Shishir Mishra

Children Stories

5.0  

Shishir Mishra

Children Stories

अहमद जी का परिवार

अहमद जी का परिवार

3 mins
222


अहमद शाह के मुताबिक दुनिया में दो किस्म के लोग होते हैं, एक जो अपनी गुणकारी में लगे होते हैं और एक वो जो दूसरों के लिए सोचते हैं। वो खुद ही दूसरी जाति में गिने जाते हैं, लोग उनको अपना भाई ,भ्राता, ब्रदर सब मानते थे और वो भी किसी से किसी तरह का गिला या शिकवा नहीं करते थे। उनका जिस्म और मन दोनो ही उनके कहे गए उद्देशो पर चलते थे। 

एक बार उनके गाँव में एक काफिर घुस आया, उसकी गलती थी कि उसने जवानी के आगोश में आके अपने घर वालो से अलग होकर कुछ खुद से कर दिखाने निकल पड़ा था और दर की ठोकरें खाने के बाद वो रात किसी गाँव में बिताता और खाना किसी और में। 

इस बार शायद वो सही गाँव में पहुँच गया था, लोग उसे देखते ही मारने लगे। क्यों? 

ऐसे ही अपनी शंका मिटाने को, गाँव के पहुँचे हुए पत्रकार जो सही से अक्षर तक नहीं जानते थे उन्होंने लोगों को बताया कि ये वही आपहरण करने वाला आदमी है जो पिछले दो हफ़्तों से बगल के गाँव से बच्चों को पकड़ ले जाता था और उनके गुर्दे निकाल लेता था। 

उस बेचारे को अंदाज तक नहीं हो रहा था कि उसकी इतनी पूजा क्यों हो रही है ,को भी मज़ा आ रहा था शायद बहुत दिनों से बीवीओं पर हाथ नहीं साफ किये थे । वो अधमरा होकर अब मार सहने को बैठ ही गया था कि तभी वहाँ से अहमद जी गुजरे और लोगों को बेबुनियादी साबित कर उसे अपने साथ ले गए। 

उसकी मरहम पट्टी की और उसको खाने को कुछ दिया हालांकि पेट तो उसका भरने से रहा लेकिन मार के बाद का मरहम ही समझ कर खा ले तो ठीक रहे। 

उसके मुँह से आवाज़ साफ नहीं आ रही थी लेकिन इतना कह पा रहा था कि अब वो ठीक है। अहमद ने उसे कुछ दिन के लिए अपने पास ही रख लिया। लोगों ने उन्हे खूब समझाया अंजान आदमी है कहीं रात को गला वला दबा दिया तो ज़िंदगी हो जायेगी खत्म और उनका वसुधैव कुटुम्बुकम् भी चला जायेगा उन्ही के साथ। लेकिन उनको उसकी मासूमियत और चेहरे पर भरोसा था, उन्होंने उसे अपने खेत सहायक के तौर पर रख लिया और लोगों को ये बिना बोले बताया कि अफवाहों पर अपने काम से ज्यादा ध्यान देने वाले और अपनी मदद करने की बारी पर काम को महान बताने वाले एक बार को किसी की आसहाय दौर को असहाय समझ सकते हैं लेकिन एक भक्त पत्रकारिता को गलत नहीं। लोग इंसानियत से भी ऊपर उठ चुके हैं ये देखते अच्छा लगता है और इससे भी ज्यादा अच्छा तब लगता है जब वो मददगार को ही अपनी दलील देने लगते हैं, खैर जो भी हो वो आदमी अहमद के साथ बहुत सालों तक रहा और मेहनत करके एक ऐसी संस्था खोली जिसमे उसके जैसे घर के मारे नौजवान को काम ढूंढने में आसानी हो। वो लोग तो अपने गाल पर हाथ रखे बैठे थे जो कहते थे कि अहमद का गला कभी भी दब सकता है। 

लेकिन वो नही जानते थे कि जो अहमद अपने इस्लाम के लिए अपने पीर के लिए मरता था वो अहमद दूसरे के धर्मों की उसी श्रद्धा से पूजा करता था, वो मुसलमान था तो सही लेकिन इंसान भी और पूरा जहान ही उसके लिए एक परिवार था, ऐसे इंसान के शुभ चिंतक तो सिर्फ वैसे ही लोग हो सकते हैं जिन्हे गला दबने का डर हो बाकी तो दुनिया में उसके नफरत गर्द ही भरे हैं। 


Rate this content
Log in