माता पिता की सेवा
माता पिता की सेवा
आज एक सवाल जेहन में बार बार आ रहा है कि क्या बेटियों का अपनी बीमार मां की सेवा करना नौकर कहलाता है। वही मां जो अपने बच्चों को जन्म से लेकर बड़े होने तक पालती है। उनका जीवन संवारती है, अच्छे संस्कार देती है। बच्चों की शादी के बाद भी उनकी मुश्किल में कदम कदम पर सहायता करती है। जरुरत पड़ने पर उनके बच्चों को भी अपनी छत्रछाया में ममतामई बन कर पाला है।
वही मां जब उम्रदराज हो जाती हैं और बीमार रहने लगती है। उसे अपने बच्चों की जरूरत होती है, प्यार और सेवा की जरूरत होती है, तब क ई दफा बच्चे क्यूं स्वार्थी हो जाते हैं। उन्हें अपने घर के प्रति काम याद आ जाते हैं कि मेरा फलां काम है मेरी जरुरी मीटिंग है। बेटी को अपने बच्चों के प्रति फ़र्ज़ याद आ जाते हैं। उन्हें लगता है कि आते जाते हाल पूछ लो कभी कभार थोड़े दिन रह लो, इनकी हालत तो अब ऐसी ही रहनी है। बस इंतजार करो।
क्या हमने कभी अपनी अंतरात्मा में झांक कर देखा है कि क्या हम स्वार्थी तो नहीं हो गए हैं। जब हमे जरुरत थी तो हमारा अपनी मां पर हक था कि वो हमारी मदद करे।
नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए, हमें माता पिता की निस्वार्थ भाव से प्यार से, दुलार से, सेवा करनी चाहिए जैसा प्यार दुलार उन्होंने हमें दिया है निःस्वार्थ भाव से।
तभी परिवार में खुशहाली सम्रद्धि होगी और परमपिता परमात्मा का आशीर्वाद प्राप्त होता रहेगा।
