मां का प्यार
मां का प्यार
आज न जाने मैं क्यूं खुश हूँ। क्यूं सुकून में हूं। अपनी मां के घर आई हूं। उस मां को लाचार, असहाय देख कर मन रोता है। वो मां अपने समय में दबंग थी, मजबूत थी। हमारे पिता के जाने के बाद भी मजबूत रही। जिसने अपनी सुघड़ता से घर को बहुत सुचारु ढंग से संवारा। अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाई। दुनिया में कैसे रहना है वो सिखाया। सुघड़ता आप सब को लगेगा कि ये क्या विषय है। ये तो सब को मालूम ही है कि बुढ़ापे का सहारा बेटा या बेटी ही होगी। पर मेरी नज़र में यह सही नहीं है। बुढ़ापे का सहारा न बेटा है न बेटी। हां बहुत मामलों में बेटी ही सहारा बनती है पर उसमें भी उसके पति का साथ होता है।
हां तो अब आज के विषय पर आते हैं। बुढ़ापे का सहारा न बेटी न बेटा बल्कि बहू होती है । आप चौंक गए ना। तो मैं आप सब की हैरत दूर करती हूं।
जब बहू शादी करके ससुराल आती है तो अपना मायका छोड़ कर आती है। एक अच्छी बहू धीरे धीरे ससुराल को समझ कर अपने आप को ढाल लेती है। पति समेत घर के सभी बड़े छोटे सदस्यों के व्यवहार समझ कर अपनी दिनचर्या में शामिल कर लेती है और हरेक का स्वभाव पा लेती है। खासकर अपने सास ससुर की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर सहजता से ले लेती है सास ससुर की दिनचर्या क्या है उसे सब बाखूबी मालूम हो जाता है
अगर बहू एक दिन बीमार हो जाए तो घर का सारा निज़ाम बिगड़ जाता है। परन्तु बेटा दो दिन के लिए भी बाहर जाए तो घर वैसे ही चलता है। सब काम सुचारू रूप से होता है। सास ससुर भी उसे अपनी बेटी ही समझने लगते हैं। अधिकतर बहुएं ऐसी भी हैं जो अपने सास ससुर की तन मन से सेवा करती हैं।
मेरा तर्जुबा तो यही कहता है क्योंकि मेरी बहू तो मेरी बेटी की तरहां ही ख्याल रखती है। मेरी अपनी कोई बेटी नहीं है पर मेरी बहुएं ही मेरी बेटियां हैं। हमारे बुढ़ापे का सहारा है।
इसलिए शान से और साफ हृदय से कहिए हमारी बहू हमारा सम्मान। अतः अपनी बहू में सिर्फ कमियां न ढूंढे, उसकी अच्छाइयों की प्रशंसा करे और गर्व से कहें मेरी बहू, मेरा अभिमान व मेरा सम्मान।
जो मैं आज अच्छा खाना कर इतराती हूं वो सब मेरी मां की ही देन है। सिलाई बुनाई सब उनसे ही सीखा है। जब जब भी मैके आती बहुत आराम से रहती कोई काम नहीं करना पड़ता। मज़े में रहती पर कभी कभी किसी बात पर तकरार हो जाती वो भी गुस्सा हो जाती। और मैं फिर कभी न आने का कह कर अपने घर लौट जाती। पर रास्ते भर उनका बार बार फोन आना मन को भिगो जाता और घर पहुंचते ही उन्हें फोन पर बताना कि मैं ठीक पहुंच गई हूं और उनका बार बार कहना कि तुम्हारे जाने के बाद घर खाली हो गया है सूना सूना हो गया है। यह सुनकर मेरी आंखों में आंसू से भर जाना याद आता है। आज उसी मां को असहाय देख कर मन भीग भीग जाता है। उनका बच्चों जैसा जिद करना हमारा उन्हें मनाना कभी डांटना। उनकी बातों पर कभी हंसी कभी प्यार कभी गुस्सा आता है।
फिर भी न जाने क्यूं मैं उनके पास बहुत खुश हूं, सुकून से हूं। क्यों कि यहां न तंज भरी बातें हैं, ना चुभती आंखें, न कोई सवाल न कोई जवाब। शायद इसीलिए मैं अपनी मां के पास खुश हूं सुकून में हूं सुकून में हूं।
