Arun Tripathi

Abstract

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Arun Tripathi

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ब्रेनवाश

ब्रेनवाश

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रायपुर के नेशनल माइनिंग कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा करने के बादमेरी नियुक्ति उड़ीसा की एक कोयला खदान में हुई । बहुत बड़ी माइनिंग फील्ड थी ।जहाँ चौबीस घंटे कोयले से भरे ट्रक आते जाते थेहर तीसरे दिन एक मालगाड़ी कोयला भी भेजा जाता था।माइनिंग का काम चौबीस घंटे चलता रहता था

एक दिन मैं अपने सहकर्मी विकास के साथ खुली जीप में बैठा जा रहा था । गर्मियों के दिन थेशाम के छह बज रहे थे धीरे धीरे धुंधलका छा रहा था ।

हमारी जीप एक शांत निर्जन सड़क से गुजर रही थी और अचानक।हमारी जीप पर गोलियों की बरसात होने लगीएक गोली सनसनाती हुई मेरी कनपटी को छूते हुए गुजरी और विकास की खोपड़ी उड़ गई । जीप अनियंत्रित हो कर एक पेड़ से टकराई मुझे अपने शरीर में तेज दर्द की अनुभूति हुई मैं चेतनाशून्य हो गया

मुझे होश आया तो तो मैंने स्वयं को एक पहाड़ी गुफा में पाया । गुफा की जमीन पर पुआल बिछी थी जिस पर मैं लेटा था और गुफा के अंदर दीवाल पर जगह जगह मशाल जल रहीं थीं । थोड़ी देर मैं पड़ा पड़ा इधर उधर देखता रहा और उठ कर बैठा तो दर्द की लहर सी उठी और मैं फिर लेट गया ।गुफा में पड़े पड़े मुझे एक सप्ताह गुजर गए थे । अब मैं स्वयं को किंचित स्वस्थ अनुभव करने लगा था ।

इतने दिनों में मैंने सूरज के दर्शन नहीं किये थे । सुबह दोपहर शाम मुझे समय पर चाय नाश्ता और भोजन मिल जाता था।एक लगभग बीस साल की काली कलूटी परन्तु तीखे नैन नख्स वाली लड़कीजो फौजियों की तरह के कपड़े पहनती थी और हमेशा कंधे पर राइफल लटकाये रहती थीवही मुझे चाय पानी भोजनादि उपलब्ध करवाती थी ।लेकिन इतने दिनों में मैंने उसकी आवाज नहीं सुनी

एक दिन दो खतरनाक दिखने वाले फौजी वर्दीधारी उस गुफा में आये और सामान से भरी बोरी की तरह मुझे जबरिया उठा कर बाहर लाये और मुझे एक बंद गाड़ी में डाल दिया।जहाँ वही लड़की बैठी थीउसके सामने मैं बैठा था ।उसके हाँथ में राइफल थी और उसके गन प्वाइंट पर मैं था।

उस बंद गाड़ी के बाहर कुछ भी दिख नहीं रहा थामुझे लग रहा था जैसे मैं किसी डिब्बे में बंद हूँ । कभी कभी उस गाड़ी में मुझे ऑक्सीजन की कमी महसूस होती और लगता साँस फूलने लगी हो ।

मुझे जोर की पेशाब लगी और मैंने पेशाब करने की इच्छा जाहिर कीमेरे हाँथ बंधे थे और मैं ठीक से हिलडुल भी नहीं सकता थाउस लड़की नें एक डिब्बा उठा कर मेरी टांगो के बीच रखा और मेरी पैंट खोलीऔर एक नर्स की तरह जैसे एक मरीज को पेशाब करवाते हैं उसी तरह मुझे शंका से निवृत्त किया उसका चेहरा भावहीन थावह पुनः अपनी जगह पर जा बैठी लगातार चार पांच घंटे गाड़ी नामालूम रास्तों पर दौड़ती रही और किसी स्थान पर खड़ी हो गई उस लड़की नें अपनी जेब से एक काला कपड़ा निकाला और मेरी आँखों पर बांध दिया।

चार मजबूत हाँथो नें मुझे दायें बायें से जकड़ा और मुझे लेकर आधे घंटे तक चढ़ाई चढ़ते रहे अंततः मेरी आँखों से पट्टी उतारी गई और मेरी आंखे चौंधिया गईं।चारो तरफ तेज धूप थी चहुं ओर ऊँचे नीचे टीले थे जिन पर हर उम्र के मर्द अपने हाथों में राइफल लिये मुस्तैद थे।इन टीलों के मध्य एक पथरीला मैदान थाबीच में पत्थरों से बनी एक विशाल इमारत थीइमारत के ठीक बाहर एक खूब घना पाकड़ का पेंड थाउस पेड़ के नीचे एक टेबल और दो कुर्सियाँ पड़ी थीं ।उस लड़की नें मुझे पीछे से टहोका और आगे बढ़ने का इशारा किया । टेबल के नजदीक पहुँच कर उसने मेरे हाँथ खोल दिये और कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।

पद्रह मिनट बाद फौजी पोशाक पहने और सिर पर लाल स्कार्फ बांधे दरम्यानी उम्र का एक आदमी आयाउसके आते ही माहौल एकदम एलर्ट हो गया

वो आदमी पूरे रुआब से चलता हुआ आया और मेरे सामने कुर्सी पर बैठ गयाउसके हाँथ में एक फाइल थीउसने उस लड़की से उड़िया भाषा में कुछ कहा और वो उस विशाल इमारत में घुस गई ।

दस मिनट बाद वो शानदार नाश्ता और कॉफी लेकर आयी मेरे सामने रखा और पीछे हटकर अदब से खड़ी हो गई।मुझे भूख़ लगी थी और मैने स्वादिष्ट नाश्ता जो भोजन से कुछ अधिक ही था किया और कॉफी पीउस आदमी नें मुझे सिगरेट ऑफर की और मैने मना किया

अब वो आदमी मुझसे मुखातिब हुआ और अंग्रेजी में बोलामैं किस भाषा में बातचीत करना पसंद करूंगा ?

मैंने कहा " हिन्दी"

वो खुश हुआ और बोला "ठीक है , तो सबसे पहले आप अपना नाम बताइये ।"

मैं जानता था कि इस स्थिति में मैंउसके हर आदेश का पालन करने के लिये बाध्य हूँअतः मुझे उसके हर आदेश का पालन करने में ही भलाई महसूस हुई।मैंने कहा।"अजय,अजय ढोलकिया नाम है मेरा ।"

वो आदमी पहलू बदल करमेरी आँखों में झांकता हुआ बोला"मेरा नाम बसंत चक्रवर्ती है और लोग मुझे कामरेड बसंत कहते हैं ।"मैंने उसका झुक कर अभिवादन किया और बोला ।

" ओ के कामरेड"

कामरेड बसंतदो घंटे तक मेरे मेरे काम और मेरे परिवार के विषय में पूछताछ करता रहा । अंत में वो बोला" अजय जी अाप को इतने दिन जो कष्ट उठाने पड़े उसके लिए हम माफ़ी चाहते हैं । आप को हम अभी आजाद तो नहीं कर सकते लेकिन अब आपको कष्ट भी उठाने नहीं पड़ेंगे,ये लीला है ।

लीला नायक हमारी लेडी कमांडर ।ये आपके साथ रहेगी आपका ख्याल रखेगी । बस इतना ख्याल रखियेगा कि इसके किसी आदेश का उल्लंघन

न कीजियेगा वर्ना ये आपको निःसंकोच गोली मार देगी ।"दूसरे दिन से मेरा ब्रेनवाश किया जाने लगा मुझे नक्सली साहित्य पढ़ने के लिये दिया जाता एक सफ़ेद दाढ़ी वाला बूढा रोज सुबह दस बजे आता और दो बजे तक मुझे बच्चों की तरह दुलराता।पुचकारता और माओवादी विचारधारा की फिलॉसफी और बारीकियां सिखाता ।तीन महीने बादमुझे खुद ही लगने लगा कि मैं बदलता जा रहा हूँ।।

और एक दिन वो हुआ जिसके विषय में मैंने कभी सोचा भी नहीं थालीला नें बड़ी निर्लज्जता से मुझे अपने साथ रतिक्रिया के लिये मजबूर किया और फिर ये काम लगभग रोज ही होने लगा

धीरे धीरे छह महीने बीत गए ।ज्यों ज्यों समय बीतता गया और मेरी आजादी बढ़ती गई । लीला और मेरे बीच की अंतरंगता भी बढ़ती गई ।एक दिनकामरेड बसंत लगभग दौड़ते हुए मेरे पास आया और मेरा कॉलर पकड़ कर झकझोरते हुए बोला" तुमने हमसे झूठ बोला तुम इंडिया गवर्नमेंट के अंडरकवर एजेंट हो और जानबूझ कर हमारी गिरफ्त में फंसे हो ।"

मैं हकबकाया सा उसे देखता रहा और असहमति से गरदन हिलाता रहा । मैंने उसे लाख समझाया कि मैं एक साधारण माइनिंग सुपरवाइजर हूँ कोयले की खदान में काम करता हूँपरन्तु उस पर कोई असर न हुआ।उसने लीला से उड़िया भाषा में कुछ बात की और चला गया ।

उस रात लीला नें मुझसे एक फौजी अफसर की तरह पूछताछ कीलेकिन सच्चाई को किसी सबूत की कोई विशेष जरूरत नहीं होती छह महीने तक लगातार मेरे साथ रहते हुएवो मेरे विषय में लगभग सबकुछ जान चुकी थीकुछ ऐसा वो जानती थी जिसके बारे में मुझे भी नहीं पता था कि मेरी बाईं जांघ के जोड़ के नीचे एक तिल हैदूसरे दिनमुझे फिर से एक बार जकड़ कर जंगलके बीच ले जाया गया । मेरे साथ लीला थी जो मेरे सिर पर रिवाल्वर ताने थी और दो मजबूत शरीर के नौजवान मुझे घेर कर चल रहे थे।एक स्थान पर पहुँच कर मुझे एक पतले पेड़ से बांध दिया गया और वो दोनों नौजवान मुझसे दस फिट की दूरी पर खड़े हो गए । उन्होंने अपनी राइफलें मुझ पर तान दीं और एक हाँथ में रिवाल्वर लिए लीला।।मेरी दायीं तरफ खड़ी हो गई।उसके दायें हाँथ में रिवाल्वर था और बायें हाँथ में एक लाल रुमालउसने रुमाल वाला हाँथ ऊपर उठाया।।

मेरी समझ में आ गया की अभी ये लाल रुमाल इसके हाँथ से छूटेगा सामने की राइफलें गोली उगलेंगी और मेरे प्राण निकल जायेंगे ,डर से मेरे शरीर नें पसीना छोड़ना शुरू कर दिया और मैंने आँखे बंद कर लींअचानक धाय धाय की आवाज गूँजी।मैंने आंखे खोलीं और मेरे सामने वे दोनों नौजवान जमीन पर निर्जीव पड़े थे।और लीला की रिवाल्वर से धुआं निकल रहा था।।

उसने मुझे खोला और मेरा हाथ पकड़ कर एक दिशा की ओर भागी।लगातार तीन घंटे भागते रहने के बाद हम एक सड़क पर पहुंचेसामने से एक बाइक आती दिखीउस पर हैलमेट लगाये एक आदमी बैठा था और लीला नें उससे बाइक छीन कर उसे बेमतलब गोली मार दी ।उसकी लाश को झाड़ियों में छिपा कर वो मेरे साथ बाइक पर बैठी।एक पुलिस स्टेशन के करीब पहुँच कर ।उसने बाइक रोकने का इशारा किया और मुझे जहाँ मर्जी जाने को कहा मैं ठिठका तो वो कठोर स्वर में बोली "जाते हो या यहीं तुमको भी गोली मार दूँ ।" ।

इतना कह कर उसने बीच सड़क पर मेरा लम्बा चुम्बन लिया और मुझ पर गन तान दी।मैं कमान से छूटे तीर की तरह भागाऔर लीला नें पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया!



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