राखी की सुनहरी यादें
राखी की सुनहरी यादें
राखी र्पव का नाम आते ही बचपन की राखी के त्योहार की मिठी यादें याद आ जाती हैं। हमारे घर में राखी मनाई नहीं जाती थी। मां कहती थी कि राखी वाले दिन ऐसा कुछ हुआ था कि राखी दोषी हो गई है। हमारे बड़े बुजुर्गो को भी नहीं मालूम था कि राखी क्यों नहीं मनाई जाती। हम अपने मामा के बेटे को तो राखी बांध सकते थे पर अपने सगे भाई को नहीं। राखी वाले दिन हम सब भाई बहन उदास रहते। राखी कैसे मना सकते हैं इसका जवाब राखी वाले दिन या तो लड़के का जन्म हो या फिर शादी। लड़का तो नहीं हुआ, पर राखी वाले दिन हमारे भाई की सगाई हो गई। इस तरह हम राखी का पर्व मनाने लगे। जब हम सब बहनों ने पहली बार अपने भाई की कलाई पर राखी बांधी तब हमारा खुशी का ठिकाना नहीं था। हर राखी पर मिलने वाले नेग का इन्तज़ार रहता था। फिर सहेलियों के साथ मिलकर पार्टी करते, कुछ सामान खरीदते। कुछ पैसे जमा भी कर लेते। शादी के बाद ससुराल में तो राखी का र्पव त्योहार जैसा लगता था। सब भाई बहन बेटियां बच्चे इकट्ठे हो कर मिल जुल कर राखी मनाते, उत्सव जैसा माहौल हो जाता था। इस राखी पर मैंने अपने भाई को राखी भेज दी। मेरा भाई डाक्टर है। मन ही मन सोच रही थी कि उसे राखी पर आने को कहूं। मेरी तबीयत ठीक न होने की वज़ह से मैं जा नहीं सकती थी। फिर मैंने सोचा कि उसे क्यों परेशान करूं। अचानक शाम उसका फोन आया कि मैं आ रहा हूं राखी बंधवाने। मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। वो आया और हम दोनों ने मिलकर राखी का पर्व मनाया। सही मायने में यह राखी मेरे लिए सबसे यादगार और अनमोल राखी हो गई। राखी के साथ मैंने उसे पत्र लिखा था। उसने बताया कि वो पत्र पढ़ने के बाद भावभिवोर हो गया और वो दौड़ा चला आया। सच में यह राखी मैं कभी भी नहीं भूल पाऊंगी।
