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Neena Bajaj Neena Bajaj

Children Stories

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कुकर और कड़ाही की कहानी

कुकर और कड़ाही की कहानी

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कुकर और कड़ाही की नोक झोंक कहते हैं कि जहां दो बर्तन होंगे वो खड़के ही यह हास्य व्यंग भी इसी संदर्भ में है रसोईघर में चार बर्तन होंगे तो वह खड़के ही। सिंक में पड़े बर्तनों में कुकर और कड़ाही भी पड़े थे।  कुकर और कड़ाही की आपस में बहुत लगती थी कुकर अपने आप में बहुत इतराता था कि मेरी वज़ह से घरवालों को खाना स्वादिष्ट और पौष्टिक मिलता है वहीं दूसरी ओर कड़ाही अपने रुप और काया पर इतराती थी और कुकर पर अक्सर तंज कसती रहती थी कि तुम क्या हो मोटे से कहीं छोटे से गोलू से ‌ कभी खाना ज्यादा नरम कर देते हो कभी कड़क । मुझे देखो मुझे कितने प्यार से बनाया गया है। नीचे से पतली और ऊपर से गोल और आयताकार। मुझ में खाना भी स्वादिष्ट बनता है।                               तुम में तो तामसी खाना ज्यादा बनता है। कभी कभी दाल चावल राजमा या चने।  मुझमें सात्विक भोजन बनता है । मंदिर का प्रसाद, हलवा, खीर, गाजर का हलवा बनता है। गरमागरम पूरी छन छन कर तली जाती हैं। मेरी बिरादरी में काफी तरह की कड़ाही की किस्में हैं।लोहे की, पीतल की, हिडोलियम की स्टील की कड़ाही। छोटे साइज़ से लेकर बड़े साइज़ में। तुम्हारी बिरादरी में तो दो ही किस्में पाई जाती हैं। एक काला और एक सिल्वर।                                            

इनकी नोक झोंक अभी जारी ही रहती। एक बड़ा भिगौना जो बरसों से इसी रसोईघर की शान बढ़ा रहा था। उसने इन दोनों को नम्रता पूर्वक टोका कि इस रसोईघर में जितने भी बर्तन हैं वो सब एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। अगर कलछी नहीं होगी तो सब काम अधूरे रह जाएंगे।परात नहीं होगी तो आटा नहीं बनेगा। आटा नहीं बनेगा तो चपाती नहीं बनेगी। इसलिए नोंक झोंक छोड़ो। सब के साथ प्यार के साथ मिलजुल कर रहो और मिल कर बोलो बर्तन यूनियन जिन्दाबाद। बर्तन एकता जिंदाबाद।                             इतने में मेरी नींद एक झटके से खुली।यह क्या, क्या मैं सपना देख रही थी। यही सोचते हुए मेरे कदम रसोईघर की तरफ बढ़ चले।आज मुझे मेरा रसोईघर और उसमें रखे बर्तन बहुत प्यारे लग रहे थे। मैं मन ही मन मुस्कुरा कर खाना बनाने की तैयारी करने लगी।                      


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