बर्फ का गोला

बर्फ का गोला

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कार्तिक दस साल का एक प्यारा सा मासूम लड़का था। पूरी कक्षा में उसकी सिर्फ एक ही मित्र थी, प्यारी सी कृतिका। जो हँसती तो ऐसा लगता मानों चारों ओर फूल ही फूल खिल गए हों।

कार्तिक और कृतिका की पक्की दोस्ती हर जगह मशहूर थी। उन दोनों को ही बर्फ के गोले खाना बहुत पसंद था। जहाँ कृतिका को सारे स्वादों से भरपूर गोला पसंद आता था, वहीं कार्तिक हमेशा सिर्फ एक ही तरह का गोला खाता।

कृतिका अक्सर उसे चिढ़ाते हुए कहती "दुनिया में इतने तरह-तरह के स्वाद हैं और तुझे सिर्फ एक ही पसंद है बुड़बक।"

कार्तिक हँसते हुए कहता "हाँ, वैसे ही जैसे मुझे सिर्फ तू ही अच्छी लगती है और कोई नहीं।"

यूँ ही हँसी-खुशी साथ पढ़ते-खेलते दोनों के दिन गुज़र रहे थे कि कार्तिक के पिता का तबादला दूसरे शहर में हो गया और दोनों मित्र एक-दूसरे से बिछड़ गए। तब ना हर घर में टेलीफ़ोन हुआ करता था, ना सोशल मीडिया की दूर होकर भी एक-दूसरे से हमेशा जुड़े रहें।

कुछ दिन तक कार्तिक और कृतिका के बीच चिट्ठियों का सिलसिला चला। फिर कृतिका के परिवार ने भी उस शहर को छोड़ दिया और दोनों का संपर्क टूट गया।

पंद्रह बरस गुजर चुके थे। कार्तिक और कृतिका अब बचपन की दहलीज को लांघकर युवावस्था में पहुँच चुके थे, लेकिन बचपन की दोस्ती अब भी उनके ज़हन में जिंदा थी। जब भी वो ईश्वर के आगे हाथ जोड़ते उनके दिलों से एक ही प्रार्थना निकलती, एक बार अपने बिछड़े हुए मित्र से मिलने की प्रार्थना।

दफ्तर में एक दिन किसी बात से बहुत परेशान होकर जब कार्तिक अपने कक्ष की खिड़की पर आया तब उसकी नज़र बाहर सड़क पर खड़े बर्फ के गोले के ठेले पर गयी। ना जाने कार्तिक को क्या सूझा की वो अचानक कृतिका के बारे में सोचते हुए अपने पुराने शहर की तरफ निकल गया जो यहाँ से ज्यादा दूर नहीं था।

शहर पहुँचते ही बचपन के दिनों को याद करते हुए कार्तिक उस जगह पहुँचा जहाँ वो और कृतिका अक्सर ही बर्फ के गोले खाते थे। संयोग से वहां आज भी एक गोले वाला मौजूद था। आज पहली बार कार्तिक ने कृतिका का पसंदीदा गोला अपने लिए बनवाया। गोला खाते हुए वो वहीं कोने में खड़ा था। कुछ देर के बाद वहाँ एक लड़की आयी और गोले वाले ने उसके बिना कुछ कहे ही उसे एक गोला बनाकर दे दिया। कार्तिक ने देखा उस लड़की के हाथ में सफ़ेद छड़ी थी। वो मन ही मन सोच रहा था "उफ्फ इतनी कम उम्र में ये तकलीफ" और ना चाहते हुए भी उस लड़की को एकटक देखने लगा।

उसके जाने के बाद कार्तिक ने गोले वाले से कहा "भैया बुरा ना मानें तो एक बात पूछूँ ? आप उस लड़की को जानते है क्या? मैंने देखा बिना उसके कुछ बोले ही आपने उसे गोला बनाकर दे दिया था।

गोले वाला बोला "हाँ भैया, बेचारी यहाँ पास में ही रहती है। रोज आती है। कहती है बचपन में यहीं अपने किसी दोस्त के साथ गोला खाती थी और उसके दोस्त को एक ही स्वाद वाला गोला पसंद था।"

गोले वाले कि बात सुनकर कार्तिक की धड़कनें तेज हो गयी। उसने किसी तरह खुद पर काबू करते हुए पूछा "इसकी आँखों को क्या हुआ?"

गोले वाले ने बताया "छः महीने पहले बेचारी कहीं बाहर गयी थी। वहां किसी लड़के को देखकर इसे लगा की वो उसका वही बिछड़ा हुआ दोस्त है। ये पागलों की तरह उसकी गाड़ी के पीछे दौड़ पड़ी। वो लड़का तो नहीं मिला पर बीच सड़क पर बेचारी को दूसरी गाड़ी ने ठोकर मार दी और उसकी आँखों की रौशनी चली गयी।"

कार्तिक को अचानक याद आया छः महीने पहले एक लड़की उसकी कार के पीछे दौड़ रही थी पर उसने ध्यान नहीं दिया और उसे पागल समझकर तेज रफ़्तार में वहाँ से चला गया।

कार्तिक की आँखों से आँसू बहने लगे।

उसे यूँ भावुक देखकर गोले वाले ने कहा "इस बेचारी की कहानी जो सुनता है आप ही की तरह रो देता है।"

कार्तिक ने किसी तरह अपने आँसू रोके और वो लड़की जो कोई और नहीं उसकी बिछड़ी हुई दोस्त कृतिका थी, उसके घर का पता लेकर उसके घर की तरफ चल पड़ा।

काँपती हुई ऊँगलियों से कार्तिक ने कृतिका के घर के दरवाजे की घंटी बजायी।

कृतिका की माँ वीणा जी ने दरवाजा खोला तो कार्तिक ने उन्हें प्रणाम करके अपना परिचय दिया।

वीणा जी उसे यूँ अचानक सामने देखकर रोने लगी और बोली "बेटा, तुमने आने में बहुत देर कर दी। वो तो अब देख भी नहीं सकती। बस दिन-रात तुम्हें याद करती है।"

कार्तिक ने कहा "मुझे सब पता है चाचीजी। मुझे बस कृतिका से मिलना है।"

वीणा जी ने कार्तिक को कृतिका के कमरे में पहुँचा दिया।

कृतिका कुर्सी पर बैठी ख्यालों में खोई हुई थी। कार्तिक उसके पास गया और बचपन की तरह चुपचाप पीछे से उसकी आँखों पर हाथ रख दिया।

कृतिका ने उसका स्पर्श पहचान लिया और रुंधे हुए गले से बोली "अब इसकी जरुरत नहीं बुड़बक। मुझे वैसे भी दिखाई नहीं देता।"

दोनों बिछड़े हुए मित्र एक-दूसरे के गले लगकर रो पड़े।

थोड़ी देर के बाद खुद को संयत करते हुए कृतिका बोली "इतने सालों के बाद मिले हो और विडंबना देखो मैं तुम्हें देख भी नहीं सकती।"

"तुम्हारा अपराधी तुम्हारे सामने खड़ा है। मेरे ही पीछे भागने से तुम्हारी ये हालत हुयी। जो चाहे सजा दे दो मुझे।" कार्तिक ने कृतिका के पैरों पर गिरते हुए कहा।

कृतिका जल्दी से पीछे हटते हुए बोली "चुप बुड़बक। तुम्हारी क्या गलती? मैं ही पागलों की तरह बीच सड़क पर दौड़ पड़ी थी। क्या करूँ अचानक तुम्हें देखकर खुद पर काबू नहीं कर पायी थी।"

एक-दूसरे का हाथ थामे अब दोनों खामोश थे।

कुछ देर के बाद खामोशी तोड़ते हुए कृतिका ने ही कहा "पता है बुड़बक, मैं हमेशा सोचती थी की जब तुम मिलोगे तो तुमसे पूछूँगी मुझसे शादी करोगे? पर अब तो मैं तुम्हारे लायक ही नहीं रही। बस इतना करना कभी-कभी मुझसे मिलते रहना।"

कार्तिक ने सहसा उसे सीने से लगा लिया और कहा "ख़बरदार फिर ऐसा कहा तो की तू मेरे लायक नहीं। तेरे चक्कर में अब तक कुंवारा बैठा हूँ। अब रहम कर दे अपने बुड़बक पर और हमेशा के लिए थाम ले मेरा हाथ।"

उसकी बात पर हतप्रभ कृतिका बोली "पर मैं देख नहीं..."

कार्तिक ने उसकी बात अधूरी रहते ही उसके होंठो पर ऊँगली रखते हुए कहा "बस अब और कुछ नहीं।"

उन दोनों के परिवार वालों ने मिलकर खुशी-खुशी दोनों की शादी की तारीख पक्की कर दी।

सभी एक-दूसरे का मुँह मीठा करवा रहे थे कि अचानक कार्तिक ने कहा "मैं शादी के पहले अपनी होने वाली पत्नी को एक खास तोहफा देना चाहता हूँ।"

सबके पूछने पर कार्तिक ने बताया कि उसने आँखों के सबसे बड़े विशेषज्ञ डॉक्टर बंसल को कृतिका की रिपोर्ट्स दिखाई है। और उन्होंने भरोसा दिलाया है कि कृतिका की आँखें बिल्कुल ठीक हो सकतीं है।"

"लेकिन ये इलाज बहुत महँगा है।" वहाँ मौजूद सभी लोगों ने कहा।

कार्तिक बोला "आप सबको चिंता करने की जरूरत नहीं है। अब तक मेरे पास जितनी बचत है, उसके साथ थोड़ा लोन लेकर मैं ये खर्च आसानी से उठा सकता हूँ।"

कृतिका घबराकर बोली "अगर तुम्हें मेरी आँखें ना होने से कोई ऐतराज नहीं तो फिर ये पागलपन करने की क्या जरूरत है? अपना सब कुछ मुझ पर लुटाकर क्यों आँखें होते हुए भी प्यार में अंधे बन रहे हो बुड़बक ?"

"क्योंकि अब मेरी सब कुछ तुम हो। अपने होने वाले पति की काबिलियत पर भरोसा रखो। वो बहुत जल्दी सारा लोन चुकाकर अपना सारा वेतन ईमानदारी से तुम्हारे हाथों में लाकर दिया करेगा। वैसे भी प्यार तो अँधा ही होना चाहिए जो जिस्म, शक्ल, कपड़ों और उसके पैसों से नहीं इंसान से किया जाये।" कार्तिक ने कृतिका के हाथों को थामते हुए कहा।

उसकी बात सुनकर कृतिका मुस्कुरा पड़ी।

उन दोनों के परिवार वाले अपने बच्चों के सुखद भविष्य को लेकर अब पूरी तरह निश्चिन्त हो चुके थे।

"अब जब सब कुछ तय हो चुका है तो क्या हम दोनों को इजाजत मिलेगी की हम थोड़ी देर के लिए बाहर जाकर इस खुशी के मौके को यादगार बनाये ?" कार्तिक ने कृतिका और अपने परिवार वालों की तरफ देखते हुए कहा।

सबकी सहमति मिलते ही बचपन बंधन में बंधने जा रहे थे, एक-दूसरे का हाथ थामे चल पड़े उसी जगह जहाँ उनके बचपन की सबसे मीठी याद थी, और जिसकी वजह से वो एक बार फिर से साथ थे, अपनी पसंदीदा बर्फ के गोले मिलने की जगह।

आज कार्तिक और कृतिका दोनों के हाथों में एक-दूसरे की पसंद का बर्फ का गोला मुस्कुरा रहा था।

के दोनों मित्र जो अब जन्मों-जन्म के साथी है।


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