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Neena Bajaj Neena Bajaj

Abstract

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बुढ़ापे का सहारा बेटा या बेटी

बुढ़ापे का सहारा बेटा या बेटी

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आप सब को लगेगा कि ये क्या विषय है। ये तो सब को मालूम ही है कि बुढ़ापे का सहारा बेटा या बेटी ही होगी। पर मेरी नज़र में यह सही नहीं है। बुढ़ापे का सहारा न बेटा है न बेटी। हां बहुत मामलों में बेटी ही सहारा बनती है पर उसमें भी उसके पति का साथ होता है।

हां तो अब आज के विषय पर आते हैं। बुढ़ापे का सहारा न बेटी न बेटा बल्कि बहू होती है ।आप चौंक गए ना। तो मैं आप सब की हैरत दूर करती हूं।

जब बहू शादी करके सुसराल आती है तो अपना मायका छोड़ कर आती है।एक अच्छी बहू धीरे धीरे सुसराल को समझ कर अपने आप को ढाल लेती है।पति समेत घर के सभी बड़े छोटे सदस्यों के व्यवहार समझ कर अपनी दिनचर्या में शामिल कर लेती है और हरेक का स्वभाव पा लेती है। खासकर अगर बहू एक दिन बीमार हो जाए तो घर का सारा निज़ाम बिगड़ जाता है। परन्तु बेटा दो दिन के लिए भी बाहर जाए तो घर वैसे ही चलता है।सब काम सुचारू रूप से होता है।सास ससुर भी उसे अपनी बेटी ही समझने लगते हैं। अधिकतर बहुएं ऐसी भी हैं जो अपने सास ससुर की तन मन से सेवा करती हैं।

 मेरा तर्जुबा तो यही कहता है क्योंकि मेरी बहू तो मेरी बेटी की तरहां ही ख्याल रखती है। मेरी अपनी कोई बेटी नहीं है पर मेरी बहुएं ही मेरी बेटियां हैं। हमारे बुढ़ापे का सहारा है।

इसलिए शान से और साफ ह्रदय से कहिए हमारी बहू हमारा सम्मान। अतः अपनी बहू में सिर्फ कमियां न ढूंढे, उसकी अच्छाइयों की प्रशंसा करे और गर्व से कहें मेरी बहू, मेरा अभिमान व मेरा सम्मान।


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