट मे अपनी सेवाएं देते रहते है। उनके अनुभव ही इतने ज्यादा है कि हर जगह लोग उन्हें बुलाते भीं है।
आज कई सालो बाद दोनों लखनऊ मे मिले तो बरबस ही पुरानी यादें ताज़ा हो गई। अमा क्या बात है तुम तो दिन ब दिन जवां होते जा रहे हो। क्या खाते हो हमें भीं वो चमत्कारिक नुस्खा बता दो। शकील जी ने बोला और दोनों खिलखिला कर हस पड़े।
बात तो तुमने ठीक कही भाई। वो क्या है कि हम अभी अभी जवां हुए है। हम अभी सोलह साल के है बस पचास साल का अनुभव साथ है। सुरति जी ने जवाब दिया तो शकील जी मुस्कुराये बिना नहीं रह पाए।
बस फिर क्या जमे थे दोनों पुरानी यादें ताज़ा करने मे। हमारे जमाने मे तो खिलाडी और निर्णायक दोनों साथ बैठते थे मजे करते थे सब साथ रहते थे। सब मिलकर रहते थे। आजकल तो खिलाडी भीं आपस मे लड़ते है और निर्णायक भीं। शकील जी बोले।
अरे सिर्फ खेल ही नहीं हर जगह यही हाल है। बड़ा बड़ा होता जा रहा है। छोटा छोटा होता जा रहा है कोई किसी को कुछ बताने को तैयार नहीं कोई सुनने को तैयार नहीं। समझने समझाने का तो दौर ही जैसे ख़त्म हो गया है। सुरति जी ने जवाब दिया।
सही कह रहे हो। आजकल कोई किसी से बात करने को ही तैयार नहीं होता है। जिसे कुछ थोड़ा सा आ गया वो अपने आप को इतना ज्ञानी समझने लगता है कि पूछो मत। और आजकल के बच्चे तो पैदा ही ज्ञानी होते है। शकील जी कि इस बात पर दोनों खुप हॅसे।
हमारे जमाने के लोग कहते है कि ये पीढ़ी गलत है और ए पीढ़ी कहती है कि हम गलत है। क्या हो गया है समझ नहीं आता। किसी को साथ भीं नहीं रहना। एक दूसरे कि सुनना नहीं संस्कार नाम कि बाते तो सिर्फ किताबी हो गयी है। सयुंक्त परिवार का तो नामो निशां ही ख़त्म हो गया है। सुरति जी थोड़ा सीरियस होकर बोले।
सही
है भाया। पहले कितना मजा आता था सारा परिवार एक साथ रहता था सब मिलकर कम करते थे साथ खाना खाते थे सुख दुख मे घर के ही इतने लोग रहते थे कि बाहर वालो कि जरुरत ही नहीं पढ़ती थी। पर अब तो ये मुमकिन ही नहीं है। आर्थिक नियोजन और परिवार नियोजन दोनों ही जरूरी हो गए है। कहते हुए शकील जी ने एक आंख मारी। फिर दोनों मुस्कुराने लगे।
दरअसल प्रॉब्लम दोनों ही पीढ़ियों कि है बड़े बड़े नहीं सीधे बूढ़े होना चाहते है। और बच्चे बड़े ही नहीं होना चाहते।
पता है शकील भाई अगर हम सोचते है कि हम बूढ़े हो रहे है तो हमारा दिमाग़ और शरीर दोनों ही किसी का आधार ढूंढने लगते है। जो हमें मानसिक रूप से कमजोर बनाता है और थोड़े समय मे ये मानसिक विकृति हमारी शारीरिक कमजोरी का आधार बन जाती है। और वही जब हम ये सोचते है कि हम बड़े हो रहे है तो हम छोटो का आधार बनते है उन्हें कुछ सिखाते है। उनकी मदद करते है। ये स्तिथि हमें संबल देती है। हमारे शरीर को जो समय के साथ थोड़ा कमजोर होता है उसे संभाल कर रखतीं है। हमें बूढा और किसी और पर निर्भर होने से रोकती है। सुरति जी ने कहा तो शकील जिनका भीं गला भर आया।
ठीक कहते हो यारा, अगर हर कोई ये समझ ले तो दोनों ही पीढ़ियों कि तकलीफ़ खत्म हो जाएगी क्युकि नई पीढ़ी अब भीं जिम्मेदारियों से डरती है क्युकि हमने उन्हें हमेशा यही कहा है कि। जब तुम हमारी जगह आओगे तब पता पड़ेगा। काश इसकी जगह कहते कि जब तुम हमारी जगह आओगे तो तुम्हे भीं मजा आएगा।
हर उम्र का अपना अलग अनुभव अलग अनुभूति होती है। पुराने लोग इसीलिए साथ रहे थे ताकि पीढ़ी दर पीढ़ी एक दूसरे को संभालने वाला कोई हो। कोई भीं कभी अकेला ना रहे। वाकई मे अच्छा था हमारा जमाना। पर कोई बात नहीं और कोई नहीं तो क्या हम खुद को तो बदल ही सकते है ना। हमारा ग्रुप तो कम से कम बूढ़ा नहीं हुआ है ये अच्छा है। और कोशिश करेंगे की हमारी आने वाली पीढ़िया भीं बड़ी हो बूढ़ी नहीं।
इस पर सुरति जी बोले। हा। अच्छा है हम बूढ़े नहीं बड़े हुए है वरना घर मेंं कहींं बैठे होते बच्चों से चाय पानी मांगते हुए। दोनों ठहाके लगते हुए खाना खाने चले गए।