अनमोल नेग
अनमोल नेग
कभी-कभी कुछ तोहफे दूर से छोटे दिखते हैं मगर उनकी असली कीमत की समझ बहुत देर में आती है। एक अनुसंधान केंद्र के वार्षिक अवसर पर आमंत्रित एक कलेक्टर ने कुछ इन्ही पंक्तियों के साथ अपना भाषण शुरू किया। उन्होंने एक कहानी सुनाई जिसको जिसने भी सुना वो उसका कायल हो गया। एक नौकर खानदान से संबंध रखने वाले उस कलेक्टर के पिता दादा सब खानदानी नौकर थे। और शायद अगर वो कहानी या जो भी कह लीजिये उसके जीवन में घटित ना हुई होती तो आज वो भी नौकरों का हेड होता।
हुआ कुछ ऐसा कि उसके दादा एक शहरी अमीर के घर कई सालों से नौकरी करते थे, झाड़ू लगाना, खाना बनाना आदि उनका दैनिक कार्य था। उनको ना किसी बात की चिंता थी ना ही कोई अभिलाषा। पूरी ज़िंदगी उन्होंने वहाँ पर नौकर बनकर गुजार दी और अपने बेटे यानी डी. एम. साहब के पिता को भी उसी में लगाकर चले गए। अब भई बाप ऐसा तो बच्चा कितना अलग होता, वो भी शून्य मन से दिन भर पागलों की तरह काम करते और रात में अपने बेटे को लोरियां सुनाते, बिन माँ का बच्चा कैसे सोता है ये तो वो ही जानते थे।
उनके बेटे की मालिक के बेटे से बहुत पटती थी, दोनो जिगरी दोस्त थे, मालिक ने भी कभी उस नौकर के बेटे के साथ खेलने या उसे छूने छाने से मना नहीं किया था। वो नए ज़माने के थे और इन सब बातों से कबका ऊपर उठ चुके थे।
हर वर्ष दीवाली के अवसर पर वो उसे कोई ना कोई उपहार ज़रूर देते ताकी उनके बेटे के सामने एक बच्चा खाली हाथ ना खड़ा हो। एक बार तो मालिक के बच्चे ने उनको धर्मसंकट में डाल दिया ये ज़िद करके कि अगर मेरे साथ मेरा यार नहीं जाएगा तो मैं स्कूल नहीं जाऊँगा। हमको आपको ये बात मुश्किल लग रही हो लेकिन उस अमीर मालिक को ये बोलते बिल्कुल देर नहीं लगी कि इसमे पूछने वाली क्या बात है अगर वो तैयार है तो मैं भी तैयार हूँ उसको स्कूल भेजने को, सालों से हमारे पितरों की सेवा कर रहे इनके खानदान को ये हमारी छोटी सी भेंट होगी।
दोनो बालक बहुत खुश थे उस दिन से दोनो की दोस्ती अटूट हो गयी और उस दिन भी जब वो बच्चा उस अनुसंधान केंद्र में भाषण दे रहा था उस दिन भी सबसे आगे उसका जिगरी यार ही बैठकर तालियाँ बजा रहा था।
दोनो ने एक साथ ही अपनी पढ़ाई खत्म की और आगे की पढ़ाई के लिए अग्रसर हुए। धैर्य उस इंसान का देखने लायक है जो जानता था कि इस बच्चे के अंदर प्रतिभा का भंडार है इसलिए उसने कभी उसकी पढ़ाई रोकने का ख्याल अपने ज़हन में आने ही नहीं दिया।
उसका अंदाज़ा सही साबित करते हुए उस नौकर के बेटे ने कलेक्टर की पदवी संभाली और उसके बेटे ने दारोगा की। दोनो अपनी-अपनी जगह पर खुश थे और ईर्ष्या से कोसो दूर।
वो बालक अपने मालिक को पिता समान मानता है और आज भी दोनो पिताओं के सामने सोच में पड़ जाता है कि पहले किसका चरण पकड़ूँ। एक पिता ने जन्म दिया तो दूसरे ने ज़िंदगी, एक ने नैतिकता सिखाई तो दूसरे ने समाज में खड़ा होना, दोनो का सहयोग अतुलनीय है।
लोग नेग पाते हैं उसने उस दिन दीवाली पर नेग के रूप में एक नई ज़िंदगी पाई और वो आज ऐसे ही हजारों बच्चों की ज़िंदगी सवारने में लगा हुआ है। एक अच्छा अफ़सर होने के साथ-साथ वो एक अच्छा इंसान है जो ना मानवता को भूलता है ना अपने पुराने दिनों को।