बुढवा सनक गया
बुढवा सनक गया
कभी कभार हमारे मुँह से ये बात निकल जाती है कि बुढ़वा सनक गया है। हमारे शब्द और मायने वहाँ भले ही मेल ना खा रहे हो लेकिन हम एक ऐसी अवस्था में पहुँच चुके इंसान की आलोचना करते है जो हमसे करीब दो गुना अनुभवी है और जो दो सौ गुना सह चुका है। अपने जोश के अनुसार उसकी एक जिद हमे इतना गुस्सा दिलाती है कि हम भूल जाते हैं कि एक समय था जब वो इंसान अमीर हुआ करता था और हम हुआ करते थे सबसे बड़े और खतरनाक भिखारी, जो भीख भी मांगता था और ना मिलने पर पलटकर गुस्सा भी करता था। अपनी काबिलियत हमारे लिए इतना ऊपर पहुँच चुकी होती है कि अपने से उच्च हम बस भगवान को मानते हैं, खैर कुछ लोग नास्तिक भी होते है।
मै कितने दिनों से एक घर की करकच रोज़ देख रहा था और कुछ ऐसा ही एक दृश्य बनता था उस घर का जैसा आपने अभी ऊपर पढ़ा। ना जाने रात भर में उस घर के बढ्ढे को क्या हो जाता कि वो प्रत्येक सुबह नियम से अपने घर वालों को गाली देता निकलता और बिना पीछे मुड़े वहाँ से चुप चाप अपने अड्डे यानी की पास के एक पार्क में पहुँच जाता, वहाँ वो अपने दुख-सुख की बातें एक चिड़िया से करता था। चिड़िया भी अपने सारे व्यस्त काम छोड़ कर वहाँ आती और उसके साथ अपने स्तर से बात करती, मुझे तो आज तक उनकी कोई बात समझ ही नही आयी।
एक दिन मैंने उनको बीच रास्ते पर रोक कर पूछना चाहा कि आप उस चिड़िया से क्या प्यार करते हैं जो आपको रोज़ का कोई ना कोई बहाने घर से बाहर निकालने को मिल ही जाता है। उन्होंने अपने बूढ़े और भारी स्वर में थोड़ी लय लाकर बोले जिस चीज़ को दिल से करना चाहो ना बेटा उसके लिए बहाने नही ढूँढने पड़ते। मैंने उस दिन पूरे रास्ते उनसे बात की और समस्याएं पूछी, उस इंसान ने एक का भी जवाब रो-गाकर दूसरे अन्य लोगो की तरह नही दिया। उनके शब्दों में बेबाकी, अनुभव, जिद, लड़ाई सब नज़र आ रही थी। पता नही लोग उनको पागल क्यों कहते होंगे।
एक दिन वो भी देखने को मिल ही गया,
एक सुबह वो घर से गाली देते निकले तो ठीक थे मगर आज कहीं जाने केे विचार में नही डूबे थे, या फिर शायद और कुछ वहीं अपने बेटे को जोर जोर से बुलाते रहे और वो जब निकला तब तक तो वहाँ दो-चार लोगो की भीड़ भी जमा हो गयी थी, लोग अपना काम बनाने में वो रुचि नही रखते जो दूसरों की कहानी सुनने और अपने फालतू विचार व्यक्त करने में रखते हैं। पता चला वो एक साइकिल की मांग कर रहे थे, अब पार्क जाने में उनका पैर दुखता है और चिड़िया से मिलना अब सही से नही हो पा रहा था। बेटे ने पूछा साइकिल किस लिए? वहाँ जाते ही क्यों हैं? आपको घर में रहना क्यों नही पसंद, कभी कोई अग्वा कर लेगा तो वो अलग चिंता हो जायेगी। बाप को तो साइकिल चाहिए ही थी, कुछ भी हो जाए नही तो उन्होंने छत से कूदने की धमकी तक दे डाली। पता नही क्यों उनको एक छोटी सी चिड़िया क्या आनंद देती है जो उनको वो अपने बेटे से भी प्यारी थी। लेकिन बेटा भी बेहया, चंद पैसे बचाने के लिए साइकिल का सौदा बाप का खानदानी कुर्ता बेचकर कर डाला। उनको पता नही चला या कुछ और बात थी पर उन्होंने उस बात पर कभी चर्चा ही नही की।
एक बार मैं भी उसी पार्क में बैठा हुआ था जिसमे वो बूढ़े चाचा, उस चिड़िया से उनका कोई खास वार्तालाप चल रहा था। एक बार मैंने सोचा कि उनको छेड़ूँ या नही, उनकी साइकिल की रखवाली मेरे ही सिर थी क्योंकि वो तो कहीं भी बिना ताला लगाए कहीं भी बैठ जाते हैं। कैसे कैसे मैंने साइकिल को स्टैंड में लगाकर उनके पास आ बैठा। और उनसे कहा कि मैं उनकी और चिड़िया की गपशप जान सकते हैं या नही। उन्होंने थोड़ा हंस कर कहा कि बातें मत ही जानो तो ठीक हो बस इतना जान लो कि अभी चिड़िया यहाँ से मेरी बातें लेकर मेरी पत्नि तक गयी है और वापस आने पर वो मेरी पत्नि जो अब लोग कहते हैं कि स्वर्ग में है पर मैंं सोचता हूँ की वो अभी भी जिंदा है मेरी हर बात का जवाब देती है और तो और हर बार उस चिड़िया को एक नई उमंग मिल जाती है। साइकिल भी उन्होंने इसी लिए ली थी।
अब उनको बच्चे चाहेे पागल कहे या कुछ अन्य लेकिन उनको दुनिया से कोई मतलब नही दुनिया को बस उनको जिंदा रहना पसंद है। उनको भी किसी तरह की बाधा नही आयी की किसी भी हाल में किसी भी ठंड में वो अपने दोनो टाँगो पर ज्यादा विश्वास करते।
बुढ़ापे की सनक का ऐसा प्रारूप पहली बार देखा था और शायद आखिरी बार भी, अब तो बस उसको अनुभव करना है बस।